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________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश/सूत्र भगवन् ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल-परिणाम को प्राप्त करके दर्शनावरणीयकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव है ? गौतम ! नौ प्रकार का, निद्रा, निद्रा-निद्रा, प्रचला, प्रचला-प्रचला तथा स्त्यानर्द्धि एवं चक्षुदर्शना-वरण, अचक्षुदर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण और केवलदर्शनावरण । दर्शनावरण के उदय से जो पुद्गल, पुद्गलों अथवा पुद् गल-परिणाम को या स्वभाव से पुद्गलों के परिणाम को वेदता है, अथवा उनके उदय से देखने योग्य को, देखना चाहते हुए भी और देखकर भी नहीं देखता अथवा तिरोहित दर्शनवाला भी हो जाता है । गौतम ! यह है दर्शनावरणीयकर्म। जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल-परिणाम को पाकर सातावेदनीयकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव है ? गौतम ! आठ प्रकार का-मनोज्ञशब्द, मनोज्ञरूप, मनोज्ञगन्ध, मनोज्ञरस, मनोज्ञस्पर्श, मन का सौख्य, वचन का सौख्य और काया का सौख्य । जिस पुदगल का यावत स्वभाव से पुदगलों के परिणाम का वेदन किया जाता है, अथवा उनके उदय से सातावेदनीयकर्म को वेदा जाता है । गौतम ! यह है सातावेदनीयकर्म । ___ जीव के द्वारा बद्ध यावत् असातावेदनीयकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव है ? पूर्ववत् जानना किन्तु 'मनोज्ञ' के बदले सर्वत्र 'अमनोज्ञ' यावत् काया का दुःख जानना। जीव के द्वारा बद्ध...यावत् मोहनीयकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव है ? गौतम ! पाँच प्रकार कासम्यक्त्व-वेदनीय, मिथ्यात्व-वेदनीय, सम्यग्-मिथ्यात्व-वेदनीय, कषाय-वेदनीय और नो-कषाय-वेदनीय । जिस पुद्गल का यावत् स्वभाव से पुद्गलों के परिणाम का अथवा उनके उदय से मोहनीयकर्म वेदा जाता है। जीव के द्वारा बद्ध... यावत् आयुष्यकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव है ? गौतम ! चार प्रकार का-नारकायु, तिर्यंचायु, मनुष्यायु और देवायु । जिस पुद्गल का यावत् पुद्गलों के परिणाम का या उनके उदय से आयुष्यकर्म वेदा जाता है, गौतम ! यह है-आयुष्यकर्म । जीव के द्वारा बद्ध यावत् शुभ नामकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव है ? गौतम ! चौदह प्रकार का-इष्ट शब्द, इष्ट रूप, इष्ट गन्ध, इष्ट रस, इष्ट स्पर्श, इष्ट गति, इष्ट स्थिति, इष्ट लावण्य, इष्ट यशोकीर्ति, इष्ट उत्थान-कर्म-बलवीर्य-पुरुषकार-पराक्रम, इष्ट-स्वरता, कान्त-स्वरता, प्रिय-स्वरता और मनोज्ञ-स्वरता । जो पुद्गल यावत् पुद्गलों के परिणाम का वेदन किया जाता है अथवा उनके उदय से शुभनामकर्म को वेदा जाता है। ____ अशुभनामकर्म का जीव के द्वारा बद्ध यावत् कितने प्रकार का अनुभाव है ? गौतम ! पूर्ववत् । -अनिष्ट शब्द आदि यावत् हीत-स्वरता, दीन-स्वरता, अनिष्ट-स्वरता और अकान्त-स्वरता । जो पुद्गल आदि का वेदन किया जाता है यावत् अथवा उनके उदय से दुःख (अशुभ) नामकर्म को वेदा जाता है। जीव के द्वारा बद्ध यावत् उच्चगोत्रकर्म को कितने प्रकार का अनुभाव है ? गौतम ! आठ प्रकार का-जाति, कुल, बल, रूप, तप, श्रुत, लाभ और ऐश्वर्य की विशिष्टता । जो पुद्गल यावत् पुद्गलों के परिणाम को वेदा जाता है अथवा उनके उदय से उच्चगोत्रकर्म को वेदा जाता है। जीव के द्वारा बद्ध यावत् नीचगोत्रकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव है ? गौतम ! पूर्ववत् जाति यावत् ऐश्वर्यविहीनता । पुदगल का, यावत् पुदगलों के परिणाम जो वेदा जाता है अथवा उन्हीं के उदय से नीचगोत्रकर्म का वेदन किया जाता है। जीव के द्वारा बद्ध यावत् अन्तरायकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव है ? गौतम ! पाँच प्रकार कादानान्तराय, लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्तराय और वीर्यान्तराय । पुद्गल का यावत् पुद्गलों के परिणाम का जो वेदन किया जाता है अथवा उनके उदय से जो अन्तरायधर्म को वेदा जाता है । पद-२३ उद्देशक-२ सूत्र-५४० भगवन् ! कर्मप्रकृतियाँ कितनी हैं ? गौतम ! आठ-ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय । भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म कितने प्रकार का है ? गौतम ! पाँच प्रकार का आभिनिबोधिक यावत् केवलज्ञानावरणीय । दर्शनावरणीयकर्म मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 143
SR No.034682
Book TitleAgam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 15, & agam_pragyapana
File Size4 MB
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