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________________ आगम सूत्र १२, उपांगसूत्र-१, 'औपपातिक' द्युतिमान्, अत्यन्त बलवान्, महायशस्वी, परम सुखी, बहुत प्रभावशाली देव चन्दन, केसर आदि विलेपनोचित सुगन्धित द्रव्य से परिपूर्ण डिब्बा लेता है, लेकर उसे खोलता है, उस सुगन्धित द्रव्य को सर्वत्र बिखेरता हुआ तीन चुटकी बजाने जितने समय में समस्त जम्बू द्वीप को इक्कीस परिक्रमाएं कर तुरन्त आ जाता है। समस्त जम्बूद्वीप उन घ्राण-पुद्गलों से स्पृष्ट होता है ? हाँ, गौतम ! होता है । भगवन् ! क्या छद्मस्थ मनुष्य घ्राण-पुद्गलों को वर्ण रूप से वर्ण आदि को जरा भी जान पाता है ? देख पाता है ? गौतम ! ऐसा संभव नहीं है । गौतम ! इस अभिप्रा य से यह कहा जाता है कि छद्मस्थ मनुष्य उन खिरे हुए पुद्गलों के वर्ण रूप से वर्ण आदि को जरा भी नहीं जानता, नहीं देखता । आयुष्मान् श्रमण ! वे पुद्गल इतने सूक्ष्म कहे गए हैं । वे समग्र लोक का स्पर्श कर स्थित रहते हैं। भगवन् ! केवली किस कारण समुद्घात करते हैं-गौतम ! केवलियों के वेदनीय, आयुष्य, नाम तथा गोत्रये चार कर्मांश अपरिक्षीण होते हैं, उनमें वेदनीय कर्म सबसे अधिक होता है, आयुष्य कर्म सबसे कम होता है, बन्धन एवं स्थिति द्वारा विषम कर्मों को वे सम करते हैं । यों बन्धन और स्थिति से विषम कर्मों को सम करने हेतु केवली आत्मप्रदेशों को विस्तीर्ण करते हैं, समुदघात करते हैं। सूत्र-५३ भगवन ! क्या सभी केवली समदघात करते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता । समुद्घात किये बिना ही अनन्त केवली, जिन (जन्म), वृद्धावस्था तथा मृत्यु से विप्रमुक्त होकर सिद्धि गति को प्राप्त हुए हैं। सूत्र -५४ भगवन् ! आवर्जीकरण का प्रक्रियाक्रम कितने समय का कहा गया है ? गौतम ! वह असंख्येय समयवर्ती अन्तर्मुहूर्त का कहा गया है । भगवन् ! केवली-समुद्घात कितने समय का कहा गया है ? गौतम ! आठ समय का है । जैसे-पहले समय में केवली आत्मप्रदेशों को विस्तीर्ण कर दण्ड के आकार में करते हैं । दूसरे समय में वे आत्मप्रदेशों को विस्तीर्ण कर कपाटाकार करते हैं । तीसरे समय में केवली उन्हें विस्तीर्ण कर मन्थनाकार करते हैं । चौथे समय केवली लोकशिखर सहित इनके अन्तराल की पूर्ति हेतु आत्मप्रदेशों को विस्तीर्ण करते हैं । पाँचवे समय में अन्तराल स्थित आत्मप्रदेशों को प्रतिसंहृत करते हैं । छठे समय में मथानी के आकार में अवस्थित आत्मप्रदेशों को, सातवें समय में कपाट के आकार में स्थित आत्मप्रदेशों को और आठवें समय में दण्ड के आकार में स्थित आत्मप्रदेशों को प्रतिसंहृत करते हैं । तत्पश्चात् वे (पूर्ववत्) शरीरस्थ हो जाते हैं । भगवन् ! समुद्घातगत केवली क्या मनोयोग का, वचन-योग का, क्या काय-योग का प्रयोग करते हैं ? गौतम ! वे मनोयोग का प्रयोग नहीं करते । वचन-योग का प्रयोग नहीं करते । वे काय-योग का प्रयोग करते हैं। भगवन् ! काय-योग को प्रयुक्त करते हुए क्या वे औदारिक-शरीर-काय-योग का प्रयोग करते हैं ? क्या औदारिक-मिश्र-औदारिक और कार्मण-दोनों शरीरों से क्रिया करते हैं ? क्या वैक्रिय शरीर से क्रिया करते हैं ? क्या वैक्रिय-मिश्र-कार्मण-मिश्रित या औदारिक-मिश्रित वैक्रिय शरीर से क्रिया करते हैं? क्या आहारक शरीर से क्रिया करते हैं? क्या आहारक-मिश्र-औदारिक-मिश्रित आहारक शरीर से क्रिया करते हैं ? क्या कार्मण शरीर से क्रिया करते हैं ? अर्थात् सात प्रकार के काययोग में से किसी काययोग का प्रयोग करते हैं ? गौतम ! वे औदारिक-शरीरकाय-योग का प्रयोग करते हैं, औदारिक-मिश्र शरीर से भी क्रिया करते हैं । वे वैक्रिय शरीर से क्रिया नहीं करते । वैक्रिय-मिश्र शरीर से क्रिया नहीं करते । आहारक शरीर से क्रिया नहीं करते । आहारक-मिश्र शरीर से भी क्रिया नहीं करते । पर औदारिक तथा औदारिक-मिश्र के साथ-साथ कार्मण-शरीर-काय-योग का भी प्रयोग करते हैं । पहले और आठवें समय में वे औदारिक शरीर-काययोग का प्रयोग करते हैं । दूसरे, छठे और सातवें समय में वे औदारिक मिश्र शरीर-काययोग का प्रयोग करते हैं । तीसरे, चौथे और पाँचवे समय में वे कार्मण शरीर-काययोग का प्रयोग करते हैं। - भगवन् ! क्या समुद्घातगत कोई सिद्ध होते हैं ? बुद्ध होते हैं ? मुक्त होते हैं ? परितिवृत्त होते हैं ? सब दुःखों का अन्त करते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता । वे उससे वापस लौटते हैं । लौटकर अपने ऐहिक शरीर में आते हैं । तत्पश्चात् मनोयोग, वचनयोग तथा काययोग का भी प्रयोग करते हैं-भगवन् ! मनोयोग का उपयोग करते मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (औपपातिक)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 36
SR No.034679
Book TitleAgam 12 Aupapatik Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages40
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 12, & agam_aupapatik
File Size2 MB
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