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________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश/सूत्र सूत्र-३९२ स्पृष्ट, अवगाढ़, अनन्तरावगाढ़, अणु, बादर, ऊर्ध्व, अधः, आदि स्वविषयक, आनुपूर्वी तथा नियम से छह दिशाओं से (भाषायोग्य द्रव्यों को जीव ग्रहण करता है।) सूत्र-३९३ भगवन् ! जिन द्रव्यों को जीव भाषा के रूप में ग्रहण करता है, क्या (वह) उन्हें सान्तर ग्रहण करता है या निरन्तर ? गौतम ! दोनों । सान्तर ग्रहण करता हुआ जघन्यतः एक समय का तथा उत्कृष्टतः असंख्यात समय का अन्तर है और निरन्तर ग्रहण करता हुआ जघन्य दो समय और उत्कृष्ट असंख्यात समय प्रतिसमय बिना विरह के ग्रहण करता है । भगवन् ! जिन द्रव्यों को जीव भाषा के रूप में ग्रहण करके निकालता है, क्या वह उन्हें सान्तर निकालता है या निरन्तर? गौतम ! सान्तर निकालता है, निरन्तर नहीं । सान्तर निकालता हुआ जीव एक समय में द्रव्यों को ग्रहण करता है और एक समय में निकालता है । इस ग्रहण और निःसरण से जघन्य दो समय और उत्कृष्ट असंख्यात समय के अन्तमुहूर्त तक ग्रहण और निःसरण करता है। भगवन् ! जीव भाषा के रूप में गृहीत जिन द्रव्यों को निकालता है, उन द्रव्यों को भिन्न निकालता है, अथवा अभिन्न ? गौतम ! भिन्न द्रव्यों को निकालता है, अभिन्न द्रव्यों को भी निकालता है। जिन भिन्न द्रव्यों के वे द्रव्य अनन्तगुणवृद्धि से वृद्धि को प्राप्त होते हुए लोकान्त को स्पर्श करते हैं तथा जिन अभिन्न द्रव्यों को निकालता है, वे द्रव्य असंख्यात अवगाहनवर्गणा तक जा कर भेद को प्राप्त हो जाते हैं । फिर संख्यात योजनों तक आगे जाकर विध्वंस होते हैं। सूत्र-३९४ भगवन् ! उन द्रव्यों के भेद कितने हैं ? गौतम ! पाँच-खण्डभेद, प्रतरभेद, चूर्णिकाभेद, अनुतटिकाभेद और उत्कटिका भेद । ___ वह खण्डभेद किस प्रकार का होता है ? खण्डभेद (वह है), जो लोहे, रांगे, शीशे, चाँदी अथवा सोने के खण्डों का, खण्डक से भेद करने पर होता है । वह प्रतरभेद क्या है ? जो बांसों, बेंतों, नलों, केले के स्तम्भों, अभ्रक के पटलों का प्रतर से भेद करने पर होता है । वह चूर्णिकाभेद क्या है ? जो तिल, मूंग, उड़द, पिप्पली, कालीमिर्च के चूर्णिका से भेद करने पर होता है । वह अनतटिकाभेद क्या है ? जो कपों, तालाबों, हदों, नदियों, वावडियों, पुष्करिणियों, दीर्घिकाओं, गुंजालिकाओं, सरोवरों और नाली के द्वारा जल का संचार होनेवाले पंक्तिबद्ध सरोवरों के अनुतटिकारूप में भेद होता है । वह उत्कटिकाभेद कैसा है ? मूषों, मगूसों, तिल की फलियों, मूंग की फलियों, उड़द की फलियों अथवा एरण्ड के बीजों के फटने या फाड़ने से जो भेद होता है, वह उत्कटिकाभेद है। भगवन् ! खण्डभेद से, प्रतरभेद से, चूर्णिकाभेद से, अनुतटिकाभेद से और उत्कटिकाभेद से भिदने वाले इन भाषाद्रव्यों में कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े भाषाद्रव्य उत्कटिका-भेद से, उनसे अनन्तगुणे अनुतटिकाभेद से, उनसे चूर्णिकाभेद से अनन्तगुणे हैं, उनसे अनन्तगुणे प्रतरभेद से और उनसे भी अनन्तगुणे अधिक खण्डभेद से भिन्न होनेवाले द्रव्य हैं। सूत्र - ३९५ भगवन् ! नैरयिक जिन द्रव्यों को भाषा के रूप में ग्रहण करता है, उन्हें स्थित (ग्रहण करता) है अथवा अस्थित ? गौतम ! (औधिक) जीव के समान नैरयिक में भी कहना । इसी प्रकार एकेन्द्रिय को छोड़कर वैमानिकों तक कहना । जीव जिन द्रव्यों को भाषा के रूप में ग्रहण करते हैं, क्या (वे) उन स्थित द्रव्यों को ग्रहण करते हैं, अथवा अस्थित द्रव्यों को ? गौतम ! (वे स्थित भाषाद्रव्यों को ग्रहण करते हैं ।) जिस प्रकार एकत्व-एकवचनरूप में कथन किया गया था, उसी प्रकार पृथक्त्व रूप में वैमानिक तक समझना। सूत्र-३९६ भगवन् ! जीव जिन द्रव्यों को सत्यभाषा के रूप में ग्रहण करता है, क्या (वह) उन स्थितिद्रव्यों को ग्रहण मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 86
SR No.034682
Book TitleAgam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 15, & agam_pragyapana
File Size4 MB
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