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________________ आगम सूत्र ७, अंगसूत्र-७, 'उपासकदशा' अध्ययन/ सूत्रांक अध्ययन-९-नंदिनीपिता सूत्र - ५७ जम्बू ! उस काल-उस समय-श्रावस्ती नगरी थी, कोष्ठक चैत्य था । जितशत्रु राजा था । श्रावस्ती नगरी में नन्दिनीपिता नामक समृद्धिशाली गाथापति निवास करता था । उसकी चार करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं सुरक्षित धन के रूप में खजाने में रखी थीं, चार करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं व्यापार में लगी थीं तथा चार करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं घर की साधनसामग्री में लगी थीं । उसके चार गोकुल थे । प्रत्येक गोकुल में दस-दस हजार गायें थीं । उसकी पत्नी का नाम अश्विनी था । भगवान महावीर श्रावस्ती में पधारे । समवसरण हआ । आनन्द की तरह नन्दिनीपिता ने श्रावक-धर्म स्वीकार किया। भगवान अन्य जनपदों में विहार कर गए। नन्दिनीपिता श्रावक-धर्म स्वीकार कर श्रमणोपासक हो गया, धर्माराधनापूर्वक जीवन बिताने लगा । तदनन्तर श्रमणोपासक नन्दिनीपिता को अनेक प्रकार से अणुव्रत, गुणव्रत आदि की आराधना द्वारा आत्मभावित होते हुए चौदह वर्ष व्यतीत हो गए । उसने आनन्द आदि की तरह अपने ज्येष्ठ पुत्र को पारिवारिक एवं सामाजिक उत्तरदायित्व सौंपा । स्वयं धर्मोपासना में निरत रहने लगा । नन्दिनीपिता ने बीस वर्ष तक श्रावक-धर्म का पालन किया । आनन्द आदि से इतना अन्तर है-देह-त्याग कर वह अरूणग विमान में उत्पन्न हुआ । महाविदेह क्षेत्र में वह सिद्ध-मुक्त होगा। अध्ययन-९ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण अध्ययन-१० - लेइयापिता सूत्र -५८ जम्बू ! उस काल-उस समय-श्रावस्ती नगरी थी, कोष्ठक चैत्य था । जितशत्रु राजा था । श्रावस्ती नगरी में लेइयापिता नामक धनाढ्य एवं दीप्त-गाथापति निवास करता था। उसकी चार करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं सुरक्षित धन के रूप में खजाने में रखी थीं, चार करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं व्यापार में लगी थीं तथा चार करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं घर के वैभवसाधन-सामग्री में लगी थीं। उसके चार गोकुल थे । प्रत्येक गोकुल में दस-दस हजार गायें थीं। उसकी पत्नी का नाम फाल्गुनी था । भगवान महावीर श्रावस्ती में पधारे । समवसरण हुआ । आनन्द की तरह लेइयापिता ने श्रावक-धर्म स्वीकार किया । कामदेव की तरह उसने अपने ज्येष्ठ पुत्र को पारिवारिक एवं सामाजिक उत्तरदायित्व सौंपा । भगवान महावीर के पास अंगीकृत धर्मशिक्षा के अनुरूप स्वयं पोषधशाला में उपासना निरत रहने लगा। इतना ही अन्तर रहा-उसे उपासना में कोई उपसर्ग नहीं हुआ, पूर्वोक्त रूप में उसने ग्यारह श्रावक-प्रतिमाओं की निर्विघ्न आराधना की । उसका जीवन-क्रम कामदेव की तरह समझना चाहिए । देव-त्याग कर वह सौधर्म-देवलोक में अरुणकील विमान में देवरूप में उत्पन्न हआ । उसकी आयुस्थिति चार पल्योपम की है। महाविदेह क्षेत्र में वह सिद्ध-मुक्त होगा। अध्ययन-१० का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (उपासकदशा) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 30
SR No.034674
Book TitleAgam 07 Upasakdasha Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages33
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 07, & agam_upasakdasha
File Size2 MB
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