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आगम सूत्र-८, अंगसूत्र-८, 'अंतकृत् दशा'
वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक
वर्ग-६ अध्ययन-१५ सूत्र-३९
उस काल और उस समय में पोलासपुर नामक नगर था । वहाँ श्रीवन नामक उद्यान था । उस नगर में विजय नामक राजा था । उसकी श्रीदेवी नामकी महारानी थी, यहाँ राजा-रानी का वर्णन समझ लेना । महाराजा विजय का पुत्र, श्रीदेवी का आत्मज अतिमुक्त नामका कुमार था जो अतीव सुकुमार था । उस काल और उस समय श्रमण भगवान महावीर पोलासपुर नगर के श्रीवन उद्यान में पधारे । उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ शिष्य इन्द्रभूति, व्याख्या प्रज्ञप्ति में कहे अनुसार निरन्तर बेले-बेले का तप करते हुए संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरते थे । पारणे के दिन पहली पौरीसी में स्वाध्याय, दूसरी पौरिसी में ध्यान
और तीसरी पौरिसी में शारीरिक शीघ्रता से रहित, मानसिक चपलता रहित, आकुलता और उत्सुकता रहित होकर मुख-वस्त्रिका की पडिलेखना करते हैं और फिर पात्रों और वस्त्रों की प्रतिलेखना करते हैं । फिर पात्रों की प्रमार्जना करके और पात्रों को लेकर जहाँ श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे वहाँ आए, आकर भगवान को वंदनानमस्कार कर इस प्रकार निवेदन किया-'"हे भगवन् ! आज षष्ठभक्त के पारणे के दिन आपकी आज्ञा होने पर पोलासपुर नगर में यावत्-भिक्षार्थ भ्रमण करने लगे।
___ इधर अतिमुक्त कुमार स्नान करके यावत् शरीर की विभूषा करके बहुत से लड़के-लड़कियों, बालकबालिकाओं और कुमार-कुमारियों के साथ अपने घर से नीकले और नीकल कर जहाँ इन्द्रस्थान अर्थात् क्रीड़ास्थान था वहाँ आए । वहाँ आकर उन बालक बालिकाओं के साथ खेलने लगे। उस समय भगवान गौतम पोलासपुर नगर में सम्पन्न-असम्पन्न था मध्य कुलों में यावत् भ्रमण करते हुए उस क्रीड़ास्थल के पास से जा रहे थे । उस समय अतिमुक्त कुमार ने भगवान गौतम को पास से जाते हए देखा । देखकर जहाँ भगवान गौतम से बोले-'भन्ते ! आप कौन हैं ? और क्यों घूम रहे हैं ?' तब भगवान गौतम ने अतिमुक्त कुमार को इस प्रकार कहा'हे देवानुप्रिय ! हम श्रमण निर्ग्रन्थ हैं, ईयासमिति आदि सहित यावत् ब्रह्मचारी हैं, छोटे बड़े कुलों में भिक्षार्थ भ्रमण करते हैं।
यह सूनकर अतिमुक्त कुमार बोले-'भगवन् ! आप आओ ! मैं आपको भिक्षा दिलाता हूँ।' ऐसा कहकर अतिमुक्त कुमार ने भगवान गौतम की अंगुली पकड़ी और उनको अपने घर ले आए । श्रीदेवी महारानी भगवान गौतम स्वामी को आते देख बहत प्रसन्न हई यावत् आसन से उठकर सम्मुख आई। भगवान गौतम को तीन बार प्रदक्षिणा करके वंदना की, नमस्कार किया फिर विपल अशन, पान, खादिम और स्वादिम से प्रतिलाभ दिया यावत विधिपूर्वक विसर्जित किया । इसके बाद भगवान गौतम से अतिमुक्त कुमार इस प्रकार बोले-'हे देवानुप्रिय ! आप कहाँ रहते हैं ?' देवानुप्रिय ! मेरे धर्माचार्य और धर्मोपदेशक भगवान महावीर धर्म की आदि करने वाले, यावत् शाश्वत स्थान-के अभिलाषी इसी पोलासपुर नगर के बाहर श्रीवन उद्यान में मर्यादानुसार स्थान ग्रहण करके संयम एवं तप से आत्मा को भावित कर विचरते हैं । हम वहीं रहते हैं।'
तब अतिमुक्त कुमार भगवान गौतम से इस प्रकार बोले-'हे पूज्य ! मैं भी आपके साथ श्रमण भगवान महावीर को वंदन करने चलता हूँ |' 'देवानुप्रिय ! जैसे तुम्हें सुख हो वैसा करो !' तब अतिमुक्त कुमार गौतम स्वामी के साथ श्रमण भगवान महावीर स्वामी के पास आये और आकर श्रमण भगवान महावीर को तीन बार प्रदक्षिणा की । फिर वंदना करके पर्युपासना करने लगे। इधर गौतम स्वामी भगवान महावीर की सेवा में उपस्थित हुए, और गमनागमन संबंधी प्रतिक्रमण किया, तथा भिक्षा लेने में लगे हुए दोषों की आलोचना की । फिर लाया हुआ आहारपानी भगवान को दिखाया और दिखाकर संयम तथा तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे। तब श्रमण भगवान महावीर ने अतिमुक्त कुमार को तथा महती परिषद् को धर्म-कथा कही।
अतिमुक्त कुमार श्रमण भगवान महावीर के पास धर्मकथा सूनकर और उसे धारण कर बहुत प्रसन्न और सन्तुष्ट हुआ । विशेष यह है कि उसने कहा-''देवानुप्रिय ! मैं माता-पिता से पूछता हूँ । तब मैं देवानुप्रिय के पास
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अंतकृद्दशा) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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