________________
आगम सूत्र ११, अंगसूत्र-१, 'विपाकश्रुत'
श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/ सूत्रांक
अध्ययन-८- भद्रनंदी सूत्र-४४
सुघोष नगर था । देवरमण उद्यान था । वीरसेन यक्ष का यक्षायतन था । अर्जुन राजा था । तत्त्ववती रानी थी और भद्रानन्दी राजकुमार था । उसका श्रीदेवी आदि ५०० श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ पाणिग्रहण हुआ । भगवान महावीर का पदार्पण हुआ । भद्रनन्दी ने श्रावकधर्म अङ्गीकार किया । पूर्वभव के सम्बन्ध में पृच्छा-हे गौतम ! महाघोष नगर था । वहाँ धर्मघोष गाथापति था । धर्मसिंह नामक मुनिराज को निर्दोष आहार दान से प्रतिलाभित कर मनुष्य-भव के आयुष्य का बन्ध किया और यहाँ पर उत्पन्न हुआ । यावत् साधुधर्म का यथाविधि अनुष्ठान करके श्री भद्रानन्दी अनगार ने बन्धे हुए कर्मों का आत्यंतिक क्षय कर मोक्ष पद को प्राप्त किया । निक्षेपपूर्ववत् ।
अध्ययन-८-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
अध्ययन-९- महाचंद्र सूत्र-४५
हे जम्बू ! चम्पा नगरी थी । पूर्णभद्र उद्यान था । पूर्णभद्र यक्ष का यक्षायतन था । राजा दत्त था और रानी रक्तवती थी । महाचन्द्र राजकुमार था । उसका श्रीकान्ता प्रमुख ५०० श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ पाणिग्रहण हुआ | भगवान महावीर का पदार्पण हुआ । महाचन्द्र ने श्रावकों के बारह व्रतों को ग्रहण किया । पूर्वभव पृच्छा-हे गौतम! चिकित्सिका नगरी थी । महाराजा जितशत्रु थे । धर्मवीर्य अनगार को निर्दोष आहार पानी से प्रतिलम्भित किया, फलतः मनुष्य-आयुष्य को बान्धकर यहाँ उत्पन्न हुआ । यावत् श्रामण्य-धर्म का यथाविधि अनुष्ठान करके महाचन्द्र मुनि बन्धे हुए कर्मों का समूल क्षय कर परमपद को प्राप्त हुए । निक्षेप-पूर्ववत् ।
अध्ययन-९-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (विपाकश्रुत) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 50