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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र उत्पन्न होते हैं तो क्या (वे) संयत सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं या असंयत सम्यग्दृष्टि से अथवा संयतासंयत सम्यग्दृष्टि से? गौतम ! तीनों से । अच्युतकल्प के देवों तक इसी प्रकार कहना । इसी प्रकार ग्रैवेयकदेवों में भी समझना । विशेष यह की असंयतों और संयतासंयतों का निषेध करना।
___ यदि (वे) संयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं तो अप्रमत्त संयत-सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं प्रमत्तसंयत० से नहीं । यदि वे अप्रमत्तसंयतों से उत्पन्न होते हैं, तो वे ऋद्धिप्राप्त और अनृद्धिप्राप्त-अप्रमत्तसंयतों से भी उत्पन्न होते हैं। सूत्र-३४५
भगवन् ! नैरयिक जीव अनन्तर उद्वर्त्तन करके कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे तिर्यंचयोनिकों में या मनुष्यों में ही उत्पन्न होते हैं । यदि (वे) तिर्यंचयोनिकों में उत्पन्न होते हैं तो पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों में ही उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार उपपात के समान उद्वर्त्तना भी कहना । विशेष यह कि वे सम्मूर्छिमों में उत्पन्न नहीं होते । इसी प्रकार समस्त नरक में उद्वर्त्तना कहना । विशेष यह कि सातवी नरकपृथ्वी से मनुष्यों में उत्पन्न नहीं होते। सूत्र-३४६
___भगवन् ! असुरकुमार अनन्तर उद्वर्त्तना करके कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! (वे) तिर्यंचयोनिकों और मनुष्यों में ही उत्पन्न होते हैं । यदि (वे) तिर्यंचयोनिकों में उत्पन्न होते हैं तो वे एकेन्द्रिय और पंचेन्द्रियों तिर्यंचयोनिकों में ही उत्पन्न होते हैं । यदि एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं तो (वे) पृथ्वीकायिक, अप्कायिक और वनस्पतिकायिक में उत्पन्न होते हैं, किन्तु तेजस्कायिक और वायुकायिक एकेन्द्रियों में उत्पन्न नहीं होते । यदि पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होते हैं तो (वे) बादर पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होते हैं, सूक्ष्म में नहीं । यदि बादर पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होते हैं तो (वे) पर्याप्तकों में उत्पन्न होते हैं अपर्याप्तकों में नहीं । इसी प्रकार अप्कायिकों और वनस्पतिकायिकों में भी कहना | पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों और मनुष्यों में (सम्मूर्छिम को छोड़कर) नैरयिकों की उद्वर्त्तना के समान कहना चाहिए । असुरकुमारों की तरह स्तनितकुमारों तक की उद्वर्त्तना समझ लेना। सूत्र-३४७
भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव अनन्तर उद्वर्त्तन करके कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम (वे) तिर्यंचयोनिकों और मनुष्यों में ही उत्पन्न होते हैं । इनके उपपात के समान इनकी उद्वर्त्तना भी कहनी चाहिए । इसी प्रकार अप्कायिक, वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रियों (की भी उद्वर्त्तना कहना ।) इसी प्रकार तेजस्कायिक और वायुकायिक को भी कहना । विशेष यह कि मनुष्य में निषेध करना । सूत्र-३४८
भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक अनन्तर उद्वर्त्तना करके कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम (वे) नैरयिकों यावत् देवों में उत्पन्न होते हैं । यदि (वे) नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं, तो रत्नप्रभा यावत् अधः-सप्तमीपृथ्वी के नैरयिकों में भी उत्पन्न होते हैं । यदि (वे) तिर्यंचयोनिकों में उत्पन्न होते हैं तो एकेन्द्रियों में यावत् पंचेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं । इनके उपपात के समान इनकी उद्वर्त्तना भी कहना । विशेष यह कि ये असंख्यातवर्षों की आयुवालों में भी उत्पन्न होते हैं।
(भगवन् !) यदि (वे) मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं तो क्या सम्मूर्छिम मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं अथवा गर्भज में? गौतम ! दोनों में । इनके उपपात के समान उद्वर्त्तना भी कहना । विशेष यह कि अकर्मभूमिज, अन्तर्वीपज और असंख्यातवर्षायुष्क मनुष्यों में भी ये उत्पन्न होते हैं । यदि (वे) देवों में उत्पन्न होते हैं तो सभी देवों में उत्पन्न होते हैं । यदि (वे) भवनपति देवों में उत्पन्न होते हैं तो सभी (भवनपतियों) में उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार वाणव्यन्तरों, ज्योतिष्कों और सहस्रारकल्प तक के वैमानिक देवों में निरन्तर उत्पन्न होते हैं। सूत्र - ३४९
___भगवन् ! मनुष्य अनन्तर उद्वर्त्तन करके कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! (वे) नैरयिकों यावत् देवों में उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! क्या (मनुष्य) नैरयिक आदि सभी स्थानों में उत्पन्न होते हैं ? हा गौतम ! होते हैं, कहीं भी इनके उत्पन्न
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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