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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र पद-२०-अन्तक्रिया सूत्र -४९६
अन्तक्रियासम्बन्धी १० द्वार-नैरयिकों की अन्तक्रिया, अनन्तरागत जीव-अन्तक्रिया, एक समय में अन्तक्रिया, उद्वृत्त जीवों की उत्पत्ति, तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, माण्डलिक और रत्नद्वार । सूत्र - ४९७
भगवन् ! क्या जीव अन्तक्रिया करता है ? हाँ, गौतम ! कोई जीव करता है और कोई नहीं करता । इसी प्रकार नैरयिक से वैमानिक तक की अन्तक्रिया में समझना । भगवन् ! क्या नारक, नारकों में अन्तक्रिया करता है? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । इसी प्रकार नारक की वैमानिकों तक में अन्तक्रिया शक्य नहीं है । विशेष यह कि नारक मनुष्यों में आकर कोई अन्तक्रिया करता है और कोई नहीं करता । इसी प्रकार असुरकुमार से वैमानिक तक भी समझना । इसी प्रकार चौबीस दण्डकों में ५७६ (प्रश्नोत्तर) होते हैं। सूत्र-४९८
भगवन् ! नारक क्या अनन्तरागत अन्तक्रिया करते हैं, अथवा परम्परागत ? गौतम ! दोनों । इसी प्रकार रत्नप्रभा से पंकप्रभा नरकभूमि के नारकों तक की अन्तक्रिया में समझना । धूमप्रभापृथ्वी के नारक? हे गौतम ! (वे) परम्परागत अन्तक्रिया करते हैं । इसी प्रकार अधःसप्तमपृथ्वी तक के नैरयिकों में जानना । असुरकुमार से स्तनितकुमार तक तथा पृथ्वीकायिक, अप्कायिक और वनस्पतिकायिक जीवो दोनों अन्तक्रिया करते हैं । तेजस्कायिक, वायुकायिक और विकलेन्द्रिय परम्परागत अन्तक्रिया ही करते हैं । शेष जीव दोनों अन्तक्रिया करते हैं। सूत्र-४९९
भगवन् ! अनन्तरागत कितने नारक एक समय में अन्तक्रिया करते हैं ? गौतम ! जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट दस । रत्नप्रभापृथ्वी यावत् वालुकाप्रभापृथ्वी के नारक भी इसी प्रकार अन्तक्रिया करते हैं । भगवन् ! अनन्तरागत पंकप्रभापृथ्वी के कितने नारक एक समय में अन्तक्रिया करते हैं ? गौतम ! जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट चार | भगवन् ! अनन्तरागत कितने असुरकुमार एक समय में अन्तक्रिया करते हैं ? गौतम ! जघन्य एक, दो या तीन, उत्कृष्ट दस । भगवन् ! अनन्तरागत असुरकुमारियाँ ? गौतम ! जघन्य एक, दो या तीन, उत्कृष्ट पाँच अन्तक्रिया करती हैं । असुरकुमारों के समान स्तनितकुमारों तक ऐसे ही समझना।
भगवन् ! कितने अनन्तरागत पृथ्वीकायिक एक समय में अन्तक्रिया करते हैं ? गौतम ! जघन्य एक, दो या तीन, उत्कृष्ट चार । इसी प्रकार अप्कायिक चार, वनस्पतिकायिक छह, पंचेन्द्रिय तिर्यंच दस, मनुष्य दस, मनुष्य-नियाँ बीस, वाणव्यन्तर देव दस, वाणव्यन्तर देवियाँ पाँच, ज्योतिष्क देव दस, ज्योतिष्क देवियाँ बीस, वैमानिक देव एक सौ साठ, वैमानिक देवियाँ बीस अन्तक्रिया करती हैं। सूत्र-५००
भगवन् ! नारक जीव, नारकों में से उद्वर्त्तन कर क्या (सीधा) नारकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं हैं । भगवन् ! नारक जीव नारकों में से निकल कर क्या असुरकुमारों में उत्पन्न हो सकता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं । इसी तरह निरन्तर यावत् चतुरिन्द्रिय में उत्पन्न हो सकता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं । भगवन् नारक जीव नारकों में से उद्वर्त्तन कर अन्तर रहित पंचेन्द्रियतिर्यंच में उत्पन्न हो सकता है ? गौतम ! कोई होता है और कोई नहीं होता । भगवन् ! तिर्यंचपंचेन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होनेवाला नारक क्या केवलिप्ररूपित धर्म-श्रवण कर सकता है ? गौतम ! कोई कर सकता है और कोई नहीं। भगवन् ! वह जो केवलि-प्ररूपित धर्मश्रवण कर सकता है, वह क्या केवल बोधि को समझता है ? गौतम ! कोई समझता है, कोई नहीं समझता । भगवन् ! जो केवलिबोधि को समझे क्या वह श्रद्धा, प्रतीति तथा रुचि करता है ? हाँ, गौतम ! करता है । भगवन् ! जो श्रद्धा आदि करता है (क्या) वह आभिनिबोधिक और श्रुतज्ञान उपार्जित करता है? हाँ, गौतम ! करता है।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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