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________________ आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम' प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र प्रतिपत्ति-३-देवाधिकार सूत्र-१५२ देव के कितने प्रकार हैं? चार प्रकार हैं-भवनवासी, वानव्यंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक । सूत्र-१५३ भवनवासी देवों के कितने प्रकार हैं ? दस प्रकार के हैं, यथा-असुरकुमार आदि प्रज्ञापनासूत्र में कहे हुए देवों के भेद का कथन करना यावत् अनुत्तरोपपातिक देव पाँच प्रकार के हैं, यथा-विजय, वैजयंत, जयंत, अपराजित और सर्वार्थसिद्ध। सूत्र-१५४ हे भगवन् ! भवनवासी देवों के भवन कहाँ कहे गये हैं ? वे भवनवासी देव कहाँ रहते हैं ? हे गौतम ! रत्नप्रभा पृथ्वी के मध्य के एक लाख अठहतर हजार योजनप्रमाण क्षेत्र में भवनावास कहे गये हैं आदि वर्णन प्रज्ञापनासूत्र अनुसार जानना । वहाँ भवनवासी देवों के सात करोड़ बहत्तर लाख भवनावास हैं। उनमें बहुत से भवनवासी देव रहते हैं, यथा-असुरकुमार, आदि वर्णन प्रज्ञापनासूत्र अनुसार कहना यावत् दिव्य भोगों का उपभोग करते हुए विचरते हैं। सूत्र - १५५ हे भगवन् ! असुरकुमार देवों के भवन कहाँ हैं ? गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र के स्थानपद अनुसार यहाँ समझना यावत् दिव्य-भोगों को भोगते हुए वे विचरण करते हैं । हे भगवन् ! दक्षिण दिशा के असुरकुमार देवों के भवनों के संबंध में प्रश्न है ? गौतम ! स्थानपद समान जानना यावत् असुरकुमारों का इन्द्र चमर वहाँ दिव्य भोगों का उपभोग करता हुआ विचरता है। सूत्र - १५६ हे भगवन् ! असुरेन्द्र असुरराज चमर की कितनी परिषदाएं हैं ? गौतम ! तीन-समिता, चंडा और जाता । आभ्यन्तर पर्षदा समिता, मध्यम परिषदा चंडा और बाह्य परिषदा जाया कहलाती है । गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर की आभ्यन्तर परिषदा में २४०००, मध्यम परिषदा में २८००० और बाह्य परिषदा में ३२००० देव हैं । हे गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर की आभ्यन्तर परिषद् में साढ़े तीन सौ, मध्यम परिषद् में तीन सौ और बाह्य परिषद् में ढाई सौ देवियाँ हैं । हे गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर की आभ्यन्तर परिषदा के देवों की स्थिति ढ़ाई पल्योपम, मध्यम पर्षदा के देवों की दो पल्योपम और बाह्य परिषदा के देवों की डेढ़ पल्योपम की स्थिति है। आभ्यन्तर पर्षदा की देवियों की डेढ़ पल्योपम, मध्यम परिषदा की देवियों की एक पल्योपम की और बाह्य परिषद् की देवियों की स्थिति आधे पल्योपम की है। हे भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि असुरेन्द्र असुरराज चमरकी तीन पर्षदा है इत्यादि प्रश्न। गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर की आभ्यन्तर परिषदा के देव बुलाये जाने पर आते हैं, बिना बुलाये नहीं आते । मध्यम परिषद् के देव बुलाने पर भी आते हैं और बिना बुलाये भी आते हैं । बाह्य परिषदा के देव बिना बुलाये आते हैं। गौतम ! दूसरा कारण यह कि असुरेन्द्र असुरराज चमर किसी प्रकार के ऊंचे-नीचे, शोभन-अशोभन कौटुम्बिक कार्य आ पड़ने पर आभ्यन्तर परिषद् के साथ विचारणा करता है, उनकी सम्मति लेता है । मध्यम परिषदा को अपने निश्चित किये कार्य की सूचना देकर उन्हें स्पष्टता के साथ कारणादि समझाता है और बाह्य परिषदा को आज्ञा देता हुआ विचरता है । इस कारण गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि असुरेन्द्र असुरराज चमर की तीन परिषदाएं हैं। सूत्र - १५७ हे भगवन् ! उत्तर दिशा के असुरकुमारों के भवन कहाँ हैं ? गौतम ! स्थान पद के समान कहना यावत् वहाँ वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि निवास करता है यावत् दिव्य भोगों का उपभोग करता हुआ विचरता है । हे भगवन् ! मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (जीवाजीवाभिगम) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 53
SR No.034681
Book TitleAgam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 14, & agam_jivajivabhigam
File Size4 MB
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