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________________ आगम सूत्र ६, अंगसूत्र - ६, 'ज्ञाताधर्मकथा ' श्रुतस्कन्ध/वर्ग/अध्ययन / सूत्रांक चित्रित नहीं कर सकता । चित्र को देखकर हर्ष उत्पन्न होने के कारण अदीनशत्रु राजा ने दूत को बुलाकर कहायावत् दूत मिथिला जाने के लिए रवाना हो गया। सूत्र - ९२ उस काल और उस समय में पंचाल नामक जनपद में काम्पिल्यपुर नामक नगर था । वहाँ जितशत्रु नामक राजा था, वही पंचाल देश का अधिपति था । उस जितशत्रु राजा के अन्तःपुर में एक हजार रानियाँ थीं । मिथिला नगरी में चोक्खा नामक परिव्राजिका रहती थी। मिथिला नगरी में बहुत-से राजा, ईश्वर यावत् सार्थवाह आदि के सामने दानधर्म, शौचधर्म, और तीर्थस्नान का कथन करती, प्रज्ञापना करती, प्ररूपणा करती और उपदेश करती रही थी । एक बार किसी समय वह चोक्खा परिव्राजिका त्रिदण्ड, कुण्डिका यावत् धातु से रंगे वस्त्र लेकर परिव्राजिकाओं के मठ से बाहर नीकली। थोड़ी परिव्राजिकाओं से घिरी हुई मिथिला राजधानी के मध्य में होकर कुम्भ राजा का भवन था, जहाँ कन्याओं का अन्तःपुर था और जहाँ विदेह की उत्तम राजकन्या मल्ली थी, वहाँ आई। भूमि पर पानी छिड़का, उस पर डाभ बिछाया और उस पर आसन रखकर बैठी विदेहवर राजकन्या मल्ली के सामने दानधर्म, शौचधर्म, तीर्थस्नान का उपदेश देती हुई विचरने लगी- उपदेश देने लगी । तब विदेहवर राजकन्या मल्ली ने चोक्खा परिव्राजिका से पूछा- चोक्खा ! तुम्हारे धर्म का मूल क्या कहा गया है ?' तब चोक्खा परिव्राजिका ने उत्तर दिया- 'देवानुप्रिय ! मैं शौचमूलक धर्म का उपदेश करती हूँ । हमारे मत कोई भी वस्तु अशुचि होती है, उसे जल से और मिट्टी से शुद्ध किया जाता है यावत् इस धर्म का पालन करने से हम निर्विघ्न स्वर्ग जाते हैं । तत्पश्चात् विदेहराजवरकन्या मल्ली ने चोक्खा परिव्राजिका से कहा- ' चोक्खा ! जैसे कोई अमुक नामधारी पुरुष रुधिर से लिप्त वस्त्र को रुधिर से ही धोवे, तो हे चोक्खा ! उस रुधिरलिप्त और रुधिर से ही धोए जाने वाले वस्त्र की कुछ शुद्धि होती है ?' परिव्राजिका ने उत्तर दिया- नहीं, यह अर्थ समर्थ नहीं ।' मल्ली ने कहा-' इसी प्रकार चोक्खा ! तुम्हारे मत में प्राणातिपात से यावत् मिथ्यादर्शनशल्य से कोई शुद्धि नहीं है, जैसे रुधिर से लिप्त और रुधिर से ही धोये जाने वाले वस्त्र की कोई शुद्धि नहीं होती। तत्पश्चात् विदेहराजवरकन्या मल्ली के ऐसा कहने पर उस चोक्खा परिव्राजिका को शंका उत्पन्न हुई, कांक्षा हुई और विचिकित्सा हुई और वह भेद को प्राप्त हुई अर्थात् उसने मन में तर्क-वितर्क होने लगा। वह मल्ली को कुछ भी उत्तर देने में समर्थ नहीं हो सकी, अत एव मौन रह गई। तत्पश्चात् मल्ली की बहुत-सी दासियाँ चोक्खा परिव्राजिका की हीलना करने लगीं, मन से निन्दा करने लगीं, खिंसा करने लगीं, गर्हा कितनीक दासियाँ उसे क्रोधित करने लगीं, कोई कोई मुँह मटकाने लगीं, उपहास तर्जना ताड़ना करके उसे बाहर कर दिया । तत्पश्चात् विदेहराज की उत्तम कन्या मल्ली की दासियों द्वारा यावत् गर्हा की गई और अवहेलना की गई वह चोक्खा एकदम क्रुद्ध हो गई और क्रोध से मिसमिसाती हुई विदेहराजवरकन्या मल्ली के प्रति द्वेष को प्राप्त हुई । उसने अपना उपकरण उठाया, कन्याओंके अन्तःपुरसे नीकल गई। वहाँ से नीकलकर परिव्राजिकाओंके साथ जहाँ पंल जनपद था, जहाँ कम्पिल्यपुर नगर था वहाँ आई और बहुत से राजाओं एवं ईश्वरों- राजकुमारों-ऐश्वर्यशाली जनों आदि के सामने यावत् अपने धर्म की दानधर्म, शौचधर्म, तीर्थाभिषेक आदि की प्ररूपणा करने लगी । तत्पश्चात् जितशत्रु राजा एक बार किसी समय अपने अन्तःपुर और परिवार से परिवृत्त होकर सिंहासन पर बैठा था । परिव्राजिकाओं से परिवृत्ता वह चोक्खा जहाँ जितशत्रु राजा का भवन था और जहाँ जितशत्रु राजा था, वहाँ आई । आकर भीतर प्रवेश किया । जय-विजय के शब्दों से जितशत्रु का अभिनन्दन किया । उस समय जितशत्रु राजा ने चोक्खा परिव्राजिका को आते देखकर सिंहासन से उठा । चोक्खा परिव्राजिका का सत्कार किया सम्मान किया। आसन के लिए निमंत्रण किया। तत्पश्चात् वह चोक्खा परिव्राजिका जल छिड़ककर यावत् डाभ पर बिछाए अपने आसन पर बैठी। फिर उसने जितशत्रु राजा, यावत् अन्तःपुर के कुशल- समाचार पूछे । उसके बाद चोक्खा ने जितशत्रु राजा को दानधर्म आदि का उपदेश दिया। तत्पश्चात् वह जितशत्रु राजा अपनी रानियों के सौन्दर्य आदि में विस्मययुक्त था, अतः उसने चोक्खा परिव्राजिका से पूछा-'हे देवानुप्रिय ! तुम बहुत-से मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (ज्ञाताधर्मकथा )" आगमसूत्र - हिन्द- अनुवाद" Page 79
SR No.034673
Book TitleAgam 06 Gnatadharm Katha Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 06, & agam_gyatadharmkatha
File Size4 MB
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