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आगम सूत्र ११, अंगसूत्र-१, 'विपाकश्रुत'
श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/ सूत्रांक घर किसी अन्य को सौंप दिया।
तत्पश्चात् किसी समय उम्बरदत्त के शरीर में एक ही साथ सोलह प्रकार के रोगातङ्क उत्पन्न हो गये, जैसे कि-श्वास, कास यावत् कोढ़ आदि । इन सोलह प्रकार के रोगातङ्कों से अभिभूत हुआ उम्बरदत्त खुजली यावत् हाथ आदि के सड़ जाने से दुःखपूर्ण जीवन बिता रहा है । हे गौतम ! इस प्रकार उम्बरदत्त बालक अपने पूर्वकृत् अशुभ कर्मों का यह भयङ्कर फल भोगता हुआ इस तरह समय व्यतीत कर रहा है । भगवन् ! यह उम्बरदत्त बालक मृत्यु के समय में काल करके कहाँ जाएगा? और कहाँ उत्पन्न होगा? हे गौतम ! उम्बरदत्त बालक ७२ वर्ष का परम आयुष्य भोगकर कालमास में काल करके रत्नप्रभा नरक में नारक रूप से उत्पन्न होगा । वह पूर्ववत् संसार भ्रमण करता हुआ पृथिवी आदि सभी कायों में लाखों बार उत्पन्न होगा । वहाँ से नीकलकर हस्तिनापुर में कर्कट के रूप में उत्पन्न होगा । वहाँ जन्म लेने के साथ ही गोष्ठिकों द्वारा वध को प्राप्त होगा । पुनः हस्तिनापुर में ही एक श्रेष्ठिकल में उत्पन्न होगा । वहाँ सम्यक्त्व प्राप्त करेगा । वहाँ से सौधर्म कल्प में जन्म लेगा । वहाँ से च्यत होकर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगा । वहाँ अनगार धर्म को प्राप्त कर यथाविधि संयम की आराधना कर, कर्मों का क्षय करके सिद्धि को प्राप्त होगा-निक्षेप पूर्ववत् ।
अध्ययन-७-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (विपाकश्रुत) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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