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________________ आगम सूत्र ६, अंगसूत्र-६, 'ज्ञाताधर्मकथा' श्रुतस्कन्ध/वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक अध्ययन-८ - मल्ली सूत्र - ७६ 'भगवन् ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने सातवे ज्ञात-अध्ययन का यह अर्थ कहा है, तो आठवे अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ?' 'हे जम्बू ! उस काल और उस समय में, इसी जम्बूद्वीप में महाविदेह नामक वर्ष में, मेरु पर्वत से पश्चिम में, निषध नामक वर्षधर पर्वत से उत्तर में, शीतोदा महानदी से दक्षिण में, सुखावह नामक वक्षार पर्वत से पश्चिम में और पश्चिम लवणसमुद्र से पूर्व में इस स्थान पर, सलिलावती नामक विजय है । उसमें वीतशोका नामक राजधानी है । वह नौ योजन चौड़ी, यावत् साक्षात देवलोक के समान थी । उस वीतशोका राजधानी के ईशान दिशा के भाग में इन्द्रकुम्भ उद्यान था । बल नामक राजा था । बल राजा के अन्तःपुर में धारिणी प्रभृति एक हजार देवियाँ थीं। वह धारिणी देवी किसी समय स्वप्न में सिंह को देखकर जागृत हुई । यावत् यथासमय महाबल नामक पुत्र का जन्म हुआ । वह बालक क्रमशः बाल्यावस्था को पार कर भोग भोगने में समर्थ हो गया । तब माता-पिता ने समान रूप एवं वय वाली कमलश्री आदि पाँच सौ श्रेष्ठ राजकुमारियों के साथ, एक ही दिन में महाबल का पाणिग्रहण कराया । पाँच सौ प्रासाद आदि पाँच-पाँच सौ का दहेज दिया । यावत् महाबल कुमार मनुष्य सम्बन्धी कामभोग भोगता हआ रहने लगा । उस काल और उस समय में धर्मघोष नामक स्थविर पाँच सौ शिष्यों से परिवृत्त होकर अनुक्रम से विचरते हुए, एक ग्राम से दूसरे ग्राम गमन करते हुए, सुखे-सुखे विहार करते हुए, इन्द्रकुम्भ उद्यान पधारे और संयम एवं तप से आत्मा को भावित करते हुए वहाँ ठहरे । स्थविर मुनिराज को वन्दना करने के लिए जनसमूह नीकला । बल राजा भी नीकला । धर्म सूनकर राजा को वैराग्य उत्पन्न हुआ । विशेष यह कि उनसे महाबल कुमार को राज्य पर प्रतिष्ठित किया । प्रतिष्ठित करके स्वयं ही बल राजा ने आकर स्थविर के निकट प्रव्रज्या अंगीकार की। वह ग्यारह अंगो के वेत्ता हए । बहत वर्षों तक संयम पालकर चारुपर्वत गए । एक मास का निर्जल अनशन करके केवलज्ञान प्राप्त करके यावत् सिद्ध हुए। तत्पश्चात् अन्यदा कदाचित् कमलश्री स्वप्न में सिंह को देखकर जागृत हुआ । बलभद्र कुमार का जन्म हुआ। वह युवराज भी हो गया । उस महाबल राजा के छह राजा बालमित्र थे । अचल, धरण, पूरण, वसु, वैश्रमण, अभिचन्द्र । वे साथ ही जन्मे थे, साथ ही वृद्धि को प्राप्त हुए थे, साथ ही धूल में खेले थे, साथ ही विवाहित हुए थे, एक दूसरे पर अनगार रखते थे, अनुसरण करते थे, अभिप्राय का आदर करते थे, हृदय की अभिलाषा के अनुसार कार्य करते थे, एक-दूसरे के राज्यों में काम-काज करते हुए रह रहे थे । एक बार किसी समय वे सब राजा इकट्ठे हुए, एक जगह मिले, एक स्थान पर आसीन हुए । तब उनमें इस प्रकार का वार्तालाप हुआ-'देवानुप्रिय ! जब कभी हमारे लिए सुख का, दुःख का, दीक्षा का अथवा विदेशगमन का प्रसंग उपस्थित हो तो हमें सभी अवसरों पर साथ ही रहना चाहिए । साथ ही आत्मा का निस्तार करना-आत्मा को संसार सागर से तारना चाहिए, ऐसा निर्णय करके परस्पर में इस अर्थ को अंगीकार किया था । वे सुखपूर्वक रह रहे थे। उस काल और उस समय में धर्मघोष नामक स्थविर जहाँ इन्द्रकुम्भ उद्यान था, वहाँ पधारे । परीषद् वंदना करने के लिए नीकली । महाबल राजा भी नीकला । स्थविर महाराज ने धर्म कहा-महाबल राजा को धर्म श्रवण करके वैराग्य उत्पन्न हुआ । विशेष यह कि राजा ने कहा-'हे देवानुप्रिय ! मैं अपने छहों बालमित्रों से पूछ लेता हूँ और बलभद्र कुमार को राज्य पर स्थापित कर देता हूँ, फिर दीक्षा अंगीकार करूँगा ।' यावत् इस प्रकार कहकर उसने छहों बालमित्रों से पूछा । तब वे छहों बालमित्र महाबल के राजा से कहने लगे-देवानुप्रिय ! यदि तुम प्रव्रजित होते हो तो हमारे लिए अन्य कौन-सा आधार है ? यावत् अथवा आलंबन है, हम भी दीक्षित होते हैं । तत्पश्चात् महाबल राजा ने उन छहों बालमित्रों से कहा-देवानप्रियो ! यदि तम मेरे साथ प्रव्रजित होते हो तो तम जाओ और अपने-अपने ज्येष्ठ पुत्रों को अपने-अपने राज्य पर प्रतिष्ठित करो और फिर हजार पुरुषों द्वारा वहन करने योग्य शिबिकाओं पर आरूढ़ होकर यहाँ प्रकट होओ।' तब छहों बालमित्र गये और अपने-अपने ज्येष्ठ पुत्रों को मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (ज्ञाताधर्मकथा)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 67
SR No.034673
Book TitleAgam 06 Gnatadharm Katha Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 06, & agam_gyatadharmkatha
File Size4 MB
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