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आगम सूत्र-८, अंगसूत्र-८, 'अंतकृत् दशा'
वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक भी पराभव को प्राप्त नहीं हो पाती थी। किसी समय राजा का कोई अभीष्ट-कार्य संपादन करने के कारण राजा ने उस मित्र-मंडली पर प्रसन्न होकर अभयदान दे दिया था कि वह अपनी ईच्छानुसार कोई भी कार्य करने में स्वतन्त्र है। राज्य की ओर से उसे पूरा संरक्षण था, इस कारण यह गोष्ठी बहुत उच्छंखल और स्वच्छन्द बन गई । एक दिन राजगृह नगर में एक उत्सव मनाने की घोषणा हुई । इस पर अर्जुनमाली ने अनुमान किया कि कल इस उत्सव के अवसर पर बहुत अधिक फूलों की माँग होगी । इसलिए उस दिन वह प्रातःकाल में जल्दी ही ऊठा और बाँस की छबड़ी लेकर अपनी पत्नी बन्धुमती के साथ जल्दी घर से नीकला । नगर में होता हुआ अपनी फुलवाड़ी में पहुंचा
और अपनी पत्नी के साथ फूलों को चून-चून कर एकत्रित करने लगा । उस समय पूर्वोक्त 'ललिता' गोष्ठी के छह गोष्ठिक पुरुष मुद्गरपाणि यक्ष के यक्षायतन में आकर आमोद-प्रमोद करने लगे।
उधर अर्जनमाली अपनी पत्नी बन्धमती के साथ फल-संग्रह करके उनमें से कुछ उत्तम फल छाँटकर उनसे नित्य-नियम अनुसार मुद्गरपाणि यक्ष की पूजा करने के लिए यक्षायतन की ओर चला । उन छह गोष्ठिक पुरुषों ने अर्जुनमाली को बन्धुमती भार्या के साथ यक्षायतन की ओर आते देखा । परस्पर विचार करके निश्चय किया"अर्जुनमाली अपनी बन्धुमती भार्या के साथ इधर ही आ रहा है । हम लोगों के लिए यह उत्तम अवसर है कि अर्जुनमाली को तो औंधी मुश्कियों से बलपूर्वक बाँधकर एक और पटक दें और बन्धुमति के साथ खूब काम क्रीड़ा करें ।" यह निश्चय करके वे छहों उस यक्षायतन के किवाड़ों के पीछे छिप कर निश्चल खड़े हो गए और उन दोनों के यक्षायतन के भीतर प्रविष्ट होने की श्वास रोककर प्रतीक्षा करने लगे । इधर अर्जुनमाली अपनी बन्धुमती भार्या के साथ यक्षायतन में प्रविष्ट हुआ और यक्ष पर दृष्टि पड़ते ही उसे प्रणाम किया । फिर चूने हुए उत्तमोत्तम फूल उस पर चढ़ाकर दोनों घुटने भूमि पर टेककर प्रणाम किया । उसी समय शीघ्रता से उन छह गोष्ठिक पुरुषों ने किवाड़ों के पीछे से नीकलकर अर्जुनमाली को पकड़ लिया और उसकी औंधी मुश्कें बाँधकर उसे एक ओर पटक दिया । फिर उसकी पत्नी बन्धुमती मालिन के साथ विविध प्रकार से कामक्रीड़ा करने लगे।
यह देखकर अर्जुनमाली के मन में यह विचार आया-''मैं अपने बचपन से ही भगवान मुद्गरपाणि को अपना इष्टदेव मानकर इसकी प्रतिदिन भक्तिपूर्वक पूजा करता आ रहा हूँ । इसकी पूजा करने के बाद ही इन फूलों को बेचकर अपना जीवन-निर्वाह करता हूँ। तो यदि मुद्गरपाणि यक्ष देव यहाँ वास्तव में ही होता हो तो क्या मुझे इस प्रकार विपत्ति में पड़ा देखता रहता ? अतः वास्तव में यहाँ मुद्गरपाणि यक्ष नहीं है । यह तो मात्र काष्ठ का
। तब मदगरपाणि यक्ष ने अर्जनमाली के इस प्रकार के मनोगत भावों को जानकर उसके शरीर में प्रवेश किया और उसके बन्धनों को तड़ातड़ तोड़ डाला । तब उस मुद्गरपाणि यक्ष से आविष्ट अर्जुनमाली ने लोहमय मुद् गर को हाथ में लेकर अपनी बन्धुमती भार्या सहित उन छहों गोष्ठिक पुरुषों को उस मुदगर के प्रहार से मार डाल इस प्रकार इन सातों का घात करके मुद्गरपाणि यक्ष से आविष्ट वह अर्जुनमाली राजगृह नगर की बाहरी सीमा के आसपास चारों ओर छह पुरुषों और एक स्त्री, इस प्रकार सात मनुष्यों की प्रतिदिन हत्या करत हुए घूमने लगा।
उस समय राजगृह नगर के शृंगाटक आदि सभी स्थानों में बहुत से लोग परस्पर इस प्रकार बोलने लगी"देवानुप्रियों ! अर्जुनमाली, मुद्गरपाणि यक्ष के वशीभूत होकर राजगृह नगर के बाहर एक स्त्री और छह पुरुष इस प्रकार सात व्यक्तियों को प्रतिदिन मार रहा है।' उस समय जब श्रेणिक राजा ने यह बात सूनी तो उन्होंने अपने सेवक पुरुषों को बुलाया और उनको इस प्रकार कहा-'हे देवानुप्रियों ! राजगृह नगर के बाहर अर्जुनमाली यावत् छह पुरुषों और एक स्त्री-इस प्रकार सात व्यक्तियों का प्रतिदिन घात करता हुआ घूम रहा है । अतः तुम सारे नगर में मेरी आज्ञा को इस प्रकार प्रसारित करो कि कोई भी घास के लिए, काष्ठ, पानी अथवा फल-फूल आदि के लिए राजगृह नगर के बाहर न नीकले । ऐसा न हो कि उनके शरीर का विनाश हो जाए । हे देवानुप्रियों ! इस प्रकार दो तीन बार घोषणा करके मुझे सूचित करो ।' यह राजाज्ञा पाकर राजसेवकों ने राजगृह नगर में घूम घूम कर राजाज्ञा की घोषणा की और घोषणा करके राजा को सूचित कर दिया। __उस रागजृह नगर में सुदर्शन नाम के एक धनाढ्य शेठ रहते थे । वे श्रमणोपासक-थे और जीव-अजीव का
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अंतकृद्दशा) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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