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________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश /सूत्र भगवन् ! जो आभिनिबोधिक एवं श्रुतज्ञान प्राप्त करता है, (क्या) वह शील, व्रत, गुण, विरमण, प्रत्याख्यान अथवा पौषधोपवास अंगीकार करने में समर्थ होता है ? गौतम! कोई होता है, कोई नहीं होता । भगवन् ! जो शील यावत् पौषधोपवास अंगीकार करता है (क्या) वह अवधिज्ञान को उपार्जित कर सकता है ? गौतम ! कोई कर सकता है, कोई नहीं । भगवन् ! जो अवधिज्ञान उपार्जित करता है, (क्या) वह प्रव्रजित होने में समर्थ है? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! नारक, नारकोंमें से उद्वर्त्तन कर क्या सीधा मनुष्योंमें उत्पन्न होता है ? गौतम ! कोई होता है और कोई नहीं | भगवन् ! जो उत्पन्न होता है, (क्या) वह केवलि-प्रज्ञप्त धर्मश्रवण पाता है? गौतम ! पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों में धर्मश्रवण से अवधिज्ञान तक कहा है, वैसे ही यहाँ कहना । विशेष यह की जो (मनुष्य) अवधिज्ञान पाता है, उनमें से कोई प्रव्रजित होता है और कोई नहीं होता । भगवन् ! जो प्रव्रजित होने में समर्थ है, (क्या) वह मनःपर्यवज्ञान पा सकता है ? गौतम ! कोई पा सकता है और कोई नहीं । भगवन् ! जो मनः पर्यवज्ञान पाता है (क्या) वह केवलज्ञान को पा सकता है ? गौतम ! कोई पा सकता है (और) कोई नहीं । भगवन! जो केवलज्ञान को पा लेता है, (क्या) वह सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हो यावत् सब दुःखों का अन्त कर सकता है ? हा गौतम! ऐसा ही है । भगवन् ! नारक जीव, नारकों में से निकलकर वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क या वैमानिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है सूत्र-५०१ भगवन् ! असुरकुमार, असुरकुमारों में से निकल कर नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! असुरकुमार, असुरकुमारों में से निकल कर असुरकुमारों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों तक समझ लेना । भगवन् ! (क्या) असुरकुमार, असुरकुमारों में से निकल कर सीधा पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! कोई होता है, कोई नहीं। भगवन् ! जो उत्पन्न होता है, वह केवलिप्रज्ञप्त धर्मश्रवण करता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । इसी प्रकार अप्कायिक और वनस्पतिकायिक जीवों में भी समझना । भगवन् ! असुरकुमार, असुरकुमारों में से निकल कर, सीधा तेजस्कायिक, वायुकायिक, विकलेन्द्रियों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । अवशिष्ट पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक आदि में असुरकुमार की उत्पत्ति आदि नैरयिक अनुसार समझना । इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त जानना । सूत्र-५०२ भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव, पृथ्वीकायिकों में से उद्वर्त्तन कर सीधा नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । इस प्रकार स्तनितकमारों तक समझ लेना । भगवन ! पथ्वीकायिक जीव, पथ्वीकायिकों में से निकल कर सीधा पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! कोई होता है, कोई नहीं । जो उत्पन्न होता है, वह केवलिप्रज्ञप्त धर्मश्रवण प्राप्त कर सकता है ? यह अर्थ समर्थ नहीं है । इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय तक में कहना । पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों और मनुष्यों में नैरयिक के समान कहना । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों में निषेध करना । पृथ्वीकायिक के समान अप्कायिक एवं वनस्पतिकायिक में भी कहना। भगवन् ! तेजस्कायिक जीव, तेजस्कायिकों में से उद्वत्त होकर क्या सीधा नारकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक उत्पत्ति का निषेध समझना । पृथ्वीकायिक, यावत् चतुरिन्द्रियों में कोई (तेजस्कायिक) उत्पन्न होता है और कोई नहीं। भगवन् ! जो तेजस्कायिक उत्पन्न होता है, वह केवलिप्रज्ञप्त धर्मश्रवण कर सकता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । तेजस्कायिक जीव, तेजस्कायिकों में से निकल कर सीधा पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिकों में कोई उत्पन्न होता है और कोई नहीं होता । जो उत्पन्न होता है, उनमें से कोई धर्मश्रवण प्राप्त करता है, कोई नहीं । जो केवलिप्रज्ञप्त धर्मश्रवण प्राप्त करता है, बोधि को समझ नहीं पाता । तेजस्कायिक जीव, इन्हीं में से निकल कर सीधा मनुष्य तथा वाणव्यन्तर-ज्योतिष्क-वैमानिकों में उत्पन्न नहीं होता। तेजस्कायिक की अनन्तर उत्पत्ति के समान वायुकायिक में भी समझ लेना। सूत्र-५०३ भगवन ! द्वीन्द्रिय जीव, द्वीन्द्रिय जीवों में से निकल कर सीधा नारकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! पृथ्वी मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 126
SR No.034682
Book TitleAgam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 15, & agam_pragyapana
File Size4 MB
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