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________________ आगम सूत्र ६, अंगसूत्र-६, 'ज्ञाताधर्मकथा' श्रुतस्कन्ध/वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक हैं। चौथी परिपाटी में भी ऐसा ही करते हैं किन्तु उसमें आयंबिल से पारणा की जाती है। तत्पश्चात् महाबल आदि सातों अनगार क्षुल्लक सिंहनिष्क्रिडित तप को दो वर्ष और अट्ठाईस अहोरात्र में, सूत्र के कथनानुसार यावत् तीर्थंकर की आज्ञा से आराधन करके, जहाँ स्थविर भगवान थे, वहाँ आए । आकर उन्होंने वन्दना की, नमस्कार किया । वन्दना-नमस्कार करके इस प्रकार बोले-भगवन् ! हम महत् सिंहनिष्क्रिडित नामक तपःकर्म करना चाहते हैं आदि । यह तप क्षुल्लक सिंहनिष्क्रिडित तप के समान जानना । विशेषता यह कि इसमें सोलह उपवास तक पहुँचकर वापिस लौटा जाता है | एक परिपाटी एक वर्ष, छह मास और अठारह अहोरात्र में समाप्त होती है । सम्पूर्ण महासिंहनिष्क्रिडित तप छह वर्ष, दो मास और बारह अहोरात्र में पूर्ण होता है। तत्पश्चात वे महाबल प्रभति सातों मनि महासिंहनिष्क्रिडित तपःकर्म का सत्र के अनसार यावत आराधन करके जहाँ स्थविर भगवान थे वहाँ आते हैं । स्थविर भगवान को वन्दना और नमस्कार करते हैं । बहत से उपवास, तेला आदि करते हुए विचरते हैं। तत्पश्चात् वे महाबल प्रभृति अनगार उस प्रधान तप के कारण शुष्क रूक्ष हो गए, स्कन्दक मुनि समानजानना । विशेषता यह कि इन सात मुनियों ने स्थविर भगवान से आज्ञा ली । आज्ञा लेकर चारु पर्वत पर आरूढ़ होकर यावत दो मास की संलेखना करके-१२० भक्त का अनशन करके, चौरासी लाख वर्षों तक संयम का पालन करके, चौरासी लाख पूर्व का कुल आयुष्य भोगकर जयंत नामक तीसरे अनुत्तर विमान में देव-पर्याय से उत्पन्न हुए सूत्र-८१ उस जयन्त विमान में कितनेक देवों की बत्तीस सागरोपम की स्थिति कही गई है । उनमें से महाबल को छोडकर दसरे छह देवों की कछ कम बत्तीस सागरोपम की स्थिति और महाबल देव की पर बत्तीस सागरोपम की स्थिति हुई । तत्पश्चात् महाबल देव के सिवाय छहों देव जयन्त देवलोक से, देव सम्बन्धी आयु का क्षय होने से, स्थिति का क्षय होने से और भव का क्षय होने से, अन्तर रहित, शरीर का त्याग करके इसी जम्बूद्वीप में, भरत वर्ष में विशुद्ध माता-पिता के वंश वाले राजकुलों में, अलग-अलग कुमार के रूप में उत्पन्न हुए । प्रतिबुद्धि इक्ष्वाकु देश का राजा हुआ । चंद्रच्छाय अंगदेश का राजा हुआ, शंख कासीदेव का राजा हुआ, रुक्मि कुणालदेश का राजा हुआ, अदीनशत्रु कुरुदेश का राजा हुआ, जितशत्रु पंचाल देश का राजा हुआ। वह महाबल देव तीन ज्ञानों से युक्त होकर, जब समस्त ग्रह उच्च स्थान पर रहे थे, सभी दिशाएं सौम्य, वितिमिर और विशुद्ध थीं, शकुन विजयकारक थे, वायु दक्षिण की ओर चल रहा था और वायु अनुकूल था, पृथ्वी का धान्य निष्पन्न हो गया था, लोग अत्यन्त हर्षयुक्त होकर क्रीड़ा कर रहे थे, ऐसे समय में अर्द्ध रात्रि के अवसर पर अश्विनी नक्षत्र का चन्द्रमा के साथ योग होने पर, हेमन्त ऋतु के चौथे मास, आठवें पक्ष, फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में, चतुर्थी तिथि के पश्चात् भाग में बत्तीस सागरोपम की स्थिति वाले जयन्त नामक विमान से, अनन्तर शरीर त्याग कर, इसी जम्बूद्वीप में भरतक्षेत्र में, मिथिला राजधानी में, कुंभ राजा की प्रभावती देवी की कूख में देवगति सम्बन्धी आहार का त्याग करके, वैक्रिय शरीर का त्याग करके एवं देवभव का त्याग करके गर्भ के रूप में उत्पन्न हुआ । उस रात्रि में प्रभावती देवी वास भवन में, शय्या पर यावत् अर्द्ध रात्रि के समय जब न गहरी सोई थी न जाग रही थी, तब प्रधान, कल्याणरूप, उपद्रवरहित, धन्य, मांगलिक और सश्रीक चौदह महास्वप्न देख कर जागी । वे चौदह स्वप्न इस प्रकार है-गज, वृषभ, सिंह, अभिषेक, पुष्पमाला, चन्द्रमा, सूर्य, ध्वजा, कुम्भ, पद्मयुक्त सरोवर, सागर, विमान, रत्नों की राशि और धूमरहित अग्नि । पश्चात् प्रभावती रानी जहाँ राजा कुम्भ थे, वहाँ आई। पति से स्वप्नों का वृत्तान्त कहा । कुम्भ राजा ने स्वप्नपाठकों को बुलाकर स्वप्नों का फल पूछा । यावत् प्रभावती देवी हर्षित एवं संतुष्ट होकर विचरने लगी। तत्पश्चात् प्रभावती देवी को तीन मास बराबर पूर्ण हुए तो इस प्रकार का दोहद उत्पन्न हुआ-वे माताएं धन्य हैं जो जल और थल मैं उत्पन्न हुए देदीप्यमान, अनेक पंचरंगे पुष्पों से आच्छादित और पुनः पुनः आच्छादित की हुई शय्या पर सुखपूर्वक बैठी हुई और सुख से सोई हुई विचरती हैं तथा पाटला, मालती, चम्पा, अशोक, पुंनाग के मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (ज्ञाताधर्मकथा)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 69
SR No.034673
Book TitleAgam 06 Gnatadharm Katha Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 06, & agam_gyatadharmkatha
File Size4 MB
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