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________________ आगम सूत्र ६, अंगसूत्र-६, 'ज्ञाताधर्मकथा' श्रुतस्कन्ध/वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक वर्ग-१ - अध्ययन-२'राजी' सूत्र - २२१ भगवन् ! यदि यावत् सिद्धि को प्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने धर्मकथा के प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ कहा है तो यावत् सिद्धिप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने दूसरे अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ?' हे जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नगर था तथा गुणशील नामक चैत्य था । स्वामी पधारे । वन्दन करने के लिए परीषद् नीकली यावत् भगवान की उपासना करने लगी । उस काल और उस समय में राजी नामक देवी चमरचंचा राजधानी से काली देवी के समान भगवान की सेवा में आई और नाट्यविधि दिखला कर चली गई । उस समय 'हे भगवन् !' इस प्रकार कहकर गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन-नमस्कार करके राजी देवी के पूर्वभव की पृच्छा की। हे गौतम ! उस काल और उस समय में आमलकल्पा नगरी थी । आम्रशालवन नामक उद्यान था । जितशत्रु राजा था । राजी नामक गाथापति था । उसकी पत्नी का नाम राजश्री था । राजी उसकी पुत्री थी। किसी समय पार्श्व तीर्थंकर पधारे । काली की भाँति राजी दारिका भी भगवान को वन्दना करने के लिए नीकली । वह भी काली की तरह दीक्षित होकर शरीरबकुश हो गई । शेष समस्त वृत्तान्त काली के समान ही समझना, यावत् वह महाविदेह क्षेत्र में सिद्धि प्राप्त करेगी । इस प्रकार हे जम्बू ! द्वीतिय अध्ययन का निक्षेप जानना । वर्ग-१ - अध्ययन-३ 'रजनी' सूत्र - २२२ तीसरे अध्ययन का उत्क्षेप इस प्रकार है-'भगवन् ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने धर्मकथा के प्रथम वर्ग के द्वीतिय अध्ययन का यह (पूर्वोक्त) अर्थ कहा है तो, भगवन् ! श्रमण भगवान महावीर ने तीसरे अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? जम्बू ! राजगृह नगर था, गुणशील चैत्य था इत्यादि राजी के समान रजनी के विषय में भी नाट्यविधि दिखलाने आदि कहना चाहिए । विशेषता यह है-आमलकल्पा नगरी में रजनी नामक गाथापति था । उसकी पत्नी का नाम रजनीश्री था। उसकी पुत्री का भी नाम रजनी था । शेष पूर्ववत्, यावत् वह महाविदेह क्षेत्र से मुक्ति प्राप्त करेगी। वर्ग-१ - अध्ययन-४ 'विद्युत्' सूत्र - २२३ इसी प्रकार विद्युत देवी का कथानक समझना चाहिए । विशेष यह कि आमलकल्पा नगरी थी । उसमें विद्युत नामक गाथापति निवास करता था । उसकी पत्नी विद्युत्श्री थी । विद्युत् नामक उसकी पुत्री थी। शेष पूर्ववत् । वर्ग-१ - अध्ययन-५ 'मेघा' सूत्र - २२४ मेघा देवी का कथानक भी ऐसा ही जान लेना । विशेषता यह है-आमलकल्पा नगरी थी। मेघ गाथापति था । मेघश्री भार्या थी । पुत्री मेघा थी । शेष पूर्ववत् । वर्ग-१ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (ज्ञाताधर्मकथा)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 157
SR No.034673
Book TitleAgam 06 Gnatadharm Katha Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 06, & agam_gyatadharmkatha
File Size4 MB
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