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________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश /सूत्र करना । वालुकाप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के समान पंकप्रभा में उत्पत्ति कहना । विशेष यह की खेचर का निषेध करना । पंकप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के समान धूमप्रभा का उत्पाद कहना । विशेष यह कि चतुष्पद का निषेध करना। धूमप्रभापृथ्वी के नैरयिकों की उत्पत्ति के समान तमःप्रभा में समझना । विशेष यह कि स्थलचर का निषेध करना । ___ यदि वे (धूमप्रभापृथ्वी नारक) पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं तो क्या जलचर० से या स्थलचर० से अथवा खेचर० से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! (वे) जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचों से उत्पन्न होते हैं, स्थलचर० और खेचर० से नहीं । यदि (वे) मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं तो कर्मभूमिज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं, किन्तु अकर्मभूमिज और अन्तर्वीपज से नहीं । यदि कर्मभूमिज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं तो (वे) संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं असंख्यातवर्षायुष्क० से नहीं । यदि संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं तो पर्याप्तकों से उत्पन्न होते अपर्याप्तकों से नहीं । यदि वे पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं तो गौतम (वे) स्त्रियों, पुरुषों और नपुंसकों से भी उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! अधःसप्तमी पृथ्वी के नैरयिक कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! इनकी उत्पत्ति-सम्बन्धी प्ररूपणा इसी प्रकार तमःप्रभापृथ्वी के समान समझना । विशेष यह कि स्त्रियों का निषेध करना । सूत्र - ३३५, ३३६ असंज्ञी निश्चय ही पहली (नरकभूमि) में, सरीसृप दूसरी तक, पक्षी तीसरी तक, सिंह चौथी तक, उरग पाँचवी तक । तथा- स्त्रियाँ छठी (नरकभूमि) तक और मत्स्य एवं मनुष्य (पुरुष) सातवीं तक उत्पन्न होते हैं । नरकपृथ्वीयों में इनका यह उत्कृष्ट उपपात समझना। सूत्र-३३७ भगवन् ! असुरकुमार कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! (वे) तिर्यंचयोनिकों और मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार नारकों के समान असुरकुमारों का भी उपपात कहना । विशेष यह कि असंख्यातवर्ष की आयुवाले, अकर्मभूमिज एवं अन्तर्दीपज मनुष्यों और तिर्यंचयोनिकों से भी उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक कहना सूत्र-३३८, ३३९ भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! तिर्यंचयोनिकों, मनुष्ययोनिकों तथा देवों से उत्पन्न होते हैं । यदि (वे) तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, तो एकेन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं। यदि एकेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से (वे) उत्पन्न होते हैं तो पृथ्वीकायिकों यावत् वनस्पतिकायिकों से भी उत्पन्न होते हैं। यदि पृथ्वीकायिकों से उत्पन्न होते हैं तो सूक्ष्म और बादर पृथ्वीकायिकों से उत्पन्न होते हैं ? यदि सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों से वे उत्पन्न होते हैं तो पर्याप्त अथवा अपर्याप्त दोनों से ही उत्पन्न होते हैं । यदि बादर पृथ्वीकायिकों से वे उत्पन्न होते हैं तो पर्याप्त या अपर्याप्त बादर पृथ्वीकायिकों से उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार वनस्पतिकायिकों तक कहना । यदि द्वीन्द्रिय से वे (एकेन्द्रिय जीव) उत्पन्न होते हैं तो क्या पर्याप्त द्वीन्द्रिय से उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्त से? गौतम ! दोनों से । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय से भी (वे) उत्पन्न होते हैं । यदि (वे) पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या जलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचों से उत्पन्न होते हैं इत्यादि प्रश्न | जिन-जिन से नैरयिकों का उपपात कहा है, उन-उन से पृथ्वीकायिकोंका उपपात कहना । विशेष यह कि पर्याप्तकों और अपर्याप्तकों से भी उत्पन्न होते हैं यदि (वे) मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं तो क्या सम्मूर्छिम मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं या गर्भज से ? गौतम ! पृथ्वीकायिक दोनों से उत्पन्न होते हैं । यदि गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं तो क्या कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं अथवा अकर्मभूमिज० से ? (गौतम !) नैरयिकों के उपपात समान वही (पृथ्वीकायिक आदि में समझना) विशेष यह कि अपर्याप्तक मनुष्यों से भी उत्पन्न होते हैं। (भगवन् !) यदि देवों से उत्पन्न होते हैं, तो कौन से देवों से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! भवनवासी यावत् वैमानिक देवों से । यदि भवनवासी देवों से उत्पन्न होते हैं तो असुरकुमार से लेकर स्तनितकुमार तक से उत्पन्न होते हैं। यदि वाणव्यन्तर देवों से उत्पन्न होते हैं, तो पिशाचों यावत् गन्धर्वो से उत्पन्न होते हैं । यदि ज्योतिष्क देवों से मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 69
SR No.034682
Book TitleAgam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 15, & agam_pragyapana
File Size4 MB
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