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________________ आगम सूत्र ७, अंगसूत्र- ७, 'उपासकदशा ' अध्ययन ७ सद्दालपुत्र - अध्ययन / सूत्रांक सूत्र - ४१ पोलासपुर नामक नगर था। सहस्राम्रवन उद्यान था। जितशत्रु राजा था। पोलासपुर में सकडालपुत्र नामक कुम्हार रहता था, जो आजीविक सिद्धान्त का अनुयायी था। वह लब्धार्थ- गृहीतार्थ-पुष्टार्थ-विनिश्चितार्थअभिगतार्थ हुए था । वह अस्थि और मज्जा पर्यन्त अपने धर्म के प्रति प्रेम व अनुराग से भरा था । उसका निश्चित विश्वास था की आजीविक मत ही अर्थ यही परमार्थ है । इसके सिवाय अन्य अनर्थ- प्रयोजनभूत हैं । यों आजीविक मत के अनुसार वह आत्मा को भावित करता हुआ धर्मानुरत था। आजीविक मतानुयायी सकडालपुत्र की एक करोड़ स्वर्ण मुद्राएं सुरक्षित धन के रूप में खजाने में रखी थी। एक करोड़ स्वर्ण मुद्राएं व्यापार में थीं तथा एक करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं- साधन-सामग्री में लगी थीं। उसके एक गोकुल था, जिसमें दस हजार गायें थीं । आजीवि कोपासक सकडालपुत्र की पत्नी का नाम अग्निमित्रा था । पोलासपुर नगर के बाहर आजीविकोपासक सकडालपुत्र कुम्हारगिरी के पाँच सौ आपण थीं । वहाँ भोजन तथा मजदूरी रूप वेतन पर काम करने वाले बहुत से पुरुष प्रतिदिन प्रभात होते ही, करवे, गडुए, परातें, घड़े, छोटे घड़े, कलसे, बड़े घड़े, मटके, सुराहियाँ, उष्ट्रिका कूंपें बनाने में लग जाते थे। भोजन व मजदूरी पर काम करने वाले दूसरे बहुत से पुरुष सुबह होते ही बहुत से करवे तथा कूंपों के साथ सड़क पर अवस्थित हो, बिक्री में लग जाते थे । सूत्र ४२ एक दिन आजीविकोपासक सकडालपुत्र दोपहर के समय अशोकवाटिका में गया, मंखलिपुत्र गोशालक के पास अंगीकृत धर्म-प्रज्ञप्ति के अनुरूप वहाँ उपासना-रत हुआ । आजीविकोपासक सकडालपुत्र के समक्ष एक देव प्रकट हुआ । छोटी-छोटी घंटियों से युक्त उत्तम वस्त्र पहने हुए आकाश में अवस्थित उस देव ने आजीविकोपासक सकडालपुत्र से कहा- देवानुप्रिय कल प्रातःकाल यहाँ महामाहन- अप्रतिहत ज्ञान, दर्शन के धारक, अतीत, वर्तमान एवं भविष्य के ज्ञाता, अर्हत्-जिन सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, तीनों लोक जिनकी सेवा एवं उपासना की वांछा लिए रहते हैं, देव, मनुष्य तथा असुर सभी द्वारा अर्चनीय - वन्दनीय - नमस्करणीय, यावत् पर्युपासनीय तथ्य कर्म-सम्पदा संप्रयुक्त पधारेंगे। तुम उन्हें वन्दन करना, प्रातिहारिक पीठ फलक- शय्या संस्तारक आदि हेतु उन्हें आमंत्रित करना । यों दूसरी बार व तीसरी बार कहकर जिस दिशा से प्रकट हुआ था, उसी दिशा की ओर लौट गया । उस देव द्वारा यों कहे जान पर आजीविकोपासक सकडालपुत्र के मन में ऐसा विचार आया मनोरथ, चिन्तन और संकल्प उठा- मेरे धर्माचार्य, धर्मोपदेशक, महामाहन, अप्रतिम ज्ञान दर्शन के धारक, सत्कर्म -सम्पत्ति युक्त मंखलिपुत्र गोशालक कल यहाँ पधारेंगे। तब मैं उनकी वन्दना, यावत् पर्युपासना करूँगा तथा प्रातिहारिक हेतु आमंत्रित करूँगा । सूत्र - ४३ - T तत्पश्चात् अगले दिन प्रातः काल भगवान महावीर पधारे। परीषद् जुड़ी, भगवान की पर्युपासना की । आजीविकोपासक सकडालपुत्र ने यह सूना कि भगवान महावीर पोलासपुर नगर में पधारे हैं। उसने सोचा- मैं जाकर भगवान की वन्दना, यावत् पर्युपासना करूँ यों सोचकर उसने स्नान किया, शुद्ध, सभायोग्य वस्त्र पहने । थोड़े से बहुमूल्य आभूषणों से देह को अलंकृत किया, अनेक लोगों को साथ लिए वह अपने घर से नीकला, पोलासपुर नगर से सहस्राम्रवन उद्यान में, जहाँ भगवान महावीर विराजित थे, आया। तीन बार आदक्षिणप्रदक्षिणा की, वन्दन-नमस्कार किया यावत् पर्युपासना की । तब श्रमण भगवान महावीर ने आजीविकोपासक सकडालपुत्र को तथा विशाल परीषद् को धर्म देशना दी। श्रमण भगवान महावीर ने आजीविकोपासक सकडालपुत्र से कहा- सकडालपुत्र ! कल दोपहर के समय तुम जब अशोकवाटिका में थे तब एक देव तुम्हारे समक्ष प्रकट हुआ, आकाशस्थित देव ने तुम्हें यों कहा- कल प्रातः मुनि दीपरत्नसागर कृत् " ( उपासकदशा)" आगमसूत्र - हिन्द- अनुवाद” Page 22
SR No.034674
Book TitleAgam 07 Upasakdasha Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages33
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 07, & agam_upasakdasha
File Size2 MB
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