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आगम सूत्र १२, उपांगसूत्र-१, 'औपपातिक' सूत्र-३०
राजा कूणिक द्वारा यों कहे जाने पर उस सेनानायक ने हर्ष एवं प्रसन्नतापूर्वक हाथ जोड़े, अंजलि को मस्तक से लगाया तथा विनयपूर्वक राजा का आदेश स्वीकार करते हुए निवेदन किया-महाराज की जैसी आज्ञा । सेनानायक ने यों राजाज्ञा स्वीकार कर हस्ति-व्यापत को बुलाया । उससे कहा-देवानुप्रिय ! भंभस महाराज कूणिक के लिए प्रधान, उत्तम हाथी सजाकर शीघ्र तैयार करो । घोड़े, हाथी, रथ तथा श्रेष्ठ योद्धाओं से परिगठित चतुरंगिणी सेना के तैयार होने की व्यवस्था कराओ । फिर मुझे आज्ञा-पालन हो जाने की सूचना करो।
महावत ने सेनानायक का कथन सूना, उसका आदेश विनय-सहित स्वीकार किया । उस महावत ने, कलाचार्य से शिक्षा प्राप्त करने से जिसकी बुद्धि विविध कल्पनाओं तथा सर्जनाओं में अत्यन्त निपुण थी, उस उत्तम हाथी को उज्ज्वल नेपथ्य, वेषभूषा आदि द्वारा शीघ्र सजा दिया । उस सुसज्ज हाथी का धार्मिक उत्सव के अनुरूप शृंगार किया, कवच लगाया, कक्षा को उसके वक्षःस्थल से कसा, गले में हार तथा उत्तम आभूषण पहनाये, इस प्रकार उसे सुशोभित किया । वह बड़ा तेजोमय दीखने लगा । सुललित कर्णपूरों द्वारा उसे सुसज्जि किया । लटकते हए लम्बे झुलों तथा मद की गंध से एकत्र हए भौंरों के कारण वहाँ अंधकार जैसा प्रतीत होता था । झूल पर बेल बूंटे कढ़ा प्रच्छद वस्त्र डाला गया । शस्त्र तथा कवचयुक्त वह हाथी युद्धार्थ सज्जित जैसा प्रतीत होता था । उसके छत्र, ध्वजा, घंटा तथा पताका-ये सब यथास्थान योजित किये गये । मस्तक को पाँच कलंगियों से विभूषित कर उसे सुन्दर बनाया । उसके दोनों ओर दो घंटियाँ लटकाई । वह हाथी बिजली सहित काले बादल जैसा दिखाई देता था । वह अपने बड़े डीलडौल के कारण ऐसा लगता था, मानो अकस्मात् कोई चलता-फिरता पर्वत उत्पन्न हो गया हो । वह मदोन्मत्त था । बड़े मेघ की तरह वह गुलगुल शब्द द्वारा अपने स्वर में मानों गरजता था । उसकी गति मन तथा वायु के वेग को भी पराभूत करने वाली थी । विशाल देह तथा प्रचंड शक्ति के कारण वह भीम प्रतीत होता था । उस संग्राम योग्य आभिषेक्य हस्तिरत्न को महावत ने सन्नद्ध किया उसे तैयार कर घोड़े, हाथी, रथ तथा उत्तम योद्धाओं से परिगठित सेना को तैयार कराया । फिर वह महावत, जहाँ सेनानायक था, वहाँ आया और आज्ञा-पालन किये जा चूकने की सूचना दी।
तदनन्तर सेनानायक ने यानशालिक को बुलाया । उससे कहा-सुभद्रा आदि रानियों के लिए, उनमें से प्रत्येक के लिए यात्राभिमुख, जुते हुए यान बाहरी सभा-भवन के निकट उपस्थित करो । हाजिर कर आज्ञा-पालन किये जा चूकने की सूचना दो । यानशालिक ने सेनानायक का आदेश विनयपूर्वक स्वीकार किया । वह, जहाँ यानशाला थी, वहाँ आया । यानों का निरीक्षण किया । उनका प्रमार्जन किया । उन्हें वहाँ से हटाया । बाहर नीकाला । उन पर लगी खोलियाँ दूर की । यानों को सजाया । उन्हें उत्तम आभरणों से विभूषित किया । वह जहाँ वाहनशाला थी, आया । वाहनशाला में प्रविष्ट हुआ । वाहनों का निरीक्षण किया । उन्हें संप्रमार्जित किया-वाहनशाला से बाहर नीकाला । उनकी पीठ थपथपाई । उन पर लगे आच्छादक वस्त्र हटाये । वाहनों को सजाया । उत्तम आभरणों से विभूषित किया । उन्हें यानों में जोता । प्रतोत्रयष्टिकाएं, तथा प्रतोत्रधर को प्रस्थापित किया-उन्हें यष्टिकाएं देकर यान-चालन का कार्य सौंपा । यानों को राजमार्ग पकड़वाया । वह, जहाँ सेनानायक था, वहाँ आया। आकर सेनानायक को आज्ञा-पालन किये जा चूकने की सूचना दी।
फिर सेनानायक ने नगरगुप्तिक नगररक्षक को बुलाकर कहा-देवानुप्रिय ! चम्पा नगरी के बाहर और भीतर, उसके संघाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, चतुर्मुख, राजमार्ग-इन सबकी सफाई कराओ । वहाँ पानी का छिड़काव कराओ, गोबर आदि का लेप कराओ यावत् नगरी के वातावरण को उत्कृष्ट सौरभमय करवा दो । यह सब करवाकर मुझे सूचित करो कि आज्ञा का अनुपालन हो गया है । नगरपाल ने सेनानायक का आदेश विनयपूर्वक स्वीकार किया । चम्पानगरी की बाहर से, भीतर से सफाई, पानी का छिड़काव आदि करवाकर, वह जहाँ सेनानायक था, वहाँ आकर आज्ञापालन किये जा चूकने की सूचना दी।
तदनन्तर सेनानायक ने भंभसार के पुत्र राजा कूणिक के प्रधान हाथी को सजा हुआ देखा । चतुरंगिणी सेना को सन्नद्ध देखा । सुभद्रा आदि रानियों के उपस्थापित यान देखे । चम्पानगरी की भीतर और बाहर से सफाई देखी । वह सुगंध से महक रही है । यह सब देखकर वह मन में हर्षित, परितुष्ट, आनन्दित एवं प्रसन्न हुआ ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (औपपातिक)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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