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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र पद-२५-कर्मबंधवेदपद सूत्र-५४७
भगवन ! कर्मप्रकतियाँ कितनी हैं ? गौतम ! आठ, ज्ञानावरणीय यावत अन्तराय । इसी प्रकार नैरयिकों यावत वैमानिकों तक हैं। भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म का बन्ध करता हुआ जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है ? गौतम ! आठ का । इसी प्रकार नैरयिक से वैमानिक पर्यन्त जानना । वेदनीयकर्म को छोड़कर शेष सभी कर्मों के सम्बन्ध में इसी प्रकार जानना । वेदनीयकर्म को बाँधता हुआ एक जीव ? गौतम ! सात का, आठ का अथवा चार (कर्मप्रकृतियों) वेदन करता है । इसी प्रकार मनुष्य में कहना । शेष नैरयिकों से वैमानिक पर्यन्त नियम से आठ कर्मप्रकृतियों का वेदन करते हैं । बहत जीव वेदनीयकर्म को बाँधते हुए गौतम ! सभी जीव आठ या चार कर्मप्रकृतियों के वेदक होते हैं, अथवा बहुत जीव आठ या चार कर्मप्रकृतियों के और कोई एक जीव सात कर्मप्रकृतियों का वेदक होता है, अथवा बहुत जीव आठ, चार या सात कर्मप्रकृतियों के वेदक होते हैं । इसी प्रकार बहुत-से मनुष्यों द्वारा वेदनीयकर्मबन्ध के समय वेदन सम्बन्धी कथन करना ।
पद-२५-का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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