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________________ आगम सूत्र ६, अंगसूत्र-६, 'ज्ञाताधर्मकथा' श्रुतस्कन्ध/वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक जाने के लिए छोटे-छोटे अनेक द्वार थे। जानकर लोग ही उसमें से नीकल सकते और उसमें प्रवेश कर सकते थे। उसके भीतर ही पानी था । उस पल्ली से बाहर आस-पास में पानी मिलना अत्यन्त दुर्लभ था । चुराये हुए माल को छीनने के लिए आई हुई सेना भी उस का कुछ नहीं बिगाड़ सकती थी । ऐसी थी वह चोरपल्ली। उस सिंहगुफा पल्ली में विजय नामक चोर सेनापति रहता था । वह अधार्मिक यावत् वह अधर्म की ध्वजा थी । बहुत नगरों में उसका यश फैला हुआ था । वह शूर था, दृढ़ प्रहार करने वाला, साहसी और शब्दवेधी था। वह उस सिंहगुफा में पाँच सौ चोरों का अधिपतित्व करता हुआ रहता था । वह चोरों का सेनापति विजय तस्कर दूसरे बहुतेरे चोरों के लिए, जारों राजा के अपकारियों, ऋणियों, गठकटों, सेंध लगाने वालों, खात खोदने वालों, बाल-घातकों, विश्वासघातियों, जुआरियों तथा खण्डरक्षकों के लिए और मनुष्यों के हाथ-पैर आदि अवयवों को छेदन-भेदन करने वाले अन्य लोगों के लिए कडंग के समान शरणभत था । वह चोर सेनापति राजगह नगर के अग्निकोण में स्थित जनपदप्रदेश को, ग्राम के घात द्वारा, नगरघात द्वारा, गायों का हरण करके, लोगों को कैद करके, पथिकों को मारकूट कर तथा सेंध लगा कर पुनः पुनः उत्पीड़ित करता हुआ तथा विध्वस्त करता हआ, लोगों को स्थानहीन एवं धनहीन बना रहा था। तत्पश्चात् वह चिलात दास-पेट राजगृह नगर में बहत-से अर्थाभिशंकी, चौराभिशंकी, दाराभिशंकी, धनिकों और जुआरियों द्वारा पराभव पाया हुआ-तिरस्कृत होकर राजगृह नगर से बाहर नीकला । जहाँ सिंहगुफा नामक चोरपल्ली थी, वहाँ पहुँचा । चोरसेनापति विजय के पास उसकी शरण में जाकर रहने लगा । तत्पश्चात् वह दासचेट चिलात विजय नामक चोरसेनापति के यहाँ प्रधान खड्गधारी या हो गया । अत एव जब भी वह विजय चोरसेनापति ग्राम का घात करने के लिए पथिकों को मारने-कूटने के लिए जाता था, उस समय दास-चेट चिलात बहुत-सी कूविय सेना को हत एवं मथित करके रोकता था-भगा देता था और फिर उस धन आदि को लेकर अपना कार्य करके सिंहगुफा चोरपल्ली में सकुशल वापिस आ जाता था । उस विजय चोरसेनापति ने चिलात तस्कर को बहुत-सी चौरविद्याएं, चोरमंत्र, चोरमायाएं और चोर-निकृतियाँ सिखला दी। विजय चोर किसी समय मृत्यु को प्राप्त हुआ-तब उन पाँच सौ चोरों ने बड़े ठाठ और सत्कार के समूह के साथ वजय चोरसेनापति का नीहरण किया-फिर बहत-से लौकिक मृतककृत्य किए । कुछ समय बीत जाने पर वे शोकरहित हो गए । उन पाँच सौ चोरों ने एक दूसरे को बुलाया । तब उन्होंने आपस में कहा-'देवानुप्रियो ! हमारा सेनापति विजय कालधर्म से संयुक्त हो गया है और विजय चोरसेनापति ने इस चिलात तस्कर को बहुत-सी चोरविद्याएं आदि सिखलाई हैं । अत एव देवानुप्रियो ! हमारे लिए यही श्रेयस्कर होगा कि चिलात तस्कर का सिंहगुफा चोरपल्ली के चोरसेनापति के रूप में अभिषेक किया जाए । इस प्रकार एक दूसरे की बात स्वीकार की। चिलात तस्कर को सिंहगुफा चोरपल्ली के चोरसेनापति के रूप में अभिषिक्त किया । तब वह चिलात चोरसेनापति हो गया तथा विजय के समान ही अधार्मिक, क्रूरकर्मा एवं पापाचारी होकर रहने लगा । वह चिलात चोरसेनापति चोरों का नायक यावत् कुडंग के समान चोरोंजारों आदि का आश्रयभूत हो गया । वह उस चोरपल्ली में पाँच सौ चोरों का अधिपति हो गया, इत्यादि । यावत् वह राजगृह नगर के दक्षिण-पूर्व के जनपद निवासी जनों को स्थानहीन और धनहीन बनाने लगा। सूत्र - २१० तत्पश्चात् चिलात चोरसेनापति ने एक बार किसी समय विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य तैयार करवा कर पाँच सौ चोरों को आमंत्रित किया । फिर स्नान तथा बलिकर्म करके भोजन-मंडप में उन पाँच सौ चोरों के साथ विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम का तथा सूरा प्रसन्ना नामक मदिराओं का आस्वादन, विस्वादन, वितरण एवं परिभोग करने लगा । भोजन कर चूकने के पश्चात् पाँच सौ चोरों का विपुल धूप, पुष्प, गंध, माला और अलंकार से सत्कार किया, सम्मान किया । उनसे इस प्रकार कहा-'देवानुप्रियो ! राजगृह नगर में धन्य नामक धनाढ्य सार्थवाह है । उसकी पुत्री, भद्रा की आत्मजा और पाँच पुत्रों के पश्चात् जन्मी हुई सुसुमा नाम की लड़की मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (ज्ञाताधर्मकथा)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 145
SR No.034673
Book TitleAgam 06 Gnatadharm Katha Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 06, & agam_gyatadharmkatha
File Size4 MB
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