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________________ आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम' प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र ९.सिद्ध । प्रथमसमयनैरयिक, प्रथमसमयनैरयिक के रूपमें एक समय और अप्रथमसमयनैरयिक जघन्य एक समय कम १०००० वर्ष, उत्कर्ष से एक समय कम ३३ सागरोपम तक रहता है । प्रथमसमय-तिर्यग्योनिक एक समय तक और अप्रथमसमयतिर्यग्योनिक जघन्य एक समय कम क्षुल्लकभवग्रहण तक,उत्कर्ष से वनस्पतिकाल तक । प्रथमसमयमनुष्य एक समय और अप्रथमसमयमनुष्य जघन्य समय कम क्षुल्लक-भवग्रहण, उत्कर्ष से पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम तक रहता है । देव का कथन नैरयिक के समान है। सिद्ध सादि-अपर्यवसित हैं। प्रथमसमयनैरयिक का अन्तर जघन्य से अन्तर्मुहर्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल है। अप्रथमसमयनैरयिक का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल है । प्रथमसमयतिर्यग्योनिक का अन्तर जघन्य समय कम दो क्षुल्लकभवग्रहण और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल है । अप्रथमसमयतिर्यग्योनिक का अन्तर जघन्य समयाधिक क्षुल्लकभवग्रहण है और उत्कर्ष से साधिक सागरोपम शतपृथक्त्व है । प्रथमसमयमनुष्य का अन्तर प्रथमसमयतिर्यंच के समान है | अप्रथमसमयमनुष्य का अन्तर समयाधिक क्षुल्लकभवग्रहण है और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल है। प्रथमसमयदेव का अन्तर प्रथमसमयनैरयिक के समान है। अप्रथमसमयदेव का अन्तर अप्रथमसमयनैरयिक के समान है। सिद्ध सादि-अर्यवसित होने से अन्तर नहीं है। अल्पबहुत्व (१) गौतम ! सबसे थोड़े प्रथमसमयमनुष्य, उनसे प्रथमसमयनैरयिक असंख्यगुण, उनसे प्रथम समयदेव असंख्यातगुण, उनसे प्रथमसमयतिर्यग्योनिक असंख्यातगुण हैं | अल्पबहत्व (२) सबसे थोड़े अप्रथमसमयमनुष्य हैं, उनसे अप्रथमसमयनैरयिक असंख्येयगुण हैं, उनसे अप्रथमसमयदेव असंख्येयगुण हैं और उनसे अप्रथमसमयतिर्यंच अनन्तगुण हैं | अल्पबहुत्व (३) सबसे थोड़े प्रथमसमयनैरयिक हैं और उनसे अप्रथमसमयनैरयिक असंख्यातगुण हैं । अल्पबहुत्व (४) प्रथमसमयतिर्यंच सबसे थोड़े और अप्रथमसमयतिर्यंच अनन्तगुण हैं | मनुष्य और देवों का अल्पबहुत्व नैरयिकों की तरह कहना । अल्पबहुत्व (५) गौतम ! सबसे थोड़े प्रथमसमयमनुष्य, उनसे अप्रथमसमयमनुष्य असंख्यातगुण, उनसे प्रथमसमयनैरयिक असंख्यातगुण, उनसे प्रथमसमयदेव असंख्यातगुण, उनसे प्रथमसमयतिर्यंच असंख्यातगुण, उनसे अप्रथमसमयनैरयिक असंख्यातगुण, उनसे अप्रथमसमयदेव असंख्यातगुण, उनसे सिद्ध अनन्तगुण और उनसे अप्रथमसमयतिर्यग्योनिक अनन्तगुण हैं। प्रतिपत्ति-१०-सर्वजीव-९ सूत्र-३९७ जो ऐसा कहते हैं कि सर्व जीव दस प्रकार के हैं, वे इस प्रकार कहते हैं, यथा-पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय और अनिन्द्रिय । भगवन् ! पृथ्वीकायिक, पृथ्वीकायिक के रूप में जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से असंख्यातकाल तक, जो असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी रूप से है और क्षेत्रमार्गणा से असंख्येय लोकाकाशप्रदेशों के निर्लेपकाल के तुल्य हैं । इसी प्रकार अप्कायिक, तेजस्कायिक और वायुकायिक की संचिट्ठणा जानना । वनस्पतिकायिक की संचिट्ठणा जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है । द्वीन्द्रिय, द्वीन्द्रिय रूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यातकाल तक रह सकता है । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय को भी जानना । पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय रूप में जघन्य अन्त-र्मुहूर्त और उत्कर्ष साधिक एक हजार सागरोपम तक रह सकता है। अनिन्द्रिय, सादि-अपर्यवसित है। पथ्वीकायिक का अन्तर कितना है? गौतम ! जघन्य से अन्तर्महत और उत्कष्ट वनस्पतिकाल है। इसी प्रकार अप्कायिक, तेजस्कायिक और वायुकायिक को भी जानना । वनस्पतिकायिकों का अन्तर वहीं है जो पृथ्वीकायिक की संचिटणा है, इसी प्रकार द्वीन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रिय का अन्तर जघन्य से अन्तर्मुहर्त्त और उत्कृष्ट वनस्पति काल है | अनिन्द्रिय सादि-अपर्यवसित है | अल्पबहुत्व-गौतम ! सबसे थोड़े पंचेन्द्रिय हैं, उनसे चतुरिन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे त्रीन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे द्वीन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे तेजस्कायिक असंख्यगुण हैं, उनसे पृथ्वीकायिक विशेषाधिक हैं, उनसे अप्कायिक विशेषाधिक हैं, उनसे वायुकायिक विशेषाधिक हैं, उनसे मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (जीवाजीवाभिगम) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 134
SR No.034681
Book TitleAgam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 14, & agam_jivajivabhigam
File Size4 MB
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