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आगम सूत्र ११, अंगसूत्र-१, 'विपाकश्रुत'
श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/ सूत्रांक यावत् दश नखों वाली अञ्जलि करके शिरोधार्य की और पुरिमताल नगर के द्वारों को बन्द करके चोर सेनापति अभग्नसेन को जीवित पकड़कर महाबल नरेश के समक्ष उपस्थित किया । तत्पश्चात् महाबल नरेश ने अभग्नसेन चोर सेनापति को इस विधि से वध करने की आज्ञा प्रदान कर दी । हे गौतम ! इस प्रकार निश्चित रूप से वह चोर सेनापति अभग्नसेन पूर्वोपार्जित पापकर्मों के नरक तुल्य विपाकोदय के रूपमें घोर वेदना का अनुभव कर रहा है।
____ अहो भगवन् ! वह अभग्नसेन चोर सेनापति कालावसर में काल करके कहाँ जाएगा? तथा कहाँ उत्पन्न होगा ? हे गौतम ! अभग्नसेन चोर सेनापति ३७ वर्ष की परम आयु को भोगकर आज ही त्रिभागावशेष दिनमें सूली पर चढ़ाये जाने से काल करके रत्नप्रभा नामक प्रथम नरकमें उत्कृष्ट एक सागरोपम स्थितिक नारकी रूप से उत्पन्न होगा । फिर प्रथम नरक से नीकलकर प्रथम अध्ययन में प्रतिपादित मृगापुत्र के संसार-भ्रमण की तरह इसका भी परिभ्रमण होगा, यावत् पृथ्वीकाय, अप्काय, वायुकाय, तेजस्काय आदि में लाखों बार उत्पन्न होगा । वहाँ से नीकलकर बनारस नगरीमें शूकर के रूप में उत्पन्न होगा । वहाँ शूकर के शिकारियों द्वारा उसका घात किया जाएगा । तत्पश्चात् उसी बनारस नगरी के श्रेष्ठिकुलमें पुत्र रूप से उत्पन्न होगा । वहाँ बालभाव पार कर युवावस्था को प्राप्त होता हुआ, प्रव्रजित होकर, संयमपालन करके यावत् निर्वाण पद प्राप्त करेगा-निक्षेप पूर्ववत् ।
अध्ययन-३-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (विपाकश्रुत) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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