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आगम सूत्र ११, अंगसूत्र-१, 'विपाकश्रुत'
श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/ सूत्रांक और उत्तम सारभूत द्रव्यों के द्वारा तथा रुपयों पैसों का लोभ देकर उससे जुदा करने का प्रयत्न करता है और अभग्नसेन चोर सेनापति को भी बार बार महाप्रयोजन वाली, सविशेष मूल्य वाली, बड़े पुरुष को देने योग्य यहाँ तक कि राजा के योग्य भेट भेजने लगा । इस तरह भेंट भेजकर अभग्नसेन चोर सेनापति को विश्वास में ले आता है सूत्र-२३
तदनन्तर किसी अन्य समय महाबल राजा ने पुरिमताल नगर में महती सुन्दर व अत्यन्त विशाल, मन में हर्ष उत्पन्न करने वाली, दर्शनीय, जिसे देखने पर भी आँखें न थकें ऐसी सैकड़ों स्तम्भों वाली कुटाकारशाला बनवायी । उसके बाद महाबल नरेश ने किसी समय उस षड्यन्त्र के लिए बनवाई कूटाकारशाला के निमित्त उच्छुल्क यावत् दश दिन के प्रमोद उत्सव की उद्घोषणा कराई | कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा कि-हे भद्रपुरुषों ! तुम शालाटवी चोरपल्ली में जाओ और वहाँ अभग्नसेन चोर सेनापति से दोनों हाथ जोड़कर मस्तक पर दस नखों वाली अञ्जलि करके, इस प्रकार निवेदन करो-हे देवानुप्रिय ! पुरिमताल नगर में महाबल नरेश ने उच्छुल्क यावत् दश दिन पर्यन्त प्रमोद-उत्सव की घोषणा कराई है, तो क्या आप के लिए विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम तथा पुष्प वस्त्र माला अलङ्कार यहीं पर लाकर उपस्थित किए जाएं अथवा आप स्वयं वहाँ इस प्रसंग पर उपस्थित होंगे?
तदनन्तर वे कौटुम्बिक पुरुष महाबल नरेश की इस आज्ञा को दोनों हाथ जोड़कर यावत् अञ्जलि करके 'जी हाँ स्वामी' कहकर विनयपूर्वक सुनते हैं, सूनकर पुरिमताल नगर से नीकलते हैं । छोटी-छोटी यात्राएं करते हुए, तथा सुखजनक विश्राम-स्थानों पर प्रातःकालीन भोजन आदि करते हुए जहाँ शालाटवी नामक चोर-पल्ली थी वहाँ पहुँचे । वहाँ पर अभग्नसेन चोर सेनापति से दोनों हाथ जोड़कर मस्तक पर दसों नखोंवाली अञ्जलि करके इस प्रकार निवेदन करने लगे-देवानुप्रिय ! पुरिमताल नगरमें महाबल नरेश ने उच्छुल्क यावत् दस दिनों का प्रमोद उत्सव घोषित किया है, तो आपके लिए अशन, पान, खादिम, स्वादिम, पुष्पमाला, अलंकार यहाँ पर ही उपस्थित किये जाएं अथवा आप स्वयं वहाँ पधारते हैं ? तब अभग्नसेन सेनापति ने कहा-'हे पुरुषों ! मैं स्वयं ही प्रमोदउत्सवमें पुरिमताल नगर आऊंगा। तत्पश्चात् अभग्नसेन ने उनका उचित सत्कार-सम्मान करके उन्हें बिदा किया।
तदनन्तर मित्र, ज्ञाति व स्वजन-परिजनों से घिरा हुआ वह अभग्नसेन चोर सेनापति स्नानादि से निवृत्त हो यावत् अशुभ स्वप्न का फल विनष्ट करने के लिए प्रायश्चित्त के रूप में मस्तक पर तिलक आदि माङ्गलिक अनुष्ठान करके समस्त आभूषणों से अलंकृत हो शालाटवी चोरपल्ली से नीकलकर जहाँ पुरिमताल नगर था और महाबल नरेश थे, वहाँ पर आता है । आकर दोनों हाथ जोड़कर मस्तक पर दश नखों वाली अञ्जलि करके महाबल राजा को 'जय-विजय शब्द से बधाई देकर महार्थ यावत् राजा के योग्य प्राभृत-भेंट अर्पण करता है । तदनन्तर महाबल राजा उस अभग्नसेन चोर सेनापति द्वारा अर्पित किए गए उपहार को स्वीकार करके उसे सत्कार-सम्मानपूर्वकअपने पास से बिदा करता हुआ कूटाकारशाला में उसे रहने के लिए स्थान देता है । तदनन्तर अभग्नसेन चोर सेनापति महाबल राजा के द्वारा सत्कारपूर्वक विसर्जित होकर कूटाकारशाला में आता है और वहाँ पर ठहरता है।
इसके बाद महाबल राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा-तुम लोग विपुल अशन, पान, खादिम, स्वादिम, पुष्प, वस्त्र, गंधमाला, अलंकार एवं सूरादि मदिराओं तैयार कराओ और कूटाकार-शालामें चोर सेनापति अभग्नसेन की सेवामें पहुँचा दो। कौटुम्बिक पुरुषों ने हाथ जोड़कर यावत् अञ्जलि करके राजा की आज्ञा स्वीकार की और तदनुसार विपल अशनादिक सामग्री वहाँ पहँचा दी । तदनन्तर अभग्नसेन चोर सेनाप निवृत्त हो, समस्त आभूषणों को पहनकर अपने बहुत से मित्रों व ज्ञातिजनों आदि के साथ उस विपुल अशनादिक तथा पंचविध मदिराओं का सम्यक् आस्वादन विस्वादन करता हुआ प्रमत्त-बेखबर होकर विहरण करने लगा।
पश्चात् महाबल राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को इस प्रकार कहा-'हे देवानुप्रियो ! तुम लोग जाओ और जाकर पुरिमताल नगर के दरवाजों को बन्द कर दो और अभग्नसेन चोर सेनापति को जीवित स्थिति में ही पकड़ लो और पकड़कर मेरे सामने उपस्थित करो ।' तदनन्तर कौटुम्बिक पुरुषों ने राजा की यह आज्ञा हाथ जोड़कर
मुनि दीपरत्नसागर कृत् ' (विपाकश्रुत) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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