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________________ आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम' प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र अनुत्तरोपपातिक देवपुरुष असंख्यातगुण, उनसे उपरिम ग्रैवेयक देव पुरुष संख्यातगुण, उनसे मध्यम ग्रैवेयक देवपुरुष संख्यातगुण, उनसे अधस्तन ग्रैवेयक देवपुरुष संख्यातगुण, उनसे अच्युतकल्प के देवपुरुष संख्यातगुण, उनसे यावत् आनतकल्प के देवपुरुष संख्यातगुण, उनसे सहस्रारकल्प के देवपुरुष असंख्यातगुण, उनसे महाशुक्रकल्प के देवपुरुष असंख्यातगुण, उनसे यावत् महेन्द्रकल्प के के देवपुरुष असंख्यातगुण, उनसे सनत्कुमारकल्प के देव-पुरुष असंख्यातगुण, उनसे ईशानकल्प के देवपुरुष असंख्यातगुण, उनसे सौधर्मकल्प के देवपुरुष संख्यातगुण, उनसे भवनवासी देवपुरुष असंख्यातगुण, उनसे खेचर तिर्यंचयोनिक पुरुष असंख्यातगुण, उनसे स्थलचर तिर्यंच योनिक पुरुष संखेयगुण, उनसे जलचर तिर्यंचयोनिक पुरुष असंखेयगुण, उनसे वाणव्यन्तर देवपुरुष संखेयगुण, उनसे ज्योतिषी देवपुरुष संखेयगुण हैं। सूत्र - ६५ हे भगवन् ! पुरुषवेद की कितने काल की बंधस्थिति है ? गौतम ! जघन्य आठ वर्ष और उत्कृष्ट दस कोड़ाकोड़ी सागरोपम । एक हजार वर्ष का अबाधाकाल है । अबाधाकाल से रहित स्थिति कर्मनिषेक है । भगवन्! पुरुषवेद किस प्रकार का हे ? गौतम ! वन की अग्निज्वाला के समान है। सूत्र-६६ भन्ते ! नपुंसक कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! तीन प्रकार के नैरयिक नपुंसक, तिर्यक्योनिक नपुंसक और मनुष्ययोनिक नपुंसक । नैरयिक नपुंसक सात प्रकार के हैं, यथा-रत्नप्रभापृथ्वी नैरयिक नपुंसक, यावत् अधःसप्तमीपृथ्वी नैरयिक नपुंसक । तिर्यंचयोनिक नपुंसक पाँच प्रकार के हैं, यथा-एकेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक नपुंसक यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक नपुंसक । एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक कितने प्रकार के हैं ? पाँच प्रकार के हैं, यथा-पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक तिर्यक्योनिक नपुंसक । भन्ते ! द्वीन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! अनेक प्रकार के हैं । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय का कथन करना । पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक तीन प्रकार के हैं-जलचर, स्थलचर और खेचर । जलचर कितने प्रकार के हैं ? वही पूर्वोक्त भेद आसालिक को छोड़कर कहना। भन्ते ! मनुष्य नपुंसक तीन प्रकार के हैं, यथा-कर्मभूमिक, अकर्मभूमिक और अन्तर्दीपिक, पूर्वोक्त भेद कहना । सूत्र-६७ भगवन् ! नपुंसक की कितने काल की स्थिति है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम । भगवन् ! नैरयिक नपुंसक की कितनी स्थिति है ? गौतम ! जघन्य से दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम । भगवन् ! तिर्यक्योनिक नपुंसक की ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटी । भगवन् ! एकेन्द्रिय तिर्यकयोनिक नपंसक की? गौतम ! जघन्य से अन्तर्महर्त्त और उत्कष्ट बाईस हजार वर्ष पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक ? गौतम ! जघन्य से अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष। सब एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय नपंसकों की स्थिति कहना । भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक की कितनी स्थिति है ? गौतम ! जघन्य से अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटी । इसी प्रकार जलचरतिर्यंच, चतुष्पदस्थलचर, उरपरिसर्प, भुजपरिसर्प, खेचर तिर्यक्योनिक नपुंसक इन सबकी जघन्य से अन्तमुहूर्त, उत्कृष्ट पूर्वकोटी स्थिति है । भगवन् ! मनुष्य नपुंसक की स्थिति कितनी है ? गौतम ! क्षेत्र की अपेक्षा जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटी । धर्माचरण की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटी स्थिति । कर्मभूमिक भरत-एरवत, पूर्वविदेह-पश्चिमविदेह के मनुष्य नपुंसक की स्थिति भी इसी प्रकार कहना । भगवन् ! अकर्मभूमिक मनुष्य नपुंसक की ? गौतम ! जन्म की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से भी अन्तर्मुहूर्त । संहरण की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से देशोन पूर्वकोटी । इसी प्रकार अन्तर्दीपिक मनुष्य नपुंसकों तक की स्थिति कहना । भगवन् ! नपुंसक, नपुंसक के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य से एक समय और उत्कृष्ट मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (जीवाजीवाभिगम)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 22
SR No.034681
Book TitleAgam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 14, & agam_jivajivabhigam
File Size4 MB
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