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आगम सूत्र ६, अंगसूत्र-६, 'ज्ञाताधर्मकथा'
श्रुतस्कन्ध/वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक
वर्ग-२
सूत्र - २२५
भगवन् ! यावत् मुक्तिप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने प्रथम वर्ग का यह अर्थ कहा है तो दूसरे वर्ग का क्या अर्थ कहा है ? जम्बू ! श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त भगवान महावीर ने दूसरे वर्ग के पाँच अध्ययन कहे हैं । शुंभा, निशुंभा, रंभा, निरंभा और मदना । भगवन् ! यदि श्रमण यावत् सिद्धिप्राप्त भगवान महावीर ने धर्मकथा के द्वीतिय वर्ग के पाँच अध्ययन प्रज्ञप्त किए हैं तो द्वीतिय वर्ग के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ प्रज्ञप्त किया है ? जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नगर था, गुणशील चैत्य था । भगवान का पदार्पण हुआ । परीषद् नीकली और भगवान की उपासना करने लगी । उस काल और उस समय में शुंभा नामक देवी बलिचंचा राजधानी में, शुंभावतंसक भवन में शुभ नामक सिंहासन पर आसीन थी, इत्यादि काली देवी के अध्ययन के अनुसार समग्र वृत्तान्त कहना चाहिए । वह नाट्यविधि प्रदर्शित करके वापिस लौट गई । गौतम स्वामी ने पूर्वभव की पृच्छा की। श्रावस्ती नगरी थी । कोष्ठक चैत्य था । जितशत्रु राजा था। शुभ गाथापति था । शुभश्री पत्नी थी। शुभा पुत्री थी। शेष सर्व वृत्तान्त काली देवी के समान । विशेषता यह है-शुंभा देवी की साढ़े तीन पल्योपम की स्थिति है । उसका निक्षेप कह लेना चाहिए।
शेष चार अध्ययन पूर्वोक्त प्रकार के ही हैं । इसमें नगरी श्रावस्ती और उन-उन देवियों के समान उनके माता-पिता के नाम समझ लेने चाहिए।
वर्ग-२ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
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वर्ग-३
सूत्र - २२६
तीसरे वर्ग का उपोद्घात समझ लेना । हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर यावत् मुक्तिप्राप्त ने तीसरे वर्ग के चौपन अध्याय कहे हैं । प्रथम अध्ययन यावत् चौपनवाँ अध्ययन । भगवन् ! यदि यावत् सिद्धिप्राप्त भगवान महावीर ने धर्मकथा के तीसरे वर्ग के चौपन अध्ययन कहे हैं तो भगवन् ! प्रथम अध्ययन का श्रमण यावत् सिद्धिप्राप्त भगवान ने क्या अर्थ कहा है ? हे जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नगर था । गुणशील चैत्य था । भगवान पधारे | परीषद् नीकली और भगवान की उपासना करने लगी । उस काल और उस समय इला देवी धारणी नामक राजधानी में इलावतंसक भवन में, इला नामक सिंहासन पर आसीन थी। काली देवी के समान यावत् नाट्यविधि दिखलाकर लौट गई।
पूर्वभव पूछा । वाराणसी नगरी थी । उसमें काममहावन चैत्य था । इल गाथापति था । इलश्री पत्नी थी। इला पुत्री थी । शेष वृत्तान्त काली देवी के समान । विशेष यह कि इला आर्या शरीर त्याग कर धरणेन्द्र की अग्रमहिषी के रूप में उत्पन्न हुई । उसकी आयु अर्द्धपल्योपम से कुछ अधिक है । शेष वृत्तान्त पूर्ववत् ।
इसी क्रम से सतेरा, सौदामिनी, इन्द्रा, घना और विद्युता, इन पाँच देवियों के पाँच अध्ययन समझ लेने चाहिए । ये सब धरणेन्द्र की अग्रमहिषियाँ हैं । इसी प्रकार छह अध्ययन, बिना किसी विशेषता के वेणुदेव के भी कह लेने चाहिए । इसी प्रकार शेष पटरानियों के भी यह ही छह-छह अध्ययन कह लेने चाहिए । इस प्रकार दक्षिण दिशा के इन्द्रों के चौपन अध्ययन होते हैं । वे सब वाराणसी नगरी के महाकामवन नामक चैत्य में कहने चाहिए । यहाँ तीसरे वर्ग का निक्षेप भी कह लेना चाहिए।
वर्ग-३ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (ज्ञाताधर्मकथा)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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