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आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र और १८९७ योजन से कुछ अधिक परिधि है । पंचम चतुष्क में ७०० योजन का आयाम-विष्कम्भ और २२१३ योजन से कुछ अधिक की परिधि है । छठे चतुष्क में ८०० योजन का आयाम-विष्कम्भ और २५२९ योजन से कुछ अधिक की परिधि है । सातवें चतुष्क में ९०० योजन का आयाम-विष्कम्भ और साधिक २८४५ योजन परिधि है। सूत्र - १४९
जिसका जो आयाम-विष्कम्भ है वही उसका अवगाहन है । (प्रथम चतुष्क से द्वितीय चतुष्क की परिधि ३१६ योजन अधिक, इसी क्रम से ३१६-३१६ योजन की परिधि बढ़ाना चाहिए ।) सूत्र - १५०
आयुष्मन् श्रमण ! शेष वर्णन एकोरुकद्वीप की तरह शुद्धदंतद्वीप पर्यन्त समझ लेना यावत् वे मनुष्य देवलोक में उत्पन्न होते हैं । हे भगवन् ! उत्तरदिशा के एकोरुक मनुष्यों का एकोरुक नामक द्वीप कहाँ है ? गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के उत्तर में शिखरी वर्षधरपर्वत के उत्तरपूर्वी चरमान्त से लवणसमुद्र में तीन सौ योजन आगे जाने पर एकोरुक द्वीप है-इत्यादि सब वर्णन दक्षिण दिशा के एकोरुक द्वीप की तरह जानना, अन्तर यह है कि यहाँ शिखरी वर्षधरपर्वत की विदिशाओं में ये स्थित है, ऐसा कहना । इस प्रकार शुद्धदंतद्वीप पर्यन्त कथन करना। सूत्र-१५१
हे भगवन् ! अकर्मभूमिक मनुष्य कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! तीस प्रकार के पाँच हैमवत में इत्यादि प्रज्ञापनासूत्र के अनुसार जानना । हे भगवन् ! कर्मभूमिक मनुष्यों के कितने प्रकार हैं ? गौतम ! पन्द्रह प्रकार केपाँच भरत, पाँच ऐरवत और पाँच महाविदेह के मनुष्य । वे संक्षेप से दो प्रकार के हैं, यथा-आर्य और म्लेच्छ । इस प्रकार प्रज्ञापनासूत्र अनुसार कहना । उसके साथ ही मनुष्यों का कथन सम्पूर्ण हुआ।
प्रतिपत्ति-३-'मनुष्य उद्देशक' का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (जीवाजीवाभिगम)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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