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________________ आगम सूत्र-८, अंगसूत्र-८, 'अंतकृत् दशा' वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक भगवान महावीर बिराजमान थे, वहाँ आते और फिर भिक्षा में मिले हुए आहार-पानी को प्रभु महावीर को दिखाते । दिखाकर उनकी आज्ञा पाकर मूर्छा रहित, गृद्धि रहित, राग रहित और आसक्ति रहितः जिस प्रकार बिल में सर्प सीधा ही प्रवेश करता है उस प्रकार राग-द्वेष भाव से रहित होकर उस आहार-पानी का सेवन करते । तत्पश्चात् किसी दिन श्रमण भगवान महावीर राजगृह नगर के उस गुणशील उद्यान से नीकलकर बाहर जनपदों में विहार करने लगे । अर्जुन मुनि ने उस उदार, श्रेष्ठ, पवित्र भाव से ग्रहण किये गये, महालाभकारी, विपुल तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए पूरे छह मास श्रमण धर्म का पालन किया । इसके बाद आधे मास की संलेखना से अपनी आत्मा को भावित करके तीस भक्त के अनशन को पूर्ण कर जिस कार्य के लिए व्रत ग्रहण किया था उसको पूर्ण कर वे अर्जुन मुनि यावत् सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो गए। वर्ग-६ अध्ययन-४ से १४ सूत्र - २८ उस काल उस समय राजगृह नगर में गुणशील नामक चैत्य था । श्रेणिक राजा था । काश्यप नाम का एक गाथापति रहता था । उसने मकाई की तरह सोलह वर्ष तक दीक्षापर्याय का पालन किया और अन्त समय में विपुलगिरि पर्वत पर जाकर संथारा आदि करके सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो गया। सूत्र - २९ इसी प्रकार क्षेमक गाथापति का वर्णन समझें । विशेष इतना है कि काकंदी नगरी के निवासी थे और सोलह वर्ष का उनका दीक्षाकाल रहा, यावत् वे भी विपुलगिरि पर सिद्ध हुए। सूत्र-३० ऐसे ही धतिधर गाथापति का भी वर्णन समझें । वे काकंदी के निवासी थे। सूत्र - ३१ इसी प्रकार कैलाश गाथापति भी थे । विशेष यह कि ये साकेत नगर के रहने वाले थे, इन्होंने बारह वर्ष की दीक्षापर्याय पाली और विपुलगिरी पर्वत पर सिद्ध हुए । सूत्र-३२ ऐसे ही आठवें हरिवन्दन गाथापति भी थे । वे भी साकेत नगरनिवासी थे। सूत्र - ३३ इसी तरह नवमे वारत्त गाथापति राजगृह नगर के रहने वाले थे। सूत्र - ३४ दशवें सुदर्शन गाथापति का वर्णन भी इसी प्रकार समझें । विशेष यह कि वाणिज्यग्राम नगर के बाहर द्युतिपलाश नामका उद्यान था । वहाँ दीक्षित हुए । पाँच वर्ष का चारित्र पालकर विपुलगिरि में सिद्ध हुए। सूत्र - ३५ पूर्णभद्र गाथापति का वर्णन सुदर्शन जैसा ही है। सूत्र - ३६ सुमनभद्र गाथापति श्रावस्ती नगरी के वासी थे । बहुत वर्षों तक चारित्र पालकर विपुलाचल पर सिद्ध हुए। सूत्र-३७,३८ सुप्रतिष्ठित गाथापति श्रावस्ती नगरी के थे और सत्ताईस वर्ष संयम पालकर विपुलगिरि पर सिद्ध हए। मेघ गाथापति का वृत्तान्त भी ऐसे ही समझें । विशेष-राजगृह के निवासी थे और बहुत वर्षों तक चारित्र पालकर विपुलगिरि पर सिद्ध हुए। मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अंतकृद्दशा) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 24
SR No.034675
Book TitleAgam 08 Antkruddasha Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages35
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 08, & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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