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आगम सूत्र-८, अंगसूत्र-८, 'अंतकृत् दशा'
वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक वर्ग-३
अध्ययन-१ सूत्र-१०
श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने अंतगडदशा के तृतीय वर्ग के १३ अध्ययन फरमाये हैं जैसे किअनीयस, अनन्तसेन, अनिहत, विद्वत्, देवयश, शत्रुसेन, सारण, गज, सुमुख, दुर्मुख, कूपक, दारुक और अनादृष्टि। भगवन् ! यदि श्रमण यावत् मोक्षप्राप्त भगवान महावीर ने अन्तगडदशा के १३ अध्ययन बताये हैं तो भगवन् ! अन्तगडसूत्र के तीसरे वर्ग के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? हे जंबू ! उस काल और उस समय में भद्दिलपुर नामक नगर था । उसके ईशानकोण में श्रीवन नामक उद्यान था । जितशत्रु राजा था । नाग नाम का गाथापति था । वह अत्यन्त समृद्धिशाली यावत् तेजस्वी था । उस नाग गाथापति की सुलसा नाम की भार्या थी । वह अत्यन्त सुकोमल यावत् रूपवान् थी । उस नाग गाथापति का पुत्र सुलसा भार्या का आत्मज अनीयस नामक कुमार था । (वह) सुकोमल था यावत् सौन्दर्य से परिपूर्ण था । पाँच धायमाताओं से परिरक्षित दृढ़प्रतिज्ञ कुमार की तरह सर्व वृत्तान्त समझना । यावत् गिरिगुफा में स्थित चम्पक वृक्ष के समान सुखपूर्वक बढ़ने लगा । तत्पश्चात् अनीयस कुमार को आठ वर्ष से कुछ अधिक उम्र वाला हुआ जानकर माता-पिता ने उसे कलाचार्य के पास भेजा । तत्पश्चात् कलाचार्य ने अनीयस कुमार को बहत्तर कलाएं सूत्र से, अर्थ से और प्रयोग से सिद्ध करवाई तथा सिखलाई-यावत् वह भोग भोगने में समर्थ हो गया।
तब माता-पिता ने अनीयस कुमार को बाल्यावस्था से पार हुआ जानकर बत्तीस उत्तम इभ्य-कन्याओं का एक ही दिन पाणिग्रहण कराया । विवाह के अनन्तर वह नाग गाथापति अनीयस कुमार को प्रीतिदान देते समय बत्तीस करोड़ चाँदी के सिक्के तथा महाबल कुमार की तरह अन्य बत्तीस प्रकार की अनेकों वस्तुएं दी । उस काल तथा उस समय श्रीवन नामक उद्यान में भगवान अरिष्टनेमि स्वामी पधारे । यथाविधि अवग्रह की याचना करके संयम एवं तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे । जनता उनका धर्मोपदेश सूनने के लिए उद्यान में पहुँची और धर्मोपदेश सून कर अपने-अपने घर वापस चली गई। भगवंत के दर्शन के लिए अनीयस कुमार भी आया यावत् गौतमकुमार की तरह उसने दीक्षा ग्रहण की । दीक्षा लेने के अनन्तर उन्होंने सामायिक से लेकर चौदह पूर्वो का अध्ययन किया । बीस वर्ष दीक्षा का पालन किया । अन्त समय में एक मास की संलेखना करके शत्रुजय पर्वत पर सिद्ध गति को प्राप्त किया । हे जम्बू ! इस प्रकार श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने अष्टम अंग अन्तगड के तृतीय वर्ग के प्रथम अध्ययन का अर्थ प्रतिपादन किया था।
वर्ग-३ अध्ययन-२ से ६ सूत्र - ११
इसी प्रकार अनन्तसेन से लेकर शत्रुसेन पर्यन्त अध्ययनों का वर्णन भी जान लेना चाहिए । सब का बत्तीस-बत्तीस श्रेष्ठ कन्याओं के साथ विवाह हुआ था और सब को बत्तीस-बत्तीस पूर्वोक्त वस्तुएं दी गई । बीस वर्ष तक संयम का पालन एवं १४ पूर्त का अध्ययन किया । अन्त में एक मास की संलेखना द्वारा शत्रुजय पर्वत पर पाँचों ही सिद्ध गति को प्राप्त हुए।
वर्ग-३ अध्ययन-७ सूत्र-१२
उस काल तथा उस समय में द्वारका नगरी थी । वसदेव राजा था । रानी धारिणी थी। उसने गर्भाधान के पश्चात् स्वप्नमें सिंह देखा । समय आने पर बालक को जन्म दिया, उसका नाम सारणकुमार रखा । उसे विवाहमें ५०-५० वस्तुओं का दहेज मिला । सारणकुमारने सामायिक से १४ पूर्वो का अध्ययन किया । बीस वर्ष दीक्षापर्याय का पालन किया । शेष सब वृत्तान्त गौतम की तरह । शत्रुजयपर्वत पर एक मास संलेखना कर यावत् सिद्ध हुए।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अंतकृद्दशा) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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