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आगम सूत्र १०, अंगसूत्र-१०, 'प्रश्नव्याकरण'
द्वार/अध्ययन/सूत्रांक एवं अनुज्ञात अवग्रह की रुचि वाला होता है।
__पाँचवीं भावना साधर्मिक-विनय है । साधर्मिक के प्रति विनय का प्रयोग करना चाहिए । उपकार और तपस्या की पारणा में, वाचना और परिवर्तना में, भिक्षा में प्राप्त अन्न आदि अन्य साधुओं को देने में तथा उनसे लेने में और विस्मृत अथवा शंकित सूत्रार्थ सम्बन्धी पृच्छा करने में, उपाश्रय से बाहर नीकलते और उसमें प्रवेश करते समय विनय का प्रयोग करना चाहिए । इनके अतिरिक्त इसी प्रकार के अन्य सैकड़ों कारणों में विनय का प्रयोग करना चाहिए । क्योंकि विनय भी अपने आप में तप है और तप भी धर्म है । अत एव विनय का आचरण करना चाहिए । विनय किनका करना चाहिए ? गुरुजनों का, साधुओं का और तप करने वाले तपस्वियों का । इस प्रकार विनय से युक्त अन्तःकरण वाला साधु अधिकरण से विरत तथा दत्त-अनुज्ञात अवग्रह में रुचि वाला होता है । शेष पूर्ववत् ।
इस प्रकार (आचरण करने) से यह तीसरा संवरद्वार समीचीन रूप से पालित और सुरक्षित होता है । इस प्रकार यावत् तीर्थंकर भगवान द्वारा कथित है, सम्यक् प्रकार से उपदिष्ट है और प्रशस्त है । शेष शब्दों का अर्थ पूर्ववत् समझना चाहिए।
अध्ययन-८-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (प्रश्नव्याकरण) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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