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आगम सूत्र १०, अंगसूत्र-१०, 'प्रश्नव्याकरण'
द्वार/अध्ययन/ सूत्रांक हुए इस प्रकार का कथन करते हैं।
कोई-कोई असद्भाववादी मूढ जन दूसरा कुदर्शन-इस प्रकार कहते हैं-यह लोक अंडे से प्रकट हुआ है । इस लोक का निर्माण स्वयं स्वयम्भू ने किया है । इस प्रकार वे मिथ्या कथन करते हैं । कोई-कोई कहते हैं कि यह जगत प्रजापति या महेश्वर ने बनाया है । किसी का कहना है कि समस्त जगत विष्णुमय है । किसी की मान्यता है कि आत्मा अकर्ता है किन्तु पुण्य और पाप का भोक्ता है । सर्व प्रकार से तथा सर्वत्र देश-काल में इन्द्रियाँ ही कारण हैं । आत्मा नित्य है, निष्क्रिय है, निर्गुण है और निर्लेप है । असद्भाववादी इस प्रकार प्ररूपणा करते हैं । कोईकोई ऋद्धि, रस और साता के गारव से लिप्त या इनमें अनुरक्त बने हुए और क्रिया करने में आलसी बहुत से वादी धर्म की मीमांसा करते हुए इस प्रकार मिथ्या प्ररूपणा करते हैं-इस जीवलोक में जो कुछ भी सुकृत या दुष्कृत दष्टिगोचर होता है, वह सब यदच्छा से, स्वभाव से अथवा दैवतप्रभाव से ही होता है । इस लोक में कुछ भी ऐसा नहीं है जो पुरुषार्थ से किया गया तत्त्व हो । लक्षण और विद्या की की नियति ही है, ऐसा कोई कहते हैं
कोई-कोई दूसरे लोग राज्यविरुद्ध मिथ्या दोषारोपण करते हैं । यथा-चोरी न करने वाले को चोर कहते हैं। जो उदासीन है उसे लड़ाईखोर कहते हैं । जो सुशील है, उसे दुःशील कहते हैं, यह परस्त्रीगामी है, ऐसा कहकर उसे मलिन करते हैं । उस पर ऐसा आरोप लगाते हैं कि यह तो गुरुपत्नी के साथ अनुचित सम्बन्ध रखता है । यह अपने मित्र की पत्नियों का सेवन करता है । यह धर्महीन है, यह विश्वासघाती है, पापकर्म करता है, नहीं करने योग्य कृत्य करता है, यह अगम्यगामी है, यह दुष्टात्मा है, बहुत-से पापकर्मों को करने वाला है । इस प्रकार ईर्ष्यालु लोग मिथ्या प्रलाप करते हैं । भद्र पुरुष के परोपकार, क्षमा आदि गुणों की तथा कीर्ति, स्नेह एवं परभव की लेशमात्र परवाह न करने वाले वे असत्यवादी, असत्य भाषण करने में कुशल, दूसरों के दोषों को बताने में निरत रहते हैं । वे विचार किए बिना बोलने वाले, अक्षय दुःख के कारणभूत अत्यन्त दृढ़ कर्मबन्धनों से अपनी आत्मा को वेष्टित करते हैं।
पराये धन में अत्यन्त आसक्त वे निक्षेप को हड़प जाते हैं तथा दूसरे को ऐसे दोषों से दूषित करते हैं जो दोष उनमें विद्यमान नहीं होते । धन लोभी झूठी साक्षी देते हैं । वे असत्यभाषी धन के लिए, कन्या के लिए, भूमि के लिए तथा गाय-बैल आदि पशुओं के निमित्त अधोगतिमें ले जानेवाला असत्यभाषण करते हैं। इसके अतिरिक्त वे मृषावादी जाति, कुल, रूप एवं शील के विषयमें असत्यभाषण करते हैं । मिथ्या षड्यंत्र रचनेमें कुशल, परकीय असद्गुणों के प्रकाशक, सद्गुणों के विनाशक, पुण्य-पाप के स्वरूप से अनभिज्ञ, अन्यान्य प्रकार से भी असत्य बोलते हैं । वह असत्य माया के कारण गुणहीन हैं, चपलता से युक्त हैं, चुगलखोरी से परिपूर्ण हैं, परमार्थ को नष्ट करने वाला, असत्य अर्थ वाला, द्वेषमय, अप्रिय, अनर्थकारी, पापकर्मों का मूल एवं मिथ्यादर्शन से युक्त है। वह कर्णकटु, सम्यग्ज्ञानशून्य, लज्जाहीन, लोकगर्हित, वध-बन्धन आदि रूप क्लेशों से परिपूर्ण, जरा, मृत्यु, दुःख और शोक का कारण है, अशुद्ध परिणामों के कारण संक्लेश से युक्त है । जो लोग मिथ्या अभिप्राय में सन्निविष्ट हैं, जो अविद्यमान गुणों की उदीरणा करने वाले, विद्यमान गुणों के नाशक हैं, हिंसा करके प्राणियों का उपघात करते हैं, जो असत्य भाषण करने में प्रवृत्त हैं, ऐसे लोग सावध-अकुशल, सत्-पुरुषों द्वारा गर्हित और अधर्मजनक वचनों का प्रयोग करते हैं । ऐसे मनुष्य पुण्य और पाप के स्वरूप से अनभिज्ञ होते हैं । वे पुनः अधिकरणों, शस्त्रों आदि की क्रिया में प्रवृत्ति करने वाले हैं, वे अपना और दूसरों का बहुविध से अनर्थ और विनाश करते हैं।
इसी प्रकार घातकों को भैंसा और शूकर बतलाते हैं, वागुरिकों-को-शशक, पसय और रोहित बतलाते हैं, तीतुर, बतक और लावक तथा कपिंजल और कपोत पक्षीघातकों को बतलाते हैं, मछलियाँ, मगर और कछुआ मच्छीमारों को बतलाते हैं, शंख, अंक और कौड़ी के जीव धीवरों को बतला देते हैं, अजगर, गोणस, मंडली एवं दर्वीकर जाति के सर्पो को तथा मुकुली-को सँपेरों को-बतला देते हैं, गोधा, सेह, शल्लकी और गिरगट लुब्धकों को बतला देते हैं, गजकुल और वानरकुल के झुंड पाशिकों को बतलाते हैं, तोता, मयूर, मैना, कोकिला और हंस के कुल तथा सारस पक्षी पोषकों को बतला देते हैं | आरक्षकों को वध, बन्ध और यातना देने के उपाय बतलाते हैं। चोरों को धन, धान्य और गाय-बैल आदि पशु बतला कर चोरी करने की प्रेरणा करते हैं । गुप्तचरों को ग्राम, नगर,
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (प्रश्नव्याकरण) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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