SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम सूत्र १०, अंगसूत्र-१०, 'प्रश्नव्याकरण' द्वार/अध्ययन/सूत्रांक अध्ययन-६ - संवरद्वार-१ सूत्र-३० हे जम्बू ! अब मैं पाँच संवरद्वारों को अनुक्रम से कहूँगा, जिस प्रकार भगवान ने सर्व दुःखों स मुक्ति पाने के लिए कहे हैं। सूत्र - ३१ प्रथम अहिंसा है, दूसरा सत्यवचन है, तीसरा स्वामी की आज्ञा से दत्त है, चौथा ब्रह्मचर्य और पंचम अपरिग्रहत्व है। सूत्र-३२ इन संवरद्वारों में प्रथम जो अहिंसा है, वह त्रस और स्थावर-समस्त जीवों का क्षेम-कुशल करने वाली है। मैं पाँच भावनाओं सहित अहिंसा के गुणों का कुछ कथन करूँगा। सूत्र - ३३ हे सुव्रत ! ये महाव्रत समस्त लोक के लिए हितकारी है । श्रुतरूपी सागर में इनका उपदेश किया गया है। ये तप और संयमरूप व्रत है । इन महाव्रतों में शील का और उत्तम गणों का समह सन्निहित है । सत्य और आर्जव-इनमें प्रधान है । ये महाव्रत नरकगति, तिर्यंचगति, मनुष्यगति और देवगति से बचाने वाले हैं-समस्त जिनों-तीर्थंकरों द्वारा उपदिष्ट हैं । कर्मरूपी रज का विदारण करने वाले हैं। सैकड़ों भवों का अन्त करने वाले हैं। सैकड़ों दुःखों से बचाने वाले हैं और सैकड़ों सुखों में प्रवृत्त करने वाले हैं । ये महाव्रत कायर पुरुषों के लिए दुस्तर है, सत्पुरुषों द्वारा सेवित है, ये मोक्ष में जाने के मार्ग हैं, स्वर्ग में पहुँचाने वाले हैं । इस प्रकार के ये महाव्रत रूप पाँच संवरद्वार भगवान महावीर ने कहे हैं | उन पाँच संवरद्वारों में प्रथम संवरद्वार अहिंसा है | अहिंसा के निम्नलिखित नाम हैं-द्वीप-त्राण-शरण-गति-प्रतिष्ठा, निर्वाह, निर्वृत्ति, समाधि, शक्ति, कीर्ति, कान्ति, रति, विरति, श्रुताङ्ग, तृप्ति, दया, विमुक्ति, शान्ति, सम्यक्त्वाराधना, महती, बोधि, बुद्धि, धृति, समृद्धि, ऋद्धि, वृद्धि, स्थिति, पुष्टि, नन्दा, भद्रा, विशुद्धि, लब्धि, विशिष्ट दृष्टि, कल्याण, मंगल, प्रमोद, विभूति, रक्षा, सिद्धावास, अनास्रव, केवलि-स्थान, शिव, समिति, शील, संयम, शीलपरिग्रह, संवर, गुप्ति, व्यवसाय, उच्छय, यज्ञ, आयतन, अप्रमाद, आश्वास, विश्वास, अभय, सर्वस्य अमाघात, चोक्ष, पवित्रा, सुचि, पूता, विमला, प्रभासा, निर्मलतरा अहिंसा भगवती के इत्यादि (पूर्वोक्त तथा इसी प्रकार के अन्य) स्वगुणनिष्पन्न नाम हैं। सूत्र-३४ यह अहिंसा भगवती जो है सो भयभीत प्राणियों के लिए शरणभूत है, पक्षियों के लिए आकाश में गमन करने समान है, प्यास से पीड़ित प्राणियों के लिए जल के समान है, भूखों के लिए भोजन के समान है, समुद्र के मध्य में जहाज समान है, चतुष्पद के लिए आश्रम समान है, दुःखों से पीड़ित के लिए औषध समान है, भयानक जंगल में सार्थ समान है । भगवती अहिंसा इनसे भी अत्यन्त विशिष्ट है, जो पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, बीज, हरितकाय, जलचर, स्थलचर, खेचर, त्रस और स्थावर सभी जीवों का क्षेम-कुशल-मंगल करनेवाली है। यह भगवती अहिंसा वह है जो अपरिमित केवलज्ञान-दर्शन को धारण करने वाले, शीलरूप गुण, विनय, तप और संयम के नायक, तीर्थ की संस्थापन करने वाले, जगत के समस्त जीवों के प्रति वात्सल्य धारण करने वाले, त्रिलोकपूजित जिनवरों द्वारा अपने केवलज्ञान-दर्शन द्वारा सम्यक् रूप में स्वरूप, कारण और कार्य के दृष्टिकोण से निश्चित की गई है । विशिष्ट अवधिज्ञानियों द्वारा विज्ञात की गई है-ज्ञपरिज्ञा से जानी गई और प्रत्याख्यानपरिज्ञा से सेवन की गई है । ऋजुमति-मनःपर्यवज्ञानियों द्वारा देखी-परखी गई है । विपुलमति-मनः-पर्यायज्ञानियों द्वारा ज्ञात की गई है । चतुर्दश पूर्वश्रुत के धारक मुनियों ने इसका अध्ययन किया है । विक्रियालब्धि के धारकों ने इसका आजीवन पालन किया है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (प्रश्नव्याकरण) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 34
SR No.034677
Book TitleAgam 10 Prashnavyakaran Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages54
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 10, & agam_prashnavyakaran
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy