________________
आगम सूत्र-८, अंगसूत्र-८, 'अंतकृत् दशा'
वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक सूत्र-५
विशेष यह कि उस बालक का नाम गौतम रखा गया, उसका एक ही दिन में आठ श्रेष्ठ राजकुमारियों के साथ पाणिग्रहण करवाया गया तथा दहेज में आठ-आठ प्रकार की वस्तुएं दी गईं । उस काल तथा उस समय श्रुतधर्म का आरेभ करने वाले, धर्म के प्रवर्तक अरिष्टनेमि भगवान् यावत् विचरण कर रहे थे । चार प्रकार के देव उपस्थित हुए । कृष्ण वासुदेव भी वहाँ आए । तदनन्तर उनके दर्शन करने को गौतम कुमार भी तैयार हुए । मेघ कुमार श्रमण भगवान महावीर स्वामी के पास गये थे वैसे गौतम कुमार ने भी भगवान अरिष्टनेमि से धर्मश्रवण किया । विशेष यह कि मैं अपने मातापिता से पूछकर आपके पास दीक्षा ग्रहण करूँगा । जिस प्रकार श्रमण भगवान महावीर स्वामी के पास मेघ कुमार दीक्षित हुए थे यावत् उसी प्रकार गौतम कुमार ने भी पंचमुष्टिक लोच किया । गौतम निर्ग्रन्थ-प्रवचन को सन्मुख रखकर भगवान की आज्ञाओं का पालन करते हुए विचरने लगे।
इसके पश्चात् गौतम अनगार ने अन्यदा किसी समय भगवान अरिष्टनेमि के सान्निध्य में रहने वाले आचार, विचार की उच्चता को पूर्णतया प्राप्त स्थविरों के पास सामायिक से लेकर आचारांगादि ११ अंगों का अध्ययन किया यावत् आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे । अरिहंत भगवान अरिष्टनेमि ने अब द्वारका नगरी के नन्दन वन से विहार कर दिया और वे अन्य जनपदों में विचरण करने लगे । गौतम मुनि अवसर पाकर भगवान अरिष्टनेमि की सेवा में उपस्थित हुए । विधिपूर्वक वंदना, नमस्कार करने के अनन्तर उन्होंने भगवान से निवेदन किया"भगवन् ! मेरी ईच्छा है यदि आप आज्ञा दें तो मैं मासिकी भिक्षु-प्रतिमा की आराधना करूँ ।' भगवान से आज्ञा पाकर वे साधना में लीन हो गए । स्कन्धक मुनि के समान मुनि गौतम ने भी बारह भिक्षु-प्रतिमाओं का आराधन करके गुणरत्न नामक तप का भी वैसे ही आराधन किया, चिंतन किया, भगवान से पूछा तथा स्थविर मुनियों के साथ वैसे ही शत्रुजय पर्वत पर चढ़े । १२ वर्ष की दीक्षा पर्याय पूर्ण कर एक मास की संलेखना द्वारा यावत् सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, सकल कर्मजन्य संतापों से रहित एवं सब प्रकार के दुःखों से विमुक्त हो गए।
"हे जंबू ! भगवान महावीर ने आठवें अंतगडसूत्र के प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययनों का यह अर्थ कहा है। जिस प्रकार गौतम का वर्णन किया गया है, उसी प्रकार समुद्र, सागर, गम्भीर, स्तिमित, अचल, काम्पिल्य, अक्षोभ, प्रसेनजित और विष्णु, इन नव अध्ययनों का अर्थ भी समझ लेना । सब के पिता अन्धकवृष्णि थे । माता धारिणी थी। सब का वर्णन एक जैसा है। इस प्रकार दस अध्ययनों के समुदाय रूप प्रथम वर्ग का वर्णन किया गया है।"
वर्ग-१-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अंतकृद्दशा) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 6