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________________ आगम सूत्र १२, उपांगसूत्र-१, 'औपपातिक' पादपों से सब ओर से घिरा हुआ था। उन तिलक, लकुच, यावत् नन्दिवृक्ष-इन सभी पादपों की जड़ें डाभ तथा दूसरे प्रकार के तृणों से विशुद्ध थीं। उनके मूल, कन्द आदि दशों अंग उत्तम कोटि के थे । यों वे वृक्ष रमणीय, मनोरम, दर्शनीय, अभिरूप तथा प्रतिरूप थे । वे तिलक, नन्दिवृक्ष आदि पादप अन्य बहुत सी पद्मलताओं, नागलताओं, अशोकलताओं, चम्पकलताओं, सहकारलताओं, पीलुकलताओं, वासन्तीलताओं तथा अतिमुक्तकलताओं से सब ओर से घिरे हुए थे । वे लताएं सब ऋतुओं में फूलती थीं यावत् वे रमणीय, मनोरम, दर्शनीय, अभिरूप तथा प्रतिरूप थीं। सूत्र-५ उस अशोक वृक्ष के नीचे, उसके तने के कुछ पास एक बड़ा पृथिवी-शिलापट्टक था । उसकी लम्बाई, चौड़ाई तथा ऊंचाई समुचित प्रमाण में थी । वह काला था । वह अंजन, बादल, कृपाण, नीले कमल, बलराम के वस्त्र, आकाश, केश, काजल की कोठरी, खंजन पक्षी, भैंस के सींग, रिष्टक रत्न, जामुन के फल, बीयक, सन के फूल के डंठल, नील कमल के पत्तों की राशि तथा अलसी के फूल के सदृश प्रभा लिये हुए था । नील मणि, कसौटी, कमर पर बाँधने के चमड़े के पट्टे तथा आँखों की कनीनिका-इनके पुंज जैसा उसका वर्ण था । अत्यन्त स्निग्ध था । उसके आठ कोने थे । दर्पण के तल समान सुरम्य था । भेड़िये, बैल, घोड़े, मनुष्य, मगर, पक्षी, साँप, किन्नर, रुरु, अष्टापद, चमर, हाथी, वनलता और पद्मलता के चित्र उस पर बने हुए थे । उसका स्पर्श मृगछाला, कपास, बूर, मक्खन तथा आक की रूई के समान कोमल था । वह आकार में सिंहासन जैसा था । इस प्रकार वह शिलापटक मनोरम, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप था। सूत्र-६ चम्पा नगरी में कूणिक नामक राजा था, जो वहाँ निवास करता था । वह महाहिमवान् पर्वत के समान महत्ता तथा मलय, मेरु एवं महेन्द्र के सदृश प्रधानता या विशिष्टता लिये हुए था । वह अत्यन्त विशुद्ध चिरकालीन था । उसके अंग पूर्णतः राजोचित लक्षणों से सुशोभित थे । वह बहुत लोगों द्वारा अति सम्मानित और पूजित था, सर्वगुणसमृद्ध, क्षत्रिय, मुदिक, मूर्द्धाभिषेक, उत्तम माता-पिता से उत्पन्न, करुणाशील, मर्यादाओं की स्थापना करने वाला तथा पालन करने वाला, क्षेमंकर, क्षेमंधर, मनुष्यों में इन्द्र के समान, अपने राष्ट्र के लिए पितृतुल्य, प्रतिपालक, हितकारक, कल्याणकारक, पथदर्शक, उपस्थापक, नरप्रवर, पुरुषवर, पराक्रम में सिंहतुल्य, रौद्रता में बाध सदृश, सामर्थ्य में सर्पतुल्य, पुरुषों में पुण्डरीक, और पुरुषों में गन्धहस्ती के समान था। वह समृद्ध, दृप्त तथा वित्त या वृत्त था । उसके यहाँ बड़े-बड़े विशाल भवन, सोने-बैठने के आसन तथा रथ, घोड़े आदि सवारियाँ, वाहन बड़ी मात्रा में थे । उसके पास विपुल सम्पत्ति, सोना तथा चाँदी थी । अर्थ लाभ के उपायों का प्रयोक्ता था । उसके यहाँ भोजन कर लिये जाने के बाद बहुत खाद्य-सामग्री बच जाती थी। उसके यहाँ अनेक दासियाँ, दास, गायें, भैंसे तथा भेड़ें थीं। उसके यहाँ यन्त्र, कोष, कोष्ठागार तथा शस्त्रागार प्रतिपूर्ण था । प्रभृत सेना थी। अपने राज्य के सीमावर्ती राजाओं या पड़ोसी राजाओं को शक्तिहीन बना दिया था। अपने सगोत्र प्रतिस्पर्धियों को विनष्ट कर दिया था। उनका धन छीन लिया था, उनका मान भंग कर दिया था तथा उन्हें देश से निर्वासित कर दिया था। उसी प्रकार अपने शत्रुओं को विनष्ट कर दिया था, उनकी सम्पत्ति छीन ली थी, उनका मानभंग कर दिया था और उन्हें देश से निर्वासित कर दिया था । अपने प्रभावातिशय से उसने उन्हें जीत लिया था, पराजित कर दिया था । इस प्रकार वह राजा निरुपद्रव, क्षेममय, कल्याणमय, सुभिक्षयुक्त एवं शत्रुकृत विघ्नरहित राज्य का शासन करता था। सूत्र -७ राजा कूणिक की रानी का नाम धारिणी था । उसके हाथ-पैर सुकोमल थे । शरीर की पाँचों इन्द्रियाँ अहीन -प्रतिपूर्ण, सम्पूर्ण थीं । उत्तम लक्षण, व्यंजन तथा गुणयुक्त थी । दैहिक फैलाव, वजन, ऊंचाई आदि की दृष्टि से वह परिपूर्ण, श्रेष्ठ तथा सर्वांगसुन्दरी थी । उसका स्वरूप चन्द्र के समान सौम्य तथा दर्शन कमनीय था । परम रूपवती थी । उसकी देह का मध्य भाग मुट्टी द्वारा गृहीत की जा सके, इतना सा था । पेट पर पड़ने वाली उत्तम तीन रेखाओं से युक्त थी । कपोलों की रेखाएं कुण्डलों से उद्दीप्त थीं । मुख शरत्पूर्णिमा के चन्द्र के सदृश निर्मल, परिपूर्ण तथा सौम्य था । सुन्दर वेशभूषा ऐसी थी, मानों शंगार-रस का आवास-स्थान हो । उसकी चाल. हँसी. मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (औपपातिक)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 7
SR No.034679
Book TitleAgam 12 Aupapatik Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages40
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 12, & agam_aupapatik
File Size2 MB
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