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आगम सूत्र ६, अंगसूत्र-६, 'ज्ञाताधर्मकथा'
श्रुतस्कन्ध/वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक योग्य विपुल प्रीतिदान दिया, दे करके बिदा कर दिया । ततपश्चात् किसी समय मल्लदिन्न कुमार स्नान करके, वस्त्राभूषण धारण करके अन्तःपुर एवं परिवार सहित, धायमाता को साथ लेकर, जहाँ चित्रसभा थी, वहाँ आया । आकर चित्रसभा के भीतर प्रवेश किया । हाव, भाव, विलास और बिब्बोक से युक्त रूपों को देखता-देखता जहाँ विदेह की श्रेष्ठ राजकन्या मल्ली का उसी के अनुरूप चित्र बना था, उसी ओर जाने लगा । उस समय मल्लदिन्न कुमार ने विदेह की उत्तम राजकुमारी मल्ली का, उसके अनुरूप बना हुआ चित्र देखा । उसे विचार उत्पन्न हुआ'अरे, यह तो विदेहवह राजकन्या मल्ली है !' यह विचार आते ही वह लज्जित हो गया, वीडित हो गया और व्यर्दित हो गया, अत एव वह पीछे लौट गया।
तत्पश्चात् रटते हुए मल्लमदिन्न को देखकर धाय माता ने कहा- हे पुत्र ! तुम लज्जित, व्रीडित और व्यर्दित होकर धीरे-धीरे हट क्यों रहे हो ?' तब मल्लदिन्न ने धाय माता से इस प्रकार कहा-'माता ! मेरी गुरु और देवता के समान ज्येष्ठ भगिनी के, जिससे मुझे लज्जित होना चाहिए, सामने, चित्रकारों की बनाई इस सभा में प्रवेश करना क्या योग्य है ?' धाय माता ने मल्लदिन्न कुमार से इस प्रकार कहा-'हे पुत्र ! निश्चय ही यह साक्षात् विदेह की उत्तम कुमारी मल्ली नहीं है किन्तु चित्रकार ने उसके अनुरूप चित्रित की है तब मल्लदिन्न कुमार धाय माता के इस कथन को सूनकर और हृदय में धारण करके एकदम क्रुद्ध हो उठा और बोला- कौन है वह चित्रकार मौत की ईच्छा करने वाला, यावत् जिसने गुरु और देवता के समान मेरी ज्येष्ठ भगिनी का यावत् यह चित्र बनाया है ?' इस प्रकार कहकर उसने चित्रकार का वध करने की आज्ञा दे दी।
तत्पश्चात् चित्रकारों की वह श्रेणी इस कथा-वृत्तान्त को सूनकर और समझकर जहाँ मल्लदिन्न कुमार था, वहाँ आई । आकर दोनों हाथ जोड़कर यावत् मस्तक पर अंजलि करके कुमार को बधाया । बधाकर इस प्रकार कहा-'स्वामिन् ! निश्चय ही उस चित्रकार को इस प्रकार की चित्रकारलब्धि लब्ध हई, प्राप्त हुई और अभ्यास में आई है कि वह किसी द्विपद आदि के एक अवयव को देखता है, यावत् वह उसका वैसा ही पूरा रूप बना देता है। अत एव हे स्वामिन् ! आप उस चित्रकार के वध की आज्ञा मत दीजिए । हे स्वामिन् ! आप उस चित्रकार को कोई दूसरा योग्य दण्ड दे दीजिए । तत्पश्चात् मल्लदिन्न ने उस चित्रकार के संडासक छेदन करवा दिया और उसे देशनिर्वासन की आज्ञा दे दी । तब मल्लदिन्न के द्वारा देशनिर्वासन की आज्ञा पाया हुआ वह चित्रकार अपने भांड, पात्र
और उपकरण आदि लेकर मिथिला नगरी से नीकला । विदेह जनपद के मध्य में होकर जहाँ हस्तिनापुर नगर था, जहाँ कुरु नामक जनपद था और जहाँ अदीनशत्रु नामक राजा था, वहाँ आया । उसने अपना भांड आदि रखा । रखकर चित्रफलक ठीक किया । विदेह की श्रेष्ठ राजकुमारी मल्ली के पैर के अंगूठे के आधार पर उसका समग्र रूप चित्रित किया । चित्रफलक अपनी काँख में दबा लिया। फिर महान् अर्थ वाला यावत् राजा के योग्य बहुमूल्य उपहार ग्रहण किया । ग्रहण करके हस्तिनापुर नगर के मध्य में होकर अदीनशत्रु राजा के पास आया । दोनों हाथ जोड़कर उसे बधाया और उपहार उसके सामने रख दिया । फिर चित्रकार ने कहा-'स्वामिन् ! मिथिला राजधानी में कुम्भ राजा के पुत्र और प्रभावती देवी के आत्मज मल्लदिन्न कुमार ने मुझे देश-नीकाले की आज्ञा दी, इस कारण मैं सीधा यहाँ आया हूँ । हे स्वामिन् ! आपकी बाहुओं की छाया से परिगृहीत होकर यावत् मैं यहाँ बसना चाहता हूँ।'
तत्पश्चात् अदीनशत्रु राजा ने चित्रकारपुत्र से इस प्रकार कहा-'देवानुप्रिय ! मल्लदिन्न कुमार ने तुम्हें किस कारण देश-निर्वासन की आज्ञा दी ?' चित्रकारपुत्र ने अदीनशत्रु राजा से कहा-'हे स्वामिन् ! मल्लदिन्न कुमार ने एक बार किसी समय चित्रकारों की श्रेणी को बुलाकर इस प्रकार कहा था-'हे देवानुप्रियो ! तुम मेरी चित्रसभा को चित्रित करो;' यावत् कुमार ने मेरा संडासक कटवा कर देश-निर्वासन की आज्ञा दे दी।
तत्पश्चात् अदीनशत्रु राजा ने उस चित्रकार से कहा-देवानुप्रिय ! तुमने मल्ली कुमारी का उसके अनुरूप चित्र कैसा बनाया था ? तब चित्रकार ने अपनी काँख में से चित्रफलक नीकालकर अदीनशत्रु राजा के पास रख दिया और कहा-'हे स्वामिन् ! विदेहराज की श्रेष्ठ कन्या मल्ली का उसी के अनुरूप यह चित्र मैंने कुछ आकार, भाव और प्रतिबिम्ब के रूप में चित्रित किया है । विदेहराज की श्रेष्ठ कुमारी मल्ली का हूबहू रूप तो कोई देव भी
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (ज्ञाताधर्मकथा)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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