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आगम सूत्र ६, अंगसूत्र-६, 'ज्ञाताधर्मकथा'
श्रुतस्कन्ध/वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक है। वह परिपूर्ण इन्द्रियों वाली यावत् सुन्दर रूप वाली है । तो देवानुप्रियो ! हम लोग चलें और धन्य सार्थवाह का घर लूंटे । उस लूट में मिलने वाला विपुल धन, कनक, यावत् शिला, मूंगा वगैरह तुम्हारा होगा, सुंसुमा लड़की मेरी होगी।' तब उन पाँच सौ चोरों ने चोरसेनापति चिलात की बात अंगीकार की।
तत्पश्चात् चिलात चोरसेनापति उन पाँच सौ चोरों के साथ आर्द्र चर्म पर बैठा । फिर दिन के अंतिम प्रहर में पाँच सौ चोरों के साथ कवच धारण करके तैयार हुआ । उसने आयुध और प्रहरण ग्रहण किए । कोमल गोमुखितफलक धारण किए । तलवारें म्यानों से बाहर नीकाल लीं । कन्धों पर तर्कश धारण किए । धनुष जीवायुक्त कर लिए । बाण बाहर नीकाल लिए । बर्छियाँ और भाले उछालने लगे । जंघाओं पर बाँधी हुई घंटिकाएं लटका दीं। शीघ्र बाजे बजने लगे । बड़े-बड़े उत्कृष्ट सिंहनाद और बोलों की कल-कल ध्वनि से ऐसा प्रतीत होने लगा जैसे महासमुद्र का खलखल शब्द हो रहा हो । इस प्रकार शोर करते हुए वे सिंहगुफा नामक चोरपल्ली से बाहर नीकले। राजगृह नगर आकर राजगृह नगर से कुछ दूर एक सघन वन में घूस गए । वहाँ घूसकर शेष रहे दिन को समाप्त करने लगे-तत्पश्चात् चोरसेनापति चिलात आधी रात के समय, जब सब जगह शान्ति और सूनसान हो गया था, पाँच सौ चोरों के साथ, रीछ आदि के बालों से सहित होने के कारण कोमल गोमुखित, छाती से बाँध कर यावत् जाँघों पर घूघरे लटका कर राजगृह नगर के पूर्व दिशा के दरवाजे पर पहुँचा । उसने जल की मशक ली । उसमें से जल को एक अंजलि लेकर आचमन किया, स्वच्छ हुआ, पवित्र हआ, फिर ताला खोलने की विद्या का आवाहन करके राजगृह नगर के किवाड़ों पर पानी छिड़का । किवाड़ उघाड़ लिए । तत्पश्चात् राजगृह के भीतर प्रवेश करके ऊंचे-ऊंचे शब्दों से आघोषणा करते-करते इस प्रकार बोला
देवानुप्रियो ! मैं चिलात नामक चोरसेनापति, पाँच सौ चौरों के साथ, सिंहगुफा नामक चोर-पल्ली से, धन्य सार्थवाह का घर लूटने के लिए यहाँ आया हूँ । जो नवीन माता का दूध पीना चाहता हो, वह नीकलकर मेरे सामने आवे ।' इस प्रकार कहकर वह धन्य सार्थवाह के घर आया । आकर उसने धन्य सार्थवाह का घर उघाड़ा। धन्य सार्थवाह ने देखा कि पाँच सै चोरों के साथ चिलात चोरसेनापति के द्वारा घर लूटा जा रहा है । यह देखकर वह भयभीत हो गया, घबरा गया और अपने पाँचों पुत्रों के साथ एकान्त में चला गया-छिप गया । तत्पश्चात् चोर सेनापति चिलात ने धन्य सार्थवाह को लूटा । बहुत सारा धन, कनक यावत् स्वापतेय तथा सुंसुमा दारिका को लेकर वह राजगृह से बाहर नीकलकर जिधर सिंहगुफा थी, उसी ओर जाने के लिए उद्यत हुआ। । सूत्र-२११
चोरों के चले जाने के पश्चात् धन्य सार्थवाह अपने घर आया । आकर उसने जाना कि मेरा बहुत-सा धन कनक और सुंसुमा लड़की का अपहरण कर लिया गया है । यह जानकर वह बहुमूल्य भेंट लेकर के रक्षकों के पास गया और उनसे कहा- देवानुप्रियो ! चिलात नामक चोरसेनापति सिंहगुफा नामक चोरपल्ली से यहाँ आकर, पाँच सौ चोरों के साथ, मेरा घर लूटकर और बहुत-सा धन, कनक तथा सुंसुमा लड़की को लेकर चला गया है । अत एव हम, हे देवानुप्रियो ! सुंसुमा लड़की को वापिस लाने के लिए जाना चाहते हैं । देवानुप्रियो ! जो धन, कनक वापिस मिले वह सब तुम्हारा होगा और सुंसमा दारिका मेरी रहेगी । तब नगर के रक्षकों ने धन्य सार्थवाह की यह बात स्वीकार की । वे कवच धारण करके सन्नद्ध हुए । उन्होंने आयुध और प्रहरण लिए । फिर जोर-जोर के उत्कृष्ट
द्र की खलभलाहट जैसा शब्द करते हए राजगह से बाहर नीकले । नीकलकर जहाँ चिलात चोर था, वहाँ पहँचे, पहँचकर चिलात चोरसेनापति के साथ युद्ध करने लगे।
तब नगररक्षकों ने चोरसेनापति चिलात को हत, मथित करके यावत् पराजित कर दिया । उस समय वे पाँच सौ चोर नगररक्षकों द्वारा हत, मथित होकर और पराजित होकर उस विपुल धन और कनक आदि को छोड़कर और फेंक कर चारों ओर भाग खड़े हए । तत्पश्चात् नगररक्षकों ने वह विपुल धन, कनक आदि ग्रहण कर लिया । ग्रहण करके वे जिस ओर राजगह नगर था, उसी ओर चल पड़े । नगररक्षकों द्वारा चोरसैन्य को हत एवं मथित हुआ देखकर तथा उसके श्रेष्ठ वीर मारे गए, ध्वजा-पताका नष्ट हो गई, प्राण संकट में पड़ गए हैं, सैनिक
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (ज्ञाताधर्मकथा)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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