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आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र सूत्र - ५६
है भगवन् ! स्त्री, स्त्रीरूप में लगातार कितने समय तक रह सकती है ? गौतम ! एक अपेक्षा से जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पूर्वकोटी पृथक्त्व अधिक एक सौ दस पल्योपम तक, दूसरी अपेक्षा से जघन्य एक समय और उत्कृष्ट से पूर्वकोटी पृथक्त्व अधिक अठारह पल्योपम तक, तीसरी अपेक्षा से जघन्य एक समय और उत्कर्ष से पूर्वकोटीपृथक्त्व अधिक चौदह पल्योपम तक, चौथी अपेक्षा से जघन्य एक समय और उत्कर्ष से पूर्वकोटी पृथक्त्व अधिक एक सौ पल्योपम तक और पाँचवी अपेक्षा से जघन्य एक समय और उत्कर्ष से पूर्वकोटी पृथक्त्व अधिक पल्योपम पृथक्त्व तक स्त्री, स्त्रीरूप में रह सकती है । हे भगवन् ! तिर्यंचस्त्री, तिर्यंचस्त्री के रूप में कितने समय तक रह सकती है ? गौतम ! जघन्य से अन्तमुहर्त्त और उत्कर्ष से पूर्वकोटी पृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम तक । जलचरी जघन्य से अन्तमुहूर्त और उत्कर्ष से पूर्वकोटी पृथक्त्व तक । चतुष्पदस्थलचरी के सम्बन्ध में औधिक तिर्यंचस्त्री की तरह जानना । उरपरिसर्पस्त्री और भुजपरिसर्पस्त्री के संबंध में जलचरी की तरह कहना । खेचरी खेचरस्त्री के रूप में जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट से पूर्वकोटी पृथक्त्व अधिक पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण काल तक रह सकती है।
भन्ते ! मनुष्यस्त्री, मनुष्यस्त्री के रूप में कितने काल तक रहती है ? गौतम ! क्षेत्र की अपेक्षा जघन्य अन्तमुहूर्त्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटी पृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम, चारित्रधर्म की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोनपर्वकोटी । इसी प्रकार कर्मभमिक और भरत ऐरवत क्षेत्र की स्त्रियों के सम्बन्ध में जानना । विशेषता यह है कि क्षेत्र की अपेक्षा से जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट देशोनपूर्वकोटी अधिक तीन पल्योपम तक और चारित्रधर्म की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोनपूर्वकोटी तक अवस्थानकाल है । पूर्वविदेह पश्चिमविदेह की स्त्रियों के सम्बन्ध में क्षेत्र की अपेक्षा जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटीपृथक्त्व और धर्माचरण की अपेक्षा जघन्य एक समय, उत्कृष्ट देशोनपूर्वकोटी।
भगवन् ! अकर्मभूमि की मनुष्यस्त्री अकर्मभूमि की मनुष्यस्त्री के रूप में कितने काल तक रह सकती है ? गौतम ! जन्म की अपेक्षा जघन्य से देशोन एक पल्योपम और उत्कृष्ट से तीन पल्योपम तक । संहरण की अपेक्षा जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट से देशोनपूर्वकोटी अधिक तीन पल्योपम । भगवन् ! हेमवत-एरण्यवत-अकर्मभूमिक मनुष्यस्त्री हेमवत-एरण्यवत-अकर्मभूमिक मनुष्यस्त्री के रूप में कितने काल तक रह सकती है ? गौतम ! जन्म की अपेक्षा जघन्य से देशोन एक पल्योपम और उत्कर्ष से एक पल्योपम तक । संहरण की अपेक्षा जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट देशोनपूर्वकोटी अधिक एक पल्योपम तक । भगवन् ! हरिवास-रम्यकवास-अकर्मभूमिक-मनुष्यस्त्री हरिवास-रम्यकवास-अकर्मभूमिक-मनुष्यस्त्री के रूप में कितने काल तक रह सकती है ? गौतम ! जन्म की अपेक्षा से जघन्यतः देशोन दो पल्योपम तक और उत्कृष्ट से दो पल्योपम तक । संहरण की अपेक्षा से जघन्य अन्तमुहर्त्त और उत्कृष्ट देशोनपूर्वकोटी अधिक दो पल्योपम तक।
देवकुरु-उत्तरकुरु की स्त्रियों का अवस्थानकाल जन्म की अपेक्षा देशोन तीन पल्योपम और उत्कृष्ट से तीन पल्योपम है । संहरण की अपेक्षा जघन्य अन्तमुहर्त और उत्कृष्ट देशोनपूर्वकोटी अधिक तीन पल्योपम | भगवन् ! अन्तरद्वीपों की अकर्मभूमि की मनुष्य स्त्रियों का उस रूप में अवस्थानकाल कितना है ? गौतम ! जन्म की अपेक्षा जघन्य से देशोनपल्योपम का असंख्यातवाँ भाग कम पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग है और उत्कृष्ट से पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग है । संहरण की अपेक्षा जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट देशोनपूर्वकोटी अधिक पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग।
भगवन् ! देवस्त्री देवस्त्री के रूप में कितने काल तक रह सकती है ? गौतम ! जो उसकी भवस्थिति है, वही उसका अवस्थानकाल है। सूत्र-५७
भगवन् ! स्त्री के पुनः स्त्री होने में कितने काल का अन्तर होता है ? गौतम ! जघन्य से अन्तमुहर्त और
मुनि दीपरत्नसागर कृत्- (जीवाजीवाभिगम) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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