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आगम सूत्र ६, अंगसूत्र-६, 'ज्ञाताधर्मकथा'
श्रुतस्कन्ध/वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक
वर्ग-४
सूत्र-२२७
प्रारम्भ में चौथे वर्ग का उपोद्घात कह लेना चाहिए, जम्बू ! यावत् सिद्धिप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने धर्मकथा के चौथे वर्ग के चौपन अध्ययन कहे हैं । प्रथम अध्ययन यावत् चौपनवा अध्ययन । यहाँ प्रथम अध्ययन का उपोद्घात कह लेना । हे जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नगर में भगवान पधारे । नगर में परीषद् नीकली यावत् भगवान की पर्युपासना करने लगी।
उस काल और उस समय में रूपा देवी, रूपानन्दा राजधानी में, रूपकावतंसक भवन में, रूपक नामक सिंहासन पर आसीन थी । इत्यादि वृत्तान्त काली देवी के समान समझना, विशेषता इतनी है-पूर्वभव में चम्पा नगरी थी, पूर्णभद्र चैत्य था, वहाँ रूपक नामक गाथापति था । रूपकश्री उसकी भार्या थी । रूपा उसकी पुत्री थी। शेष पूर्ववत् । विशेषता यह कि रूपा भूतानन्द नामक इन्द्र की अग्रमहिषी के रूप में जन्मी । उसकी स्थिति कुछ कम एक पल्योपम की है । चौथे वर्ग के प्रथम अध्ययन का निक्षेप समझ लेना।
इसी प्रकार सुरूपा भी, रूपांशा भी, रूपवती भी, रूपकान्ता भी और रूपप्रभा के विषय में भी समझ लेना चाहिए, इसी प्रकार उत्तर दिशा के इन्द्रों यावत् महाघोष की छह-छह पटरानियों के छह-छह अध्ययन कह लेना चाहिए, सब मिलकर चौपन अध्ययन हो जाते हैं । यहाँ चौथे वर्ग का निक्षेप-पूर्ववत् कह लेना।
वर्ग-४ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
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वर्ग-५
सूत्र-२२८-२३२
पंचम वर्ग का उपोद्घात पूर्ववत् कहना चाहिए । जम्बू ! पाँचवे वर्ग में बत्तीस अध्ययन हैं । यथा-कमला, कमलप्रभा, उत्पला, सुदर्शना, रूपवती, बहुरूपा, सुरूपा, सुभगा । पूर्णा, बहुपुत्रिका, उत्तमा, भारिका, पद्मा, वसुमती, कनका, कनकप्रभा । अवतंसा, केतुमती, वज्रसेना, रतिप्रिया, रोहिणी, नवमिका, ह्री, पुष्पवती । भुजगा, भुजगवती, महाकच्छा, अपराजिता, सुघोषा, विमला, सुस्वरा, सरस्वती । सूत्र - २३३
अध्ययन-१ का उपोद्घात कहना चाहिए, जम्बू! उस काल उस समय राजगृहनगर था । भगवान महावीर वहाँ पधारे । यावत् परीषद् नीकलकर भगवान की पर्युपासना करने लगी । उस काल और उस समय कमला देवी कमला नामक राजधानी में, कमलावतंसक भवन में, कमल नामक सिंहासन पर आसीन थी। शेष काली देवी अनुसार ही जानना । विशेषता यह-पूर्वभव में कमला देवी नागपुर नगर में थी । सहस्राम्रवन चैत्य था । कमल गाथापति था । कमलश्री उसकी पत्नी थी । कमला पुत्री थी । कमला अरहंत पार्श्व के निकट दीक्षित हो गई। शेष पूर्ववत् यावत् वह काल नामक पिशाचेन्द्र की अग्रमहिषी के रूपमें जन्मी। उसकी आयु वहाँ अर्ध-पल्योपम की है।
इसी प्रकार शेष एकतीस अध्ययन दक्षिण दिशा के वाणव्यन्तर देवों के कह लेने चाहिए । कमलप्रभा आदि ३१ कन्याओं ने पूर्वभव में नागपुर में जन्म लिया था । वहाँ सहस्राम्रवन उद्यान था । सब-के माता-पिता के नाम कन्याओं के नाम के समान ही हैं। देवीभव में स्थिति सबको आधे-आधे पल्योपम की कहनी चाहिए ।
वर्ग-५ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (ज्ञाताधर्मकथा)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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