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आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र उत्कर्ष से अनन्तकाल अर्थात् वनस्पतिकाल । ऐसा सब तिर्यंचस्त्रियों में कहना । मनुष्यस्त्रियों का अन्तर क्षेत्र की अपेक्षा जघन्य से अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल | धर्माचरण की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अनन्तकाल यावत् देशोन अपार्धपुद्गलपरावर्तन । इसी प्रकार यावत् पूर्वविदेह और पश्चिमविदेह की मनुष्यस्त्रियों को जानना । भन्ते ! अकर्मभूमिक मनुष्यस्त्रियों का अन्तर कितना है ? गौतम ! जन्म की अपेक्षा जघन्य अन्त-मुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल । संहरण की अपेक्षा से जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल । इस प्रकार यावत् अन्तर्वीपों की स्त्रियों का अन्तर कहना । सभी देवस्त्रियों का अन्तर जघन्य से अन्तमुहूर्त और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल है। सूत्र -५८
हे भगवन् ! इन स्त्रियों में कौन किससे अल्प है, अधिक है, तुल्य है या विशेषाधिक है ? गौतम ! सबसे थोड़ी मनुष्यस्त्रियाँ, उन से तिर्यक्योनिक स्त्रियाँ असंख्यातगुणी, उन से देवस्त्रियाँ असंख्यातगुणी हैं । भगवन् ! इन तिर्यक्योनि में कौन किस से अल्प, अधिक, तुल्य या विशेषाधिक है ? गौतम ! सबसे थोड़ी खेचर तिर्यक्योनि की स्त्रियाँ, उनसे स्थलचर तिर्यक्योनि की स्त्रियाँ संख्यातगुणी, उनसे जलचर तिर्यक्योनि की स्त्रियाँ संख्यातगुणी हैं । हे भगवन् ! कर्मभूमिक, अकर्मभूमिक और अंतरद्वीप की मनुष्य स्त्रियों में ? गौतम ! सबसे थोड़ी अन्तर्वीपों की मनुष्यस्त्रियाँ, उनसे देवकुरु-उत्तरकुरु-अकर्मभूमि की मनुष्यस्त्रियाँ दोनों परस्पर तुल्य और संख्यातगुणी हैं, उनसे हरिवास-रम्यकवास-अकर्मभूमि की मनुष्यस्त्रियाँ परस्पर तुल्य और संख्यातगुणी हैं, उनसे हेमवत और एरण्यवत
अकर्मभूमि की मनुष्यस्त्रियाँ परस्पर तुल्य और संख्यातगुणी हैं, उनसे भरत-एरवत क्षेत्र की कर्मभूमि की मनुष्यस्त्रियाँ दोनों परस्पर तुल्य और संख्यातगुणी हैं, उनसे पूर्वविदेह-पश्चिमविदेह कर्मभूमि की मनुष्यस्त्रियाँ दोनों परस्पर तुल्य और संख्यातगुणी हैं।
भगवन् ! भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवस्त्रियों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़ी वैमानिक देवियाँ, उनसे भवनवासी देवियाँ असंख्यातगुणी, उनसे वाणव्यन्तरदेवियाँ असंख्यातगुणी, उनमें ज्योतिष्कदेवियाँ संख्यातगुणी हैं । पाँचवा अल्पबहुत्व यह है ? गौतम ! सबसे थोड़ी अकर्मभूमि की अन्तर्वीपों की मनुष्यस्त्रियाँ, उनसे देवकुरु-उत्तरकुरु की अकर्मभूमि की मनुष्यस्त्रियाँ दोनों परस्पर तुल्य और संख्यातगुणी; उनसे हरिवास-रम्यकवास अकर्मभूमि की मनुष्यस्त्रियाँ दोनों परस्पर तुल्य और संख्यातगुणी, उनसे हैमवत-हैरण्यवत अकर्मभूमि की मनुष्यस्त्रियाँ दोनों परस्पर तुल्य और संख्यातगुणी; उनसे भरत-एरवत कर्मभूमि की मनुष्यस्त्रियाँ दोनों परस्पर तुल्य और संख्यातगुणी, उनसे पूर्वविदेह और पश्चिमविदेह कर्मभूमि की मनुष्यस्त्रियाँ दोनों परस्पर तुल्य और संख्यातगुणी, उनसे वैमानिकदेवियाँ असंख्यातगुणी, उनसे भवन वासीदेवियाँ असंख्यातगुणी, उनसे खेचरतिर्यक्योनि की स्त्रियाँ असंख्यातगुणी, उनसे स्थलचरस्त्रियाँ संख्यातगुणी, उनसे जलचरस्त्रियाँ संख्यातगुणी, उनसे वानव्यन्तरदेवियाँ संख्यातगुणी, उनसे ज्योतिष्कदेवियाँ संख्यातगुणी है। सूत्र - ५९
हे भगवन ! स्त्रीवेदकर्म की कितने काल की बन्धस्थिति है ? गौतम ! जघन्य से पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम देढ़ सागरोपम के सातवें भाग और उत्कर्ष से पन्द्रह कोड़ाकोड़ी सागरोपम की बन्धस्थिति है । पन्द्रह सौ वर्ष का अबाधाकाल है। अबाधाकाल से रहित जो कर्मस्थिति है वही अनुभवयोग्य होती है, अतः वही कर्मनिषेक है । हे भगवन् ! स्त्रीवेद किस प्रकार का है ? गौतम ! स्त्रीवेद फुफु अग्नि के समान होता है । सूत्र-६०
पुरुष कितने प्रकार के हैं ? तीन प्रकार के-तिर्यक्योनिक पुरुष, मनुष्य पुरुष और देव पुरुष । तिर्यक्योनिक पुरुष तीन प्रकार के हैं-जलचर, स्थलचर और खेचर । इस प्रकार जैसे स्त्री अधिकार में भेद कहे गये हैं, वैसे यावत् खेचर पर्यन्त कहना । मनुष्य पुरुष तीन प्रकार के हैं-कर्मभूमिक, अकर्मभूमिक और अन्तर्वीपक । देव पुरुष चार प्रकार के हैं। इस प्रकार पूर्वोक्त स्त्री अधिकार में कहे गये भेद कहना यावत् सर्वार्थसिद्ध तक देव भेदों का कथन करना ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (जीवाजीवाभिगम)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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