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________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश/सूत्र करता है, अथवा अस्थितद्रव्यों को ? गौतम ! औधिक जीव के समान कहना । विशेष यह है कि विकलेन्द्रियों के विषय में पृच्छा नहीं करना । जैसे सत्यभाषाद्रव्यों के ग्रहण के विषय में कहा है, वैसे ही मृषा तथा सत्यामृषाभाषा में भी कहना । असत्यामृषाभाषा में भी इसी प्रकार कहना । विशेष यह है कि असत्यामृषाभाषा के ग्रहण में विकलेन्द्रियों की भी पृच्छा करना-भगवन् ! विकलेन्द्रिय जीव जिन द्रव्यों को असत्यामृषाभाषा के रूप में ग्रहण करता है, क्या वह उन स्थितद्रव्यों को ग्रहण करता है, अथवा अस्थितद्रव्यों को ? गौतम ! औधिक दण्डक के समान समझना । इस प्रकार एकत्व और पृथक्त्व के ये दस दण्डक कहना । भगवन् ! जीव जिन द्रव्यों को सत्यभाषा के रूप में ग्रहण करता है, क्या उनका वह सत्यभाषा, मृषाभाषा, सत्यामृषाभाषा अथवा असत्यामृषाभाषा के रूप में निकालता है ? गौतम ! वह केवल सत्यभाषा के रूप में निकालता है । इसी प्रकार वैमानिक तक एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय को छोड़ कर कहना । भगवन् ! जीव जिन द्रव्यों को मृषाभाषा के रूप में ग्रहण करता है, क्या उन्हें वह सत्यभाषा के रूप में अथवा यावत् असत्यामृषाभाषा के रूप में निकालता है ? गौतम ! केवल मृषाभाषा के रूप में ही निकालता है। इसी प्रकार सत्यामृषाभाषा के रूप में गृहीत द्रव्यों में भी समझना । असत्यामृषाभाषा के रूप में गृहीत द्रव्यों में भी इसी प्रकार समझना । विशेषता यह कि असत्यामृषाभाषा के रूप में गृहीत द्रव्यों के विषय में विकलेन्द्रियों की भी पृच्छा करना । जिस भाषा के रूप में द्रव्यों को ग्रहण करता है, उसी भाषा के रूप में ही द्रव्यों को निकालता है । इस प्रकार एकत्व और पृथक्त्व के ये आठ दण्डक कहने चाहिए। सूत्र-३९७ भगवन् ! वचन कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! सोलह प्रकार के । एकवचन, द्विवचन, स्त्रीवचन, पुरुषवचन, नपुंसकवचन, अध्यात्मवचन, उपनीतवचन, अपनीतवचन, उपनीतापनीतवचन, अपनीतोपनीतवचन, अतीतवचन, प्रत्युत्पन्नवचन, अनागतवचन, प्रत्यक्षवचन और परोक्षवचन । इस प्रकार एकवचन (से लेकर) परोक्षवचन (तक) बोलते हुए की क्या यह भाषा प्रज्ञापनी है ? यह भाषा मृषा तो नहीं है ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही है। सूत्र-३९८ भगवन् ! भाषाजात कितने हैं ? गौतम ! चार । सत्या, मृषा, सत्यामृषा और असत्यामृषा । भगवन् ! इन चारों भाषा-प्रकारों को बोलता हुआ (जीव) आराधक होता है, अथवा विराधक ? गौतम ! उपयोगपूर्वक बोलने वाला आराधक होता है, विराधक नहीं । उससे पर जो असंयत, अविरत, पापकर्म का प्रपिघात और प्रत्याख्यान न करने वाला सत्यभाषा, मृषाभाषा, सत्यामृषा और असत्यामृषा भाषा बोलता हुआ आराधक नहीं, विराधक है। सूत्र-३९९ भगवन् ! इन सत्यभाषक, मृषाभाषक, सत्यामृषाभाषक और असत्यामृषाभाषक तथा अभाषक जीवों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य और विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े जीव सत्यभाषक हैं, उनसे असंख्या-तगुणे सत्यामृषाभाषक हैं, उनसे मृषाभाषक असंख्यातगुणे हैं, उनसे असंख्यातगुणे असत्यामृषाभाषक जीव हैं और उनसे अभाषक जीव अनन्तगुणे हैं। पद-११-का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 87
SR No.034682
Book TitleAgam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 15, & agam_pragyapana
File Size4 MB
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