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आगम सूत्र ७, अंगसूत्र-७, 'उपासकदशा'
अध्ययन/ सूत्रांक
शेष कथन सूत्र-५९
दसों ही श्रमणोपासकों को पन्द्रहवे वर्ष में पारिवारिक, सामाजिक उत्तरदायित्व से मुक्त हो कर धर्मसाधना में निरत होने का विचार हुआ । दसों ही ने बीस वर्ष तक श्रावक-धर्म का पालन किया । जम्बू ! सिद्धिप्राप्त भगवान महावीर ने सातवे अंग उपासकदशा के दसवें अध्ययन का यह अर्थ-प्रतिपादित किया । सूत्र-६०
सातवें अंग उपासकदशा में एक श्रुत-स्कन्ध है । दस अध्ययन हैं। उनमें एक सरीखा स्वर-है, इसका दस दिनों में उपदेश किया जाता है । दो दिनों में समुद्देश और अनुज्ञा दी जाती है । इसी प्रकार अंग का समुद्देश और अनुमति समझना चाहिए। सूत्र - ६१
प्रस्तुत सूत्र में वर्णित उपासक निम्नांकित नगरों में हुए-आनन्द वाणिज्यग्राम में, कामदेव चम्पा में, चुलनीपिता वाराणसी में, सुरादेव वाराणसी में, चुल्लशतक आलभिका में, कुंडकौलिक काम्पिल्यपुर में जानना । तथासूत्र - ६२
सकडालपुत्र पोलासपुर में, महाशतक राजगृह में, नन्दिनीपिता श्रावस्ती में, लेइयापिता श्रावस्ती में हुआ। सूत्र - ६३
श्रमणोपासकों की भार्याओं के नाम निम्नलिखित थे-आनन्द की शिवनन्दा, कामदेव की भद्रा, चुलनीपिता की श्यामा, सुरादेव की धन्या, चुल्लशतक की बहुला, कुंडकौलिक की पूषा, सकडालपुत्र की अग्निमित्रा, महाशतक की रेवती आदि तेरह नन्दीनिपिता की अश्विनी और लेइयापिता की फाल्गुनी । सूत्र - ६४
श्रमणोपासकों के जीवन की विशेष घटनाएं निम्नांकित थी-आनन्द को अवधिज्ञान विस्तार के सम्बन्ध में गौतम स्वामी का संशय, भगवान महावीर द्वारा समाधान । कामदेव को पिशाच आदि के रूप में देवोपसर्ग, श्रमणो-पासक की अन्त तक दृढता | चुलनीपिता को देव द्वारा मातृवध की धमकी से व्रत-भंग और प्रायश्चित्त । सुरादेव को देव द्वारा सोलह भयंकर रोग उत्पन्न करने की धमकी से व्रत-भंग और प्रायश्चित्त । चुल्लशतक को देव द्वारा स्वर्ण-मुद्राएं आदि सम्पत्ति बिखेर देने की धमकी से व्रत-भंग और प्रायश्चित्त । कुंडकौलिक को देव द्वारा उत्तरीय एवं अंगूठी उठाकर गोशालक मत की प्रशंसा, कुंडकौलिक की दृढता, नियतिवाद का खण्डन, देव का निरुत्तर होना । सकडालपत्र को व्रतशील पत्नी अग्निमित्रा द्वारा भग्न-व्रत पति को पुनः धर्मस्थित करना । महाशतक को व्रत-हीन रेवती का उपसर्ग, कामोद्दीपक व्यवहार, महाशतक की अविचलता । नन्दिनीपिता को व्रताराधना में कोई उपसर्ग नहीं हआ। और लेइयापिता को व्रताराधना में कोई उपसर्ग नहीं हआ। सूत्र-६५
श्रमणोपासक देह त्यागकर निम्नांकित विमानों में उत्पन्न हए-आनन्द अरुण में, कामदेव अरुणाभ में, चुलनीपिता अरुणप्रभ में, सुरादेव अरुणकान्त में, चुल्लशतक अरुणश्रेष्ठ में, कुंडकौलिक अरुणध्वज में, सकडालपुत्र अरुणभूत में, महाशतक अरुणावतंस में, नन्दिनीपिता अरुणगव में और लेइयापिता अरुणकील में उत्पन्न हुए। सूत्र-६६
श्रमणोपासकों के गोधन की संख्या निम्नांकित रूप में थीं-आनन्द की ४० हजार, कामदेव की ६० हजार, चुलनीपिता की ८००००, सुरादेव की ६००००, चुल्लशतक की ६० हजार, कुंडकौलिक की ६० हजार, सकडाल पुत्र की १० हजार, महाशतक की ८० हजार, नन्दीनिपिता की ४० हजार और लेइयापिता की ४० हजार थीं। सूत्र - ६७
श्रमणोपासकों की सम्पत्ति निम्नांकित स्वर्ण-मुद्राओं में थी-आनन्द की १२ करोड, कामदेव की १८
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (उपासकदशा) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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