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________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश /सूत्र पद-१९-सम्यक्त्व सूत्र-४९५ भगवन् ! जीव सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं अथवा सम्यगमिथ्यादष्टि हैं ? गौतम ! तीनों । इसी प्रकार नैरयिक जीवों को भी जानना । असुरकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों तक भी इसी प्रकार जानना । भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव ? गौतम ! पृथ्वीकायिक मिथ्यादृष्टि ही होते हैं । इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिकों को समझना। भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव ? गौतम ! द्वीन्द्रिय जीव सम्यग्दृष्टि भी होते हैं, मिथ्यादृष्टि भी होते हैं । इसी प्रकार चतुरि-न्द्रिय जीवों तक कहना । पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक, मनुष्य, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव में तीनों दृष्टि होते हैं । भगवन् ! सिद्ध जीव ? वे सम्यग्दृष्टि ही होते हैं। पद-१९-का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 124
SR No.034682
Book TitleAgam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 15, & agam_pragyapana
File Size4 MB
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