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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र उत्पन्न होते हैं तो चन्द्र यावत् ताराविमान के देवों से उत्पन्न होते हैं । यदि वैमानिक देवों से उत्पन्न होते हैं तो कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से ही उत्पन्न होते हैं । यदि कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से उत्पन्न होते हैं तो सौधर्म और ईशान कल्प के देवों से ही उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार अप्कायिकों की उत्पत्ति में कहना ।
इसी प्रकार तेजस्कायिकों एवं वायुकायिकों की उत्पत्ति में समझना । विशेष यह है कि यहाँ देवों का निषेध करना । वनस्पतिकायिकों की उत्पत्ति के विषय में, पृथ्वीकायिकों के समान जानना । द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों की उत्पत्ति तेजस्कायिकों और वायुकायिकों के समान समझना । सूत्र-३४०
भगवन ! पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! नैरयिकों यावत देवों से भी उत्पन्न होते हैं। यदि नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं तो रत्नप्रभापृथ्वी यावत् अधःसप्तमी के नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं । यदि तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं तो एकेन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! यदि एकेन्द्रियों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या पृथ्वीकायिकों से यावत् वनस्पतिकायिकों से उत्पन्न होते हैं? गौतम ! पृथ्वीकायिकों के उपपात समान पंचेन्द्रिय तिर्यंचों का उपपात कहना । विशेष यह कि सहस्रारकल्पोपपन्न वैमानिक देवों तक से भी उत्पन्न होते हैं। सूत्र-३४१
____ भगवन् ! मनुष्य कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! नैरयिकों से यावत् देवों से उत्पन्न होते हैं । यदि नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं, तो रत्नप्रभापृथ्वी यावत् तमःप्रभापृथ्वी तक के नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं, अधःसप्तमीपृथ्वी के नहीं । यदि मनुष्य तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं तो क्या एकेन्द्रिय आदि से उत्पन्न होते हैं ? पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों के उपपात समान मनुष्यों को भी कहना । विशेष यह कि (मनुष्य) अधःसप्तमीनरकपृथ्वी के नैरयिकों, तेजस्कायिकों और वायुकायिकों से उत्पन्न नहीं होते । उपपात सर्व देवों से कहना । सूत्र-३४२
भगवन् ! वाणव्यन्तर देव कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! असुरकुमारों की उत्पत्ति के समान वाणव्यन्तर देवों की भी उत्पत्ति कहना। सूत्र-३४३
भगवन् ! ज्योतिष्क देव कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! ज्योतिष्क देवों का उपपात असुरकुमारों के समान समझना । विशेष यह कि ज्योतिष्कों की उत्पत्ति सम्मूर्छिम असंख्यातवर्षायुष्क-खेचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों को तथा अन्तर्दीपज मनुष्यों को छोड़कर कहना। सूत्र-३४४
भगवन् ! वैमानिक देव कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों तथा मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार सौधर्म और ईशान कल्प के देवों में कहना । सनत्कुमार देवों में भी यहीं कहना । विशेष यह कि ये असंख्यातवर्षायुष्क अकर्मभूमिकों को छोड़कर उत्पन्न होते हैं । सहस्रारकल्प तक भी यहीं कहना।
____ आनत देव सिर्फ मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं । (वे) गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं, सम्मूर्छिम से नहीं । यदि (वे) गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न हैं तो कर्मभूमिज-गर्भज मनुष्यों से ही उत्पन्न होते हैं, अकर्मभूमिक और अन्तर्वीपज से नहीं । यदि (वे) कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं, तो संख्यात वर्ष आयुवाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं, असंख्यात वर्ष आयुवाले से नहीं । यदि संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं, तो (वे) पर्याप्तकों से उत्पन्न होते हैं, अपर्याप्तको से नहीं।
___यदि (वे) पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या (वे) सम्यग्दृष्टि, पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं ? (या) मिथ्यादृष्टि अथवा सम्यग्मिथ्यादृष्टि मनुष्यों से ? गौतम ! सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं, सम्यमिथ्यादृष्टि० मनुष्यों से नहीं । यदि (वे) सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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