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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र
पद-१२-शरीर सूत्र-४००
भगवन ! शरीर कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पाँच-औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण । भगवन् ! नैरयिकों के कितने शरीर हैं ? गौतम ! तीन-वैक्रिय, तैजस और कार्मण शरीर । इसी प्रकार असुरकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों तक समझना । पृथ्वीकायिकों के तीन शरीर हैं, औदारिक, तैजस एवं कार्मणशरीर । इसी प्रकार वायुकायिकों को छोड़कर चतुरिन्द्रियों तक जानना । वायुकायिकों में चार शरीर हैं, औदारिक, वैक्रिय, तैजस और कार्मण शरीर । इसी प्रकार पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों में समझना । मनुष्यों के पाँच शरीर हैं-औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों के शरीरों नारकों की तरह कहना। सूत्र-४०१
__भगवन् ! औदारिक शरीर कितने हैं ? गौतम ! दो प्रकार के-बद्ध और मुक्त । जो बद्ध हैं, वे असंख्यात हैं, काल से-वे असंख्यात उत्सर्पिणियों-अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं । क्षेत्र से-अनन्तलोकप्रमाण हैं । द्रव्यतः-मुक्त
रेक शरीर अभवसिद्धिक जीवों से अनन्तगणे और सिद्धों के अनन्तवें भाग हैं। भगवन ! वैक्रिय शरीर कितने हैं? गौतम ! दो प्रकार के-बद्ध और मुक्त, जो बद्ध हैं, वे असंख्यात हैं, कालतः वे असंख्यात उत्सर्पिणियों-अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं, क्षेत्रतः वे असंख्यात श्रेणी-प्रमाण तथा प्रत्तर के असंख्यातवें भाग हैं । जो मुक्त हैं, वे अनन्त हैं | कालतः वे अनन्त उत्सर्पिणियों-अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं; औदारिक शरीर के मुक्तों के समान वैक्रियशरीर के मुक्तों में भी कहना।
भगवन् ! आहारक शरीर कितने हैं ? गौतम ! दो-बद्ध और मुक्त । जो बद्ध हैं, वे कदाचित् होते हैं, कदाचित नहीं होते । यदि हों तो जघन्य एक, दो या तीन होते हैं, उत्कृष्ट सहस्रपृथक्त्व होते हैं । जो मुक्त हैं, वे अनन्त हैं । औदारिक शरीर के मुक्त के समान कहना । भगवन् ! तैजसशरीर कितने हैं ? गौतम ! दो प्रकार के-बद्ध और मुक्त । जो बद्ध हैं, वे अनन्त हैं, कालतः-अनन्त उत्सर्पिणियों-अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं, क्षेत्रतः-अनन्तलोकप्रमाण हैं, द्रव्यतः-सिद्धों से अनन्तगुणे तथा सर्वजीवों से अनन्तवें भाग कम हैं । जो मुक्त हैं, वे अनन्त हैं, कालत:-वे अनन्त उत्सर्पिणियों-अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं, क्षेत्रतः-वे अनन्तलोकप्रमाण हैं । द्रव्यतः-(वे) समस्त जीवों से अनन्तगुणे हैं तथा जीववर्ग के अनन्तवें भाग हैं । इसी प्रकार कार्मणशरीर में भी कहना । सूत्र-४०२
भगवन् ! नैरयिकों के कितने औदारिकशरीर हैं ? गौतम ! दो, बद्ध और मुक्त । बद्ध औदारिकशरीर उनके नहीं होते । मुक्त औदारिकशरीर अनन्त होते हैं, (औधिक) औदारिक मुक्त शरीरों के समान (यहाँ-नारयिकों के मुक्त औदारिकशरीरों में) भी कहना चाहिए । भगवन् ! नैरयिकों के वैक्रियशरीर कितने हैं ? गौतम ! दो, बद्ध और मुक्त। जो बद्ध हैं, वे असंख्यात हैं । कालतः-असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी कालों में अपहृत होते हैं । क्षेत्रतः-असंख्यात श्रेणी-प्रमाण हैं । (श्रेणी) प्रतर का असंख्यातवाँ भाग है । उन श्रेणियों की विष्कम्भसूची अंगुल के प्रथम वर्गमूल की दूसरे वर्गमूल से गुणित (करने पर निष्पन्न राशि जितनी) होती है अथवा अंगुल के द्वितीय वर्गमूल के घन-प्रमाणमात्र श्रेणियों जितनी है तथा जो मुक्त वैक्रियशरीर हैं, उनके परिमाण के विषय में (नारकों के) मुक्त औदारिक शरीर के समान कहना । नैरयिकों के आहारकशरीर दो प्रकार के हैं । बद्ध और मुक्त । (नारकों के) औदारिक बद्ध और मुक्त के समान आहारकशरीरों के विषय में कहना । (नारकों के) तैजस-कार्मण शरीर उन्हीं के वैक्रियशरीरों के समान कहना। सूत्र-४०३
भगवन् ! असुरकुमारों के कितने औदारिकशरीर हैं ? गौतम ! नैरयिकों के औदारिकशरीरों के समान इनके विषय में भी कहना । भगवन् ! असुरकुमारों के वैक्रियशरीर कितने हैं ? गौतम ! दो-बद्ध और मुक्त । जो बद्ध हैं, वे असंख्यात हैं । काल की अपेक्षा से असंख्यात उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों में वे अपहृत होते हैं । क्षेत्र की अपेक्षा से असंख्यात श्रेणियों (जितने) हैं । (वे श्रेणियाँ) प्रतर का असंख्यातवाँ भाग (प्रमाण हैं ।) उन श्रेणियों की
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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