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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश/सूत्र विधबन्धक होते हैं । ७, बहुत सप्तविधबन्धक, बहुत एकविधबन्धक, बहुत अष्टविधबन्धक और एक षड्विधबन्धक होता है। ८, बहुत सप्तविध बन्धक, बहुत एकविधबन्धक, बहुत अष्टविधबन्धक और बहुत षट्विधबन्धक होते हैं । ९, इस प्रकार नौ भंग हैं।
भगवन् ! मोहनीय कर्म बाँधता जीव कितनी कर्मप्रकृतियों को बाँधता है ? गौतम ! सामान्य जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहना । जीव और एकेन्द्रिय सप्तविधबन्धक और अष्टविधबन्धक भी होते हैं।
आयुकर्म को बाँधता जीव कितनी कर्मप्रकृतियों को बाँधता है ? गौतम ! नियम से आठ प्रकृतियाँ बाँधता है। नैरयिकों से लेकर वैमानिक पर्यन्त इसी प्रकार कहना । इसी प्रकार बहुतों के विषय में भी कहना।
नाम, गोत्र और अन्तराय कर्म को बाँधता जीव ज्ञानावरणीय के समान ही कहना । इसी प्रकार नारक से लेकर वैमानिक तक एक और बहुवचन में कहना।
पद-२४-का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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