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________________ आगम सूत्र १०, अंगसूत्र-१०, 'प्रश्नव्याकरण' द्वार/अध्ययन/सूत्रांक आकर और पत्तन आदि बस्तियाँ बतलाते हैं । ग्रन्थिभेदकों को रास्ते के अन्त में अथवा बीच में मारने-लूटने-टांठ काटने आदि की सीख देते हैं । नगररक्षकों को की हुई चोरी का भेद बतलाते हैं । गाय आदि पशुओं का पालन करने वालों को लांछन, नपुंसक, धमण, दुहना, पोषना, पीडा पहुँचाना, वाहन गाड़ी आदि में जोतना, इत्यादि अनेकानेक पाप-पूर्ण कार्य सिखलाते हैं । इसके अतिरिक्त खान वालों को गैरिक आदि धातुएं बतलाते हैं, चन्द्रकान्त आदि मणियाँ बतलाते हैं, शिलाप्रवाल बतलाते हैं । मालियों को पुष्पों और फलों के प्रकार बतलाते हैं तथा वनचरों को मधु का मूल्य और मधु के छत्ते बतलाते हैं। मारण, मोहन, उच्चाटन आदि के लिए यन्त्रों, संखिया आदि विषों, गर्भपात आदि के लिए जड़ी-बूटियों के प्रयोग, मन्त्र आदि द्वारा नगर में क्षोभ या विद्वेष उत्पन्न कर देने, द्रव्य और भाव से वशीकरण मन्त्रों एवं औषधियों के प्रयोग करने, चोरी, परस्त्रीगमन करने आदि बहत-से पापकर्म उपदेश तथा छलसे शत्रसेना की शक्ति नष्ट करने अथवा उसे कुचल देने के, जंगल में आग लगाने, तालाब आदि जलाशयों को सूखाने के, ग्रामघात के, बुद्धि के विषय-विज्ञान आदि भय, मरण, क्लेश और दुःख उत्पन्न करनेवाले, अतीव संक्लेश होने के कारण मलिन, जीवों का घात और उपघात करनेवाले वचन तथ्य होने पर भी प्राणिघात करनेवाले असत्य वचन, मृषावादी बोलते हैं। अन्य प्राणियों को सन्ताप करने में प्रवृत्त, अविचारपूर्वक भाषण करने वाले लोग किसी के पूछने पर और बिना पूछे ही सहसा दूसरों को उपदेश देते हैं कि-ऊंटों को बैलों को और रोझों को दमो । वयःप्राप्त अश्वों को, हाथियों को, भेड़-बकरियों को या मुर्गों को खरीदो खरीदवाओ, इन्हें बेच दो, पकाने योग्य वस्तुओं को पकाओ, स्वजन को दे दो, पेय-का पान करो, दासी, दास, भृतक, भागीदार, शिष्य, कर्मकर, किंकर, ये सब प्रकार के कर्मचारी तथा ये स्वजन और परिजन क्यों कैसे बैठे हुए हैं ! ये भरण-पोषण करने योग्य हैं । ये आपका काम करें। ये सघन वन, खेत, बिना जोती हुई भूमि, वल्लर, जो उगे हुए घास-फूस से भरे हैं, इन्हें जला डालो, घास कटवाओ या उखड़वा डालो, यन्त्रों, भांड उपकरणों के लिए और नाना प्रकार के प्रयोजनों के लिए वृक्षों को कटवाओ, इक्षु को कटवाओ, तिलों को पेलो, ईंटों को पकाओ, खेतों को जोतो, जल्दी-से ग्राम, आकर नगर, खेड़ा और कर्वटकुनगर आदि को बसाओ । पुष्पों, फूलों को तथा प्राप्तकाल कन्दों और मूलों को ग्रहण करो। संचय करो । शाली, ब्रीहि आदि और जौ काट लो । इन्हें मलो । पवन से साफ करो और शीघ्र कोठार में भर लो। छोटे, मध्यम और बड़े नौकादल या नौकाव्यापारियों या नौकायात्रियों के समूह को नष्ट कर दो, सेना प्रयाण करे, संग्रामभूमि में जाए, घोर युद्ध प्रारंभ हो, गाड़ी और नौका आदि वाहन चलें, उपनयन संस्कार, चोलक, विवाह-संस्कार, यज्ञ-ये सब कार्य अमक दिनों में, बालव आदि करणों में, अमतसिद्धि आदि महर्मों में, अश्विनी पुष्य आदि नक्षत्रों में और नन्दा आदि तिथियों में होने चाहिए । आज सौभाग्य के लिए स्नान करना चाहिए-आज प्रमोदपूर्वक बहुत विपुल मात्रा में खाद्य पदार्थों एवं मदिरा आदि पेय पदार्थों के भोज के साथ सौभाग्यवृद्धि अथवा पुत्रादि की प्राप्ति के लिए वधू आदि को स्नान कराओ तथा कौतुक करो । सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण और अशुभ स्वप्न के फल को निवारण करने के लिए विविध मंत्रादि से संस्कारित जल से स्नान और शान्तिकर्म करो । अपने कुटुम्बीजनों की अथवा अपने जीवन की रक्षा के लिए कृत्रिम प्रतिशीर्षक चण्डी आदि देवियों की भेंट चढ़ाओ। अनेक प्रकार की ओषधियों, मद्य, मांस, मिष्टान्न, अन्न, पान, पुष्पमाला, चन्दन-लेपन, उबटन, दीपक, सुगन्धित धूप, पुष्पों तथा फलों से परिपूर्ण विधिपूर्वक बकरा आदि पशुओं के सिरों की बली दो । विविध प्रकार की हिंसा करके उत्पात, प्रकृति-विकार, दुःस्वप्न, अपशकुन, क्रूरग्रहों के प्रकोप, अमंगल सूचक अंगस्फुरण आदि के फल को नष्ट करने के लिए प्रायश्चित्त करो । अमुक की आजीविका नष्ट कर दो । किसी को कुछ भी दान मत दो । वह मारा गया, यह अच्छा हुआ । उसे काट डाया गया, यह ठीक हुआ । उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले गये, यह अच्छा हुआ । इस प्रकार किसी के न पूछने पर भी आदेश-उपदेश अथवा कथन करते हुए, मन-वचन-काय से मिथ्या आचरण करने वाले अनार्य, अकुशल, मिथ्यामतों का अनुसरण करने वाले मिथ्या भाषण करते हैं । ऐसे मिथ्याधर्म में निरत लोग मिथ्या कथाओं में रमण करते हुए, नाना प्रकार से असत्य का सेवन करते सन्तोष का अनुभव करते हैं। मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (प्रश्नव्याकरण) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 14
SR No.034677
Book TitleAgam 10 Prashnavyakaran Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages54
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 10, & agam_prashnavyakaran
File Size3 MB
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