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आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र सूत्र-६१
हे भगवन् ! पुरुष की कितने काल की स्थिति है ? गौतम ! जघन्य से अन्तमुहूर्त और उत्कर्ष से तेंतीस सागरोपम । तिर्यंचयोनिक पुरुषों की और मनुष्य पुरुषों की स्थिति उनकी स्त्रियों के समान है । देवयोनिक पुरुषों की यावत् सर्वार्थसिद्ध विमान के देव पुरुषों की स्थिति प्रज्ञापना के स्थितिपद समान है। सूत्र - ६२
हे भगवन् ! पुरुष, पुरुषरूप में कितने काल तक रह सकता है ? गौतम ! जघन्य से अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट से सागरोपम शतपृथक्त्व से कुछ अधिक काल तक । भगवन् ! तिर्यंचयोनि-पुरुष ? गौतम ! जघन्य से अन्तमुहूर्त
और उत्कृष्ट पूर्वकोटी पृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम तक । इस प्रकार से जैसे स्त्रियों की संचिटणा कही, वैसे खेचर तिर्यंचयोनि पुरुष पर्यन्त की संचिट्ठणा है ।
भगवन् ! मनुष्य पुरुष उसी रूप में काल से कितने समय तक रह सकता है ? गौतम ! क्षेत्र की अपेक्षा जघन्य अन्तमुहर्त्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटी पृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम तक | धर्माचरण की अपेक्षा जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटी । इसी प्रकार पूर्वविदेह, पश्चिमविह कर्मभूमिक मनुष्य-पुरुषों तक कहना । अकर्मभूमिक मनुष्यपुरुषों के लिए अकर्मभूमिक मनुष्यस्त्रियों के समान । इसी प्रकार अन्तर्वीपों के अकर्मभूमिक मनुष्यपुरुषों तक जानना । देवपुरुषों की जो स्थिति कही है, वही उसका संचिट्ठणा काल है । ऐसा ही कथन सर्वार्थ सिद्ध के देवपुरुषों तक कहना । सूत्र-६३
भन्ते ! पुरुष, पुरुष-पर्याय छोड़ने के बाद फिर कितने काल पश्चात् पुरुष होता है ? गौतम ! जघन्य से एक
और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल | भगवन् ! तिर्यक्योनिक पुरुष ? गौतम ! जघन्य से अन्तमुहर्त्त और उत्कृष्ट वनस्पतिका का अन्तर है । इसी प्रकार खेचर तिर्यक्योनिक पर्यन्त जानना । भगवन् ! मनुष्य पुरुषों का अन्तर कितने काल का है ? गौतम ! क्षेत्र की अपेक्षा जघन्य अन्तमहर्त्त और उत्कष्ट वनस्पतिकाल, धर्माचरण की अपेक्षा जघन्य से एक समय और उत्कृष्ट से अनन्त काल यावत् वह देशोन अर्धपुदगल परावर्तकाल होता है।
कर्मभूमि के मनुष्य का यावत् विदेह के मनुष्यों का अन्तर यावत धर्माचरण की अपेक्षा एक समय इत्यादि मनुष्यस्त्रियों के समान कहना । अन्तर्वीपों के अन्तर तक उसी प्रकार कहना । देवपुरुषों का जघन्य अन्तर अन्तमुहर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है । यही भवनवासी देवपुरुष से लगा कर सहस्रार देवलोक तक के देव पुरुषों के विषय में समझना । भगवन् ! आनत देवपुरुषों का अन्तर जघन्य से वर्षपृथक्त्व और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल । इसी प्रकार ग्रैवेयक देवपुरुषों का भी अन्तर जानना । अनुत्तरोपपातिक देवपुरुषों का अन्तर जघन्य से वर्षपृथक्त्व और उत्कृष्ट संख्यात सागरोपम से कुछ अधिक है। सूत्र - ६४
स्त्रियों का जैसा अल्पबहुत्व कहा यावत् हे भगवन् ! देव पुरुषों-भवनपति, वानव्यंतर, ज्योतिष्क और वैमानिकों में कौन किससे अल्प, अधिक, तुल्य या विशेषाधिक है ? गौतम ! सबसे थोड़े वैमानिक देवपुरुष, उनसे भवनपति देवपुरुष असंख्येयगुण, उनसे वानव्यन्तर देवपुरुष असंख्येय गुण, उनसे ज्योतिष्क देवपुरुष संख्येयगुणा हैं । हे भगवन् ! इन तिर्यंचयोनिक पुरुषों-जलचर, स्थलचर और खेचर; मनुष्य पुरुषों-कर्मभूमिक, अकर्मभूमिक, अन्तर्दीपकों में; देवपुरुषों-भवनवासी, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों-सौधर्म देवलोक यावत् सर्वार्थसिद्ध देवपुरुषों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ?
गौतम ! सबसे थोड़े अन्तर्वीपों के मनुष्य पुरुष, उनसे देवकुरु उत्तरकुरु अकर्मभूमिक मनुष्यपुरुष दोनों संख्यातगुण, उनसे हरिवास रम्यकवास अकर्मभूमिक मनुष्यपुरुष दोनों संख्यातगुण, उनसे हेमवत हैरण्यवत अकर्म भूमिक मनुष्यपुरुष दोनों संख्यातगुण, उनसे भरत ऐरवतवास कर्मभूमि के मनुष्यपुरुष दोनों संख्यातगुण, उनसे
मुनि दीपरत्नसागर कृत्- (जीवाजीवाभिगम) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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