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आगम सूत्र ६, अंगसूत्र-६, 'ज्ञाताधर्मकथा'
श्रुतस्कन्ध/वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक
वर्ग-६ सूत्र-२३४
छठा वर्ग भी पाँचवे वर्ग के समान है। विशेषता यह कि सब कुमारियाँ महाकाल इन्द्र आदि उत्तर दिशा के आठ इन्द्रों की बत्तीस अग्रमहिषियाँ हुई । पूर्वभव में सब साकेतनगर में उत्पन्न हुई । उत्तरकुरु उद्यान था । इन कुमारियों के नाम के समान ही उनके माता-पिता के नाम थे । शेष सब पूर्ववत् ।
वर्ग-६ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
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वर्ग-७
सूत्र - २३५
सातवें वर्ग का उत्क्षेप कहना चाहिए-हे जम्बू ! भगवान महावीर ने सप्तम वर्ग के चार अध्ययन प्रज्ञप्त किए हैं । सूर्यप्रभा, आतपा, अर्चिमाली और प्रभंकरा । प्रथम अध्ययन का उपोद्घात कहना चाहिए । जम्बू ! उस काल और उस समय राजगृह में भगवान पधारे यावत् परीषद् उनकी उपासना करने लगी।
उस काल और उस समय सूर्य प्रभादेवी सूर्य विमान में सूर्यप्रभ सिंहासन पर आसीन थी। शेष कालीदेवी के समान । विशेष इतना कि-पूर्वभव में अक्खुरी नगरी में सूर्याभ गाथापति की सूर्यश्री भार्या थी । सूर्यप्रभा पुत्री थी। अन्त में मरण के पश्चात् वह सूर्य नामक ज्योतिष्क-इन्द्र की अग्रमहिषी हुई । उसकी स्थिति वहाँ पाँच सौ वर्ष अधिक आधे पल्योपम की है। शेष कालीदेवी के समान । इसी प्रकार शेष सब-तीनों देवियों का वृत्तान्त जानना । वे भी अक्खुरी नगरी में उत्पन्न हुई थी।
वर्ग-७ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
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वर्ग
सूत्र - २३६
___ आठवें वर्ग का उपोद्घात कह लेना चाहिए, जम्बू ! श्रमण भगवान ने आठवे वर्ग के चार अध्ययन प्ररूपित किए हैं । चन्द्रप्रभा, दोसिणाभा, अर्चिमाली, प्रभंकरा । प्रथम अध्ययन का उपोद्घात पूर्ववत् कह लेना चाहिए । जम्बू ! उस काल और उस समय में भगवान राजगृह नगर में पधारे यावत् परीषद् उनकी पर्युपास्ति
उस काल और उस समय में चन्द्रप्रभा देवी, चन्द्रप्रभ विमान में, चन्द्रप्रभ सिंहासन पर आसीन थी । शेष काली देवी के समान । विशेषता यह-पूर्वभव में मथुरा नगरी की निवासिनी थी । चन्द्रावतंसक उद्यान था । चन्द्रप्रभ गाथापति था । चन्द्रश्री उसकी पत्नी थी । चन्द्रप्रभा पुत्री थी । वह चन्द्र नामक ज्योतिष्क इन्द्र की अग्रमहिषी हई । उसकी आयु पचास हजार वर्ष अधिक अर्ध पल्योपम की है। शेष सब वर्णन काली देवी के समान । इसी तरह शेष तिन देवी भी मथुरा में उत्पन्न हुई यावत् माता-पिता के नाम भी पुत्री के समान जानना।
वर्ग-८ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (ज्ञाताधर्मकथा)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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