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________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश /सूत्र पद-२४-कर्मबन्धपद सूत्र-५४६ भगवन् ! कर्म-प्रकृतियाँ कितनी हैं ? गौतम ! आठ-ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय । इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक कहना । भगवन् ! (एक) जीव ज्ञानावरणीयकर्म को बाँधता हुआ कितनी कर्म-प्रकृतियों बाँधता है ? गौतम ! सात, आठ या छह । भगवन् ! (एक) नैरयिक जीव ज्ञानावरणीयकर्म को बाँधता हुआ कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधता है ? गौतम ! सात या आठ । इसी प्रकार यावत् वैमानिक पर्यन्त कहना । विशेष यह कि मनुष्य-सम्बन्धी कथन समुच्चय-जीव के समान जानना । (बहुत) जीव ज्ञानावरणीयकर्म को बाँधते हुए कितनी कर्मप्रकृतियों को बाँधते हैं ? गौतम ! सभी जीव सात या आठ कर्मप्रकृतियों के बन्धक होते हैं; अथवा बहुत से जीव सात या आठ कर्म-प्रकृतियों के और कोई एक जीव छह का बन्धक होता है; अथवा बहुत से जीव सात, आठ या छह कर्म-प्रकृतियों के बन्धक होते हैं । (बहुत से) नैरयिक ज्ञानावरणीयकर्म को बाँधते हुए कितनी कर्म-प्रकृतियाँ बाँधते हैं ? गौतम ! सभी नैरयिक सात कर्म-प्रकृतियों के बन्धक होते हैं, अथवा बहुत से नैरयिक सात कर्म-प्रकृतियों के बन्धक और एक नैरयिक आठ कर्म-प्रकृतियों का बन्धक होता है, अथवा बहुत से नैरयिक सात या आठ कर्म-प्रकृतियों के बन्धक होते हैं । इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों तक जानना । भगवन् ! (बहुत) पृथ्वीकायिक जीव ज्ञानावरणीयकर्म को बाँधते हुए कितनी कर्मप्रकृतियों को बाँधते हैं ? गौतम ! सात अथवा आठ कर्मप्रकृतियों को । इसी प्रकार यावत् (बहुत) वनस्पतिकायिक जीवों के सम्बन्धमें कहना। विकलेन्द्रियों और तिर्यंच-पंचेन्द्रियजीवों के तीन भंग होते हैं-सभी सात कर्मप्रकृतियों के बन्धक होते हैं, अथवा बहुतसे सात कर्मप्रकृतियों के और कोई एक आठ कर्मप्रकृतियों का बन्धक होता है, अथवा बहुत-से सात के तथा बहुत-से आठ कर्मप्रकृतियों के बन्धक होते हैं । (बहुत-से) मनुष्य ज्ञानावरणीयकर्म को बाँधते हुए कितनी कर्म-प्रकृतियों को बाँधते हैं ? गौतम ! सभी मनुष्य सात कर्मप्रकृतियों के बन्धक होते हैं, अथवा बहुत-से मनुष्य सात के बन्धक और कोई एक आठ का बन्धक होता है, अथवा बहुत-से सात के तथा आठ के बन्धक होते हैं, अथवा बहुत-से सात के और कोई एक छह का बन्धक होता है, अथवा बहुत-से मनुष्य सात के और बहुत-से छह के बन्धक होते हैं, अथवा बहुत-से सात के तथा एक आठ का एवं कोई एक छह का बन्धक होता है, अथवा बहुत-से सात के, कोई एक आठ का और बहुत-से छह के बन्धक होते हैं, अथवा बहुत-से सात के, बहुत-से आठ के और एक छह का बन्धक होता है, अथवा बहुत-से सात के, बहुत-से आठ के और बहुत-से छह के बन्धक होते हैं । इस प्रकार नौ भंग हैं । शेष वाणव्यन्तरादि यावत् वैमानिक-पर्यन्त नैरयिक सात आदि कर्म-प्रकृतियों के बन्ध समान कहना । ज्ञानावरणीयकर्म के समान दर्शनावरणीयकर्म के बन्ध का कथन करना। भगवन् ! वेदनीयकर्म को बाँधता हुआ एक जीव कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधता है ? गौतम ! सात का, आठ का, छह का अथवा एक प्रकृति का । मनुष्य में भी ऐसा ही कहना । शेष नारक आदि सप्तविध और अष्टविध बन्धक होते हैं, वैमानिक तक इसी प्रकार कहना । भगवन् ! बहुत जीव वेदनीयकर्म को बाँधते हुए कितनी कर्म-प्रकृतियाँ बाँधते हैं ? गौतम ! सभी जीव सप्तविधबन्धक, अष्टविधबन्धक, एकप्रकृतिबन्धक और एक जीव छह-प्रकृतिबन्धक होता है, अथवा बहुत सप्तविधबन्धक, अष्टविधबन्धक, एकविधबन्धक या छहविधबन्धक होते हैं । शेष नारकादि से वैमानिक पर्यन्त ज्ञानावरणीय को बाँधते हुए जितनी प्रकृतियों को बाँधते हैं, उतनी का बन्ध यहाँ भी कहना । विशेष यह कि मनुष्य वेदनीयकर्म को बाँधते हए-गौतम ! सभी मनुष्य सप्तविधबन्धक और एकविध-बन्धक होते हैं १, बहुत सप्तविधबन्धक, बहुत एकविधबन्धक और एक अष्टविधबन्धक होता है। २, बहत सप्त-विधबन्धक, बहत एकविधबन्धक और बहत अष्टविधबन्धक होते हैं। ३, बहत सप्तविधबन्धक, बहत एकविध-बन्धक और एक षटविधबन्धक होता है । ४, बहत सप्तविधबन्धक, बहत एकविधबन्धक, बहुत षड्विधबन्धक होते हैं । ५, बहुत सप्तविधबन्धक, बहुत एकविधबन्धक, एक अष्टविधबन्धक और एक षड्विधबन्धक होता है । ६, बहुत सप्तविधबन्धक, बहुत एकविधबन्धक, एक अष्टविधबन्धक और बहुत षड् मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 151
SR No.034682
Book TitleAgam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 15, & agam_pragyapana
File Size4 MB
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