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आगम सूत्र ६, अंगसूत्र-६, 'ज्ञाताधर्मकथा'
श्रुतस्कन्ध/वर्ग/अध्ययन/सूत्रांक
वग
सूत्र - २३७
__ नौंवे वर्ग का उपोद्घात । हे जम्बू ! यावत् नौवे वर्ग के आठ अध्ययन कहे हैं, पद्मा, शिवा, सती, अंबूज, रोहिणी, नवमिका, अचला और अप्सरा । प्रथम अध्ययन का उत्क्षेप कह लेना चाहिए । जम्बू ! उस काल और उस समय स्वामी-भगवान महावीर राजगृह में पधारे । यावत् जनसमूह उनकी पर्युपासना करने लगा । उस काल और उस समय पद्मावती देवी सौधर्म कल्प में, पद्मावतंसक विमान में, सुधर्मा सभा में, पद्म नामक सिंहासन पर आसीन थी। शेष काली समान जानना।
काली देवी के गम के अनुसार आठों अध्ययन इसी प्रकार समझ लेने चाहिए । विशेषता इस प्रकार हैपूर्वभव में दो जनी श्रावस्ती में, दो जनी हस्तिनापुर में, दो जनी काम्पिल्यपुर में और दो जनी साकेतनगर में उत्पन्न हुई थीं । सबके पिता का नाम पद्म और माता का नाम विजया था । सभी पार्श्व अरहंत के निकट दीक्षित हुई थी। सभी शक्रेन्द्र की अग्रमहिषियाँ हुई । उनकी स्थिति सात पल्योपम की है । सभी यावत् महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर यावत् समस्त दुःखों का अन्त करेंगी-मुक्ति प्राप्त करेंगी।
वर्ग-९ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
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वर्ग-१० सूत्र - २३८, २३९
दसवें वर्ग का उपोद्घात । जम्बू ! यावत् दसवें वर्ग के आठ अध्ययन प्ररूपित किए हैं । कृष्णा, कृष्णराजि, रामा, रामरक्षिता, वसु, वसुगुप्ता, वसुमित्र और वसुन्धरा । ये आठ ईशानेन्द्र की आठ अग्रमहिषियाँ हैं । सूत्र - २४०
प्रथम अध्ययन का उपोद्घात कहना चाहिए । जम्बू ! उस काल और उस समय में स्वामी राजगृह नगर में पधारे, यावत् परिषद् ने उपासना की । उस काल और उस समय कृष्णा देवी ईशान कल्प में कृष्णावतंसक विमान में सुधर्मा सभा में, कृष्ण सिंहासन पर आसीन थी । शेष काली देवी के समान | आठों अध्ययन काली-अध्ययन सदृश हैं । विशेष यह कि पूर्वभव में इन आठ में से दो जनी बनारस नगरी में, दो जनी राजगृह में, दो जनी श्रावस्ती में और दो जनी कौशाम्बी में उत्पन्न हुई थी। सबके पिताका नाम राम और माता का नाम धर्मा था । सभी पार्श्व तीर्थंकर के निकट दीक्षित हुई थी । वे पुष्पचूला नामक आर्या की शिष्या हुई । वर्तमान भव में ईशानेन्द्र की अग्रमहिषियाँ हैं । सबकी आयु नौ पल्योपम की कही गई है। सब महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होंगी
और सब दुःखों का अन्त करेंगी। यहाँ दसवें वर्ग का निक्षेप-कहना चाहिए। सूत्र-२४१
हे जम्बू ! धर्म की आदि करने वाले, तीर्थ के संस्थापक, स्वयं बोध प्राप्त करने वाले, पुरुषोत्तम यावत् सिद्धि को प्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने धर्मकथा नामक द्वीतिय श्रुतस्कन्ध का यह अर्थ कहा है । धर्मकथा नामक द्वीतिय श्रुतस्कन्ध दस वर्गों में समाप्त ।
श्रुतस्कन्ध-२ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
६ ज्ञाताधर्मकथा का मुनि दीपरत्नसागर कृत् अंगसूत्र-६ पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (ज्ञाताधर्मकथा)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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